मौन क्यों???
मौन क्यों???
वो दिन भी थे जब हम पढ़ाई करना पसन्द ही नहीं करते थे, तब हमको डांट-फटकार कर पढ़ाया गया। आज जब पढ़ना पसन्द आ गया तो नम्बर का वजूद बढ़ी दिया गया, अब तो ज्ञान की गणना नम्बर से होने लगी है लगता है मानो ज्ञान का अस्तित्व ही सिमट गया है। अब तो नौकरी भी रुपयों के बल पर मिलने लगी है, पहले तो भगवान की लीला थी अब तो आरक्षण की लीला दिख रही है, वो दिन भी थे जब भाग्य और किस्मत को अहमियत मिलती थी और आज कर्म के अतिरिक्त किसी को नहीं देखा जाता, फिर भी बेरोजगार लोग भाग्य को दोष देते दिखाई देते हैं।
आखिर क्यों??????
कभी सरकार को भी तो दोष दो, हर नेता मत मिलने से पूर्व बड़ी-बड़ी बातें करता है, बाद में भूल जाता है कि उसने कुछ कहा भी था।
नेता तो देश-विदेश में घूम रहे हैं, कभी अपने देश के छोटे-छोटे गांवों और कस्बों में जाने की कोशिश की? नहीं
सिर्फ कहने आता है कि ऐसा करें कि देश उन्नति की ओर अग्रसर हो पर क्या वह स्वयं उन्नतिशील है ? जो अपने देश के गाँवों को नहीं जान सका वह और क्या जान सकता है?
यों मौन रहकर प्रगति हम नहीं कर सकते कुछ करो, आगे आओ कुछ करो, कुछ करो ।
Abhilasha mishra