मातृभक्ति
मातृभक्ति
गोलू की मम्मी पैकिंग करने में व्यस्त थीं । "मम्मी हम कहाँ जा रहे हैं ?… आप ये पैकिंग क्यों कर रही हैं ?" नन्हे गोलू ने मम्मी से पूछा।
"बेटा हर साल की तरह इस साल भी हम नवरात्रों में माँ वैष्णो-देवी के दर्शन करने जा रहे हैं।" माँ ने गोलू को प्यार से समझाया।
"मम्मी हम क्यों जाते हैं वहाँँ ?"
"लो तुम्हारे पापा आ गए, … अब तुम उन्हींं से पूछो।" मम्मी ने, गोलू के कभी न खत्म होने वाले प्रश्नों से पीछा छुड़ाना चाहा।
"पापा .... पापा, बताओ ना, हम क्यों जाते हैंं वैष्णो-देवी ?"
"बेटा जैसे ये आपकी मम्मी हैं, दादी मेरी मम्मी हैं, वैसे ही माँ वैष्णो-देवी, हम सबकी मम्मी हैं, …बस उन्हींं से मिलने जाते हैं।" पापा ने बेटे को उसकी ही सहज भाषा में समझाने का प्रयास किया।
किन्तु अभी गोलू की जिज्ञासा समाप्त नहीं हुई थी, "तो इससे क्या होता है ?" एक और प्रश्न !
"गोलू बेटा, इससे माँ खुश होतीं हैं और हमें विद्या देती हैं, बुद्धि देती हैं, धनवान और यशस्वी बनाती हैं,....... समझे ?"
"पापा दादी भी चलेंगी ?"
"नहीं बेटा, दादी इतनी चढ़ई नहीं चढ़ सकतीं, वो बीमार हैं ना, इसलिए वो नहीं जाएँगी।"
"तो वो घर पर अकेले कैसे रहेंगी ? उनको खाना कौन बना कर देगा ? समय पर दवा कौन देगा ?" गोलू ने आँखें बड़ी-बड़ी करते हुए पापा से पूछा।
"गोलू, एक हफ्ते की ही बात है, हफ्ते भर बाद तो हम लौट ही आएँगे,…तुम बताओ, तुम्हारी ये पीली टी-शर्ट रखनी है ना …… ? ये तो तुम्हे बहुत पसंद है, है ना ?" मम्मी ने जल्दी से टॉपिक बदला लेकिन गोलू की रूचि इस समय कपड़े रखवाने में नहीं थी।
"एक हफ्ता…? दादी तो इतनी बीमार हैं कि वो एक दिन भी अकेली नहीं रह सकतीं, वो तो बाथ-रूम तक भी मेरा हाथ पकड़ कर जाती हैं।"
"अरे मेरे गुरु ! चिंंता मत करो, दादी मैनेज कर लेंगी अपने-आप", पापा ने बहलाने के लिए उसे गोद में उठाते हुए कहा लेकिन गोलू चिंता कैसे ना करे ? उसने बड़ी ही सहज भाषा में दार्शनिकों वाला प्रश्न किया,
"पापा आप सबकी मम्मी को खुश करने के लिए अपनी मम्मी को दुखी करोगे ?" उन्हें अकेला छोड़ के जाओगे ?" गोलू के इस भोले से प्रश्न ने मम्मी-पापा की मातृ-भक्ति के आडम्बरपूर्ण दिखावे को एक क्षण में खंड-खंड कर दिया।