माया
माया


जसवंत ने ऑफिस में घुसते हुए घड़ी पर एक निगाह डाली और बड़बड़ाते हुए केबिन का दरवाज़ा खोला ," आज फिर लेट जस्सी तू मरेगा किसी दिन। " केबिन में दाखिल होते ही देखा माया उसकी मेज के सामने कुर्सी पर बैठी थी। माया और उसका पति रोहित जसवंत के पुराने दोस्त थे , माया और जसवंत एक ही ऑफिस में काम करते थे और रोहित का अपना बिज़नेस था। जसवंत ने माया पर एक निगाह डाली और सीधा अपनी कुर्सी पर बैठ गया। माया अब भी अपने ख्यालों में ही खोई थी। जसवंत ने माया की ओर देखते हुए धीरे से मेज पर ठक ठक की। आवाज सुन कर माया का ध्यान जसवंत की ओर गया तब वो बोला , "गुड मॉर्निंग , कहाँ खोई हो मोहतरमा ?" माया ने पहले आश्चर्य से जसवंत को देखा फिर एक बार चारों ओर देखा जैसे वो नींद से जाएगी हो। अपने आपको व्यवस्थित करते हुए माया बोली ," गुड मॉर्निंग ! माफ़ करना मैं यहां तुमसे कुछ बात करने आयी थी सो यहीं बैठ इन्तजार करने लगी " जसवंत मुस्कुराते हुए बोला , "ओह तो तुम इतनी तल्लीनता से मेरे बारे सोच रही थी ?" माया सकपका गयी ,"नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। " जसवंत हंस पड़ा ," अरे यार मैं मजाक कर रहा था , खैर ये बताओ तुम कौन से ख्यालों में इतना खोई हुई थी। " माया के चेहरे पर एक झल्लाहट उभर आई थी जैसे जसवंत ने उसकी दुखती रग छू ली हो। वो लगभग घूरते हुए बोली , "दुखी हो गयी हूँ मैं रोहित के इस रवैये से , न जाने उसके और उसकी कमीनी सेक्रेटरी के बीच में क्या खिचड़ी पक रही है। " उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। जसवंत ने भांप लिया था की मामला ज्यादा ही गंभीर हो गया था। वो थोड़ा गंभीर होकर बोला ," मेरी बात सुनो माया , जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है। उन दोनों के बीच कुछ भी नहीं चल रहा , ऑफिस में साथ काम करते हुए थोड़ी बहुत हंसी मजाक या फ्लर्टिंग तो चलती है। "
"हंसी मजाक ? फ्लर्टिंग ? तुमको लगता है मैं बेवक़ूफ़ हूँ ? ये साथ में पार्टियों में जाना , चिपक चिपक कर बात करना ये सब ऑफिस का हंसी मजाक है ? तुम आदमी लोग अपनी बदनीयती को छुपाने के लिए कुछ भी नाम दो मगर ये है छिछोरापन ही। " इतना कहने के बाद थोड़ा रुक कर वो फिर बोली ," माफ़ करना मैं तुम्हारी बात नहीं कर रही , वैसे हमारे बीच तो ऐसा सब नहीं होता , हम भी तो साथ काम करते हैं ? खैर छोडो ये बताओ ये लोग जब काम के सिलसिले में बाहर जाते हैं तो एक ही कमरे में रुकते है ?" थोड़ा झेंपते हुए ," मेरा मतलब है , तुम उसके दोस्त हो तुम्हे तो बताया होगा उसने क्या वो उसके साथ। .. ?
जसवंत हक्का बक्का सा उसे कुछ देर देखता रहा फिर अपनी निगाहें दूसरी ओर करके बोला ," नहीं हमारी पिछले कुछ समय से बात नहीं हुयी , लेकिन मैं ये विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि वो ऐसा नहीं कर सकता और तुम्हें भी अपने पति पर भरोसा रखना चाहिए। " माया ने जसवंत की और शक़ भरी निगाहों से देखा ," तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो , कहीं ऐसा तो नहीं की तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो , जरा मेरी तरफ देख कर बोलो कि तुम्हें कुछ नहीं पता। " जसवंत बनावटी गुस्से से बोला ,"क्या यार माया, फिर वही ? तुम्हें गुस्सा क्या आया बस सारी दुनिया दुश्मन दिखने लगती है। विश्वास करो , मैं तुम्हारा दोस्त हूँ और हमेशा तुम्हारा भला ही चाहता हूँ। " वो माया की कुर्सी के पास आकर बोला ,"चलो थोड़ा दिमाग शांत करो और एक एक कॉफ़ी पी के आते हैं। " माया ने अनमने से कहा ," अच्छा चलो। " फिर दोनों जसवंत के केबिन से बाहर आकर कैंटीन की ओर चल पड़े।
माया कैंटीन की खिड़की से बाहर देखते हुए धीरे धीरे कॉफ़ी पी रही था , अब भी उसके चेहरे पर गुस्से और दुःख के मिले जुले भाव थे। "माया तुम सीधे उससे इस बारे में बात क्यों नहीं करती ? कभी कभी जो हमारी आँखों को दिख रहा होता है वो पूरा सच नहीं होता। हो सकता है जो तुम सोच रही हो वो सच न हो और फिर सच हुआ भी तो कम से कम ये दुविधा की स्थिति ख़त्म होगी और तुम्हारे लिए ये सोचना आसान हो जायेगा कि क्या करना है। " जसवंत ने सन्नाटे को तोड़ते हुए माया की आँखों में आँखें डाल के कहा।
"मेरे लिए ये सब बहुत ही शर्मनाक है लेकिन अब कोई रास्ता भी नहीं बचा है। जब उसे करने में शर्म नहीं आती तो मुझे पूछने मैं कैसी शर्म ? मैं आज ही उससे बात करती हूँ जो होना है वो जल्दी ही हो तो अच्छा है" अपनी कॉफ़ी ख़त्म करते हुए माया ने कहा। जसवंत के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी।
जसवंत ने कहा, "ठीक है तुम उससे बात करो और मुझे कल उसका जवाब बताना। " माया अपनी सीट पे वापस चली गयी और जसवंत अपने कंप्यूटर में व्यस्त हो गया। शाम को जसवंत ने माया को ऑफिस से निकलते देखा तो आवाज लगा कर बोला ," बाय माया मैं कल का इन्तजार करूँगा। " माया ने मुस्कुरा कर देखा और चली गई, थोड़ी देर में जसवंत भी ऑफिस से निकल गया।
अगले दिन सुबह ठीक साढ़े नौ बजे जसवंत ऑफिस पहुँच गया। केबिन में अपना बैग रखते हुए उसने एक निगाह माया की जगह पर डाली लेकिन वो अब तक आयी नहीं थी। 'लग रहा है अब तक आयी नहीं ' जसवंत ने मन ही मन कहा।
करीब पौने दस बजे माया ऑफिस में दाखिल हुई , इस समय तक ऑफिस में काम ही लोग होते थे क्योंकि ज्यादातर लोग दस बजे ही आते थे। अभी माया अपनी जगह पर पहुंची ही थी कि फ़ोन बज उठा। माया ने फ़ोन उठाया , दूसरी ओर जसवंत था , वो बोला , "गुड मॉर्निंग माया , क्या रहा कल ?" एक छोटा विराम और फिर माया का जवाब आया ,"क्या मैं थोड़ी देर बाद बात कर सकती हूँ ?" और इससे पहले की जसवंत कुछ कहता उसने फ़ोन काट दिया। जसवंत को थोड़ा अजीब लगा मगर कुछ हद तक उसे भी ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद थी। उसने चपरासी के हाथो माया को एक कागज की चिट भेजी। माया ने चिट हा
थ में ली और पढ़ी , "मेरे ऑफिस में आओ कुछ जरूरी बात करनी है " लगभग दस मिनट के बाद माया केबिन में आयी। उसकी आंखों में आंसू थे और चेहरे को देख के लगता था वो बहुत रोई थी। जसवंत ने उसे बैठने के लिए बोला। माया जसवंत के सामने कुर्सी पे बैठ गयी। कुछ मिनटों के गहरे सन्नाटे के बाद माया ने बोलना शुरू किया , "तुम्हें सब पता था मगर तुमने मुहसे छुपाया। मैंने तुमपे भरोसा किया था लेकिन तुमने........" बात अधूरी छोड़ करा माया रोने लगी। जसवंत , "माया मेरी बात समझने की कोशिश करो मैंने तुमसे कुछ नहीं छिपाया लेकिन मैं चाहता था की रोहित ही तुम्हें सब बताय मैं नहीं। मुझे पता है की तुम्हें बुरा लगा है। " माया निराश लहजे में बोली ,"बुरा लगा ? मेरी जिंदगी बर्बाद हो गयी इस इंसान के साथ, वो निहायत ही नीच इंसान है। अपनी गलती मैंने के बजाय वो मुझ पर ही इल्जाम लगा रहा है तुम्हारे साथ संबंधों को लेकर , हद है वो ऐसा सोच भी कैसे सकता है ? बस बहुत हुआ मैं इस इंसान को बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकती , मैंने रोहित से अलग होने का फैसला ले लिया है। "
"एक मिनट रुको माया मेरी बात सुनो। मेरी राय तो मानो तो कोई भी फैसला लेने से पहले एक बार ठन्डे दिमाग से सारे पहलुओं पर विचार कर लो। " थोड़ा रुक कर वो बोला , "कभी सोचा है तुम्हे रोहित का किसी और के साथ घूमना फिरना और बातें करना बुरा क्यों लगता है। " माया ने आंसू पोंछते हुए कहा , "कौन सी बीवी अपने पति को किसी दूसरी औरत के साथ देखकर बर्दाश्त कर पायेगी ?" जसवंत हल्की मुस्कान के साथ बोला , "बिलकुल ठीक, लेकिन कभी सोचा है कि एक पति भी तो वैसा महसूस कर सकता है जैसा तुम महसूस कर रही हो ? तुम उसे बहुत प्यार करती हो इसलिए उसे किसी और के साथ देख कर बर्दाश्त नहीं कर पा रही हो लेकिन...." कहते कहते जसवंत रुक गया उसने माया की ओर देखा वो उसे आश्चर्य से देख रही थी।
जसवंत ने आगे बोलना शुरू किया , "हां मुझे पता है कि रोहित को तुम्हारे और मेरे संबंधों को लेकर शक है और इस बात को लेकर कुछ दिन पहले हमारी लड़ाई भी हुई थी। लेकिन ये बात मैं तुम्हें बता नहीं पाया क्यूंकि मैं खुद बहुत दुखी और शर्मिंदा हो गया था कि मेरा सबसे अच्छा दोस्त मुझे लेकर अपनी बीवी पर शक कर रहा है। मैंने तुम्हे उकसाया कि तुम उससे बात करो जिससे ये बात तुम्हारे सामने आये। मुझे रोहित की बात बहुत बुरी लगी क्यूंकि मैंने कभी तुम्हारे और मेरे संबंधों के बारे में ऐसा नहीं सोचा, उस दिन मैं पूरा दिन परेशान रहा और इस बारे में सोचता रहा, फिर धीरे धीरे चीज़ें मुझे समझ में आनी शुरू हुईं, असल बात ये है की तुम दोनों एक दुसरे पर शक तो करते भी एक दुसरे से बेतहाशा प्यार भी करते हो इसीलिए एक दुसरे को किसी और के साथ बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हो। तुम दोनों अपने काम में व्यस्त होने के कारण एक दुसरे को समय नहीं दे पाते और जिसकी वजह से एक दुसरे को दूर होता महसूस कर रहे हो और ये झल्लाहट की वजह बन रही है। इसीलिए मैं चाहता था की तुम दोनों आपस में बात करो जिससे बातें खुल कर सामने आएं। "
माया ने गंभीर आवाज में कहा , "तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो कि उसका उस लड़की से सम्बन्ध नहीं है ?" जसवंत ने तुरंत जवाब दिया ," मैं ऐसा इसलिए कह सकता हूँ क्यूंकि मैं अपने दोस्त को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ वो ऐसा इंसान है ही नहीं। " जसवंत आगे बोलता गया , "तुम दोनों एक दुसरे के लिए बने हो , चाहे तो इसे मेरी विनती मान लो लेकिन अपने सम्बन्ध को टूटने से बचा लो। रोहित से ज्यादा प्यार तुम्हें कोई नहीं कर सकता। एक बार फिर उससे बात करो लेकिन इस बार तुम्हें बहुत धैर्य के साथ बात करनी होगी। हो सकता है वो बहुत नाराज़ हो कल की बात से लेकिन स्थिति तुम्हें सम्भालनी होगी क्योंकि उसके पास कोई ऐसा नहीं है जो उसे समझा सके या सहानुभूति दे पाए तो अब ये त्युंहारे ऊपर है तुम कैसे उसे समझती हो।" माया उलझन में पड़ी हुई बोली ," ठीक है , मैं उससे बात करने की कोशिश करती हूँ। "
जसवंत ," मैं चाहता हूँ की तुम उसे मना कर "रूमी पॉइंट" लेकर आओ , वो मेरा और रोहित का पसंदीदा रेस्टोरंट रहा है। " माया ने कुछ कहा नहीं बस सहमति में सिर हिला दिया और वहां से चली गई। अपनी जगह पर पहुँच कर उसने जल्दी जल्दी अपना सब काम किया और ऑफिस से जल्दी निकल गयी।
लगभग 6 बजे जसवंत ऑफिस से निकल कर सीधा रेस्टोरेंट पहुँच गया और तीन लोगों के लिए जगह सुरक्षित कर ली। करीब ७ बजे माया और रोहित आते दिखाई दिए। जसवंत ने हाथ हिला के दोनों को इशारा किया जिसके जवाब में रोहित ने भी हाथ हवा में हिलाया। जसवंत के नज़दीक पहुंचते ही रोहित ने उसे कुर्सी से बहार खींच लिए और जोर से गले लगा लिया। "जस्सी मेरे भाई मुझे माफ़ कर दे, मैं अपने भाई जैसे दोस्त पर शक कर बैठा। लेकिन तूने फिर भी मुझे मेरे प्यार से अलग नहीं होने दिया मैं किन शब्दों में तेरा धन्यवाद करूँ समझ नहीं आ रहा, जिसके पास तेरे जैसा दोस्त हो उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। " कहते कहते रोहित की आँखों में आंसू आ गए। जसवंत ने रोहित को गले लगाए हुए ही जवाब दिया ," मेरे भाई तू मुझे शर्मिंदा कर रहा है , हमारे बीच जो भी हुआ वो सब ग़लतफ़हमी की वजह से हुआ और फिर तुम दोनों मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो तो तुम्हारे बीच की ग़लतफ़हमी को दूर करना तो मेरा फ़र्ज़ है। लेकिन...." थोड़ा रुक करजसवन्त दोबारा बोला ," अब अगर मैं तेरी बीवी को कहीं घुमाने ले जाऊं तो तुझे ऐतराज़ तो नहीं होगा ?"
माया और रोहित दोनों ने जसवंत ने दोनों को देख कर जोर से हंसा एक दुसरे को समझना और विश्वास करना किसी भी रिश्ते की बुनियाद है।
और फिर वो दोनों भी हंसने लगे।
एक साथ चौंक कर कहा , "क्या ?"