माँ की मुस्कान
माँ की मुस्कान
माँ की मुस्कान ने बदल दी एक बच्ची की जिंदगी, दिल्ली की सड़कों पर घूमते हुए कई बच्चे रेड लाइट पर पाए जाते हैं, रेड लाइट होते ही किसी भी गाड़ी के पास आकर मांगने लगते हैं, कुछ लोग तो दया करके उन्हें पांच रुपये या दस रुपये देते हैं लेकिन कुछ लोग खुले नहीं हैं कहकर सीधे मना कर देते हैं l
इन बच्चों के बारे में क्या कोई सोचता है, इस पर लोगों की अलग अलग राय है, इनकी सहायता करनी चाहिए या नहीं, कुछ लोगों का मानना है कि जितनी इन लोगों की मदद करेंगे उतना ही इनकी आदतें खराब हो जातीं हैं, इनके माँ बाप कुछ करते नहीं, घर में बैठे रहते हैं, दारु पीते हैं, बच्चों को स्कूल नहीं भेजते, रोड़ पर भीख मांगने छोड़ देते हैं, और कुछ लोगों का मानना है इन बच्चों से भीख मंगवाने बाला गिरोह होता है जो इनसे ये सब काम करवाते हैं, ये तो हमने फिल्मों में देखा है, या फिर किसी न्यूज़ में सुना होगा l
इसकी जानकारी लेने के लिए हम आगे बढ़ने की सोच रहे थे, एक दिन एक छोटी क्यूट सी बच्ची को रोड पर मांगते देखा तो सुषमा को दया आ गईं, और बोली "वाह ! ये बच्ची कितनी क्यूट है" उसे पचास रूपये दिये, बच्ची बोली "मेरे पास खुल्ले नहीं हैं ", "तो क्या हुआ रख लो" सुषमा ने हाथ से इशारा किया, बच्ची बोली "नहीं दस का नोट दे दो" सुषमा कहने लगी, "कितनी ईमानदार है ये बच्ची" इतनी देर में ग्रीन लाइट हो गईं, और गाड़ी चल पड़ी l
मगर उस बच्ची की सूरत सुषमा के दिल में बैठ गयी और उसके बारे में सोचती रही, कभी-कभी तो रोने लगती थी, ऐसे बच्चों की जिंदगी कैसी होती होगी, कैसे रहते होंगे, कौन उनकी मदद करता होगा, भीख क्यों मांगते हैं, इन बच्चों के बारे में अपने पति से भी बात करती थी l
सुषमा के पति रबिंद्र एक कम्पनी में IT Head है, उनकी शादी को दस शाल हो गये थे उनके कोई बच्चे नहीं थे, सुषमा को माँ बनने का शौक था मगर उनकी औलाद नहीं हो सकती, कई डॉक्टर्स को दिखा चुके थे, मगर बच्चे की चाह उसे रोक नहीं सकी l
अचानक कुछ दिन के बाद फिर उसी रेड लाइट पर उसी बच्ची को देख लिया, बच्ची दौड़ कर उनकी गाड़ी के पास आकर खड़ी हो गई, गौर से देखा तो सुषमा को उसने पहचान लिया, बोली "दस का सिक्का दे दो," सुषमा मुस्करा कर बोली "नहीं, मैं तो पचास रुपये ही दूंगी" बच्ची थोड़ी मुस्कराई, फिर पता नहीं क्या सोचने लगी, दौड़ कर जाने लगी, सुषमा गाड़ी से उतर कर उस बच्ची के पास जाकर उसका हाथ पकड़कर बोली "क्या हुआ बेटा नाम क्या है तुम्हारा" बच्ची सरमा के बोली "नैना" सुषमा ने उसके गाल छूकर बोला "वाह कितना अच्छा नाम है, कहाँ रहती हो" नैना ने झुग्गियों की ओर इशारा किया,
सुषमा ने रविंद्र को पूछा "क्या बोलते हो, चलें क्या इसके घर" रविंद्र बोला "चलो यार तुम अपनी तस्सली कर ही लो" सुषमा ने नैना से पूछा "बेटा तुम अपने घर ले जा सकती हो" नैना बोली "तुम बहुत अच्छी लगती हो, घर तो वहाँ है ", "अच्छा तो ले चलो अपने घर" सुषमा बोली l
सुषमा को उस बच्ची में बेटी देखने लगी थी, नैना को भी लगता था इतना प्यार से किसी ने उससे बात नहीं की, उसे माँ की याद आने लगी, फिर झुग्गियों के बीच होकर किसी भी तरह उसके घर तक पहुंचे, घर में बच्ची के मामा, मामी थे, उनके भी तीन और बच्चे थे, नैना के बारे में पूछा तो मामा का कहना था, उसकी बहन की लड़की है इसकी माँ को पिछले साल कोरोना हो गया था तो हम बचा नहीं पाए, हॉस्पिटल में भर्ती किया लेकिन उसकी लाश भी नहीं मिली l सुषमा बोली "ओहो ये तो बड़े दुःख की बात है" लेकिन बच्ची को रोड पे क्यों छोड़ देते हो, डर नहीं लगता ?"
"क्या करें काम नहीं मिल रहा है, सारे बच्चे जाते हैं, ये भी जाती है, जो कुछ मिलता है उसी से घर चलता है" उसका मामा बोला, सुषमा ने थोड़ी हिम्मत करके बोलने की कोशिश की "इस बच्ची को हम गोद लेना चाहते हैं, आपको कोई एतराज तो नहीं होगा वैसे भी तुम इसका ध्यान नहीं रख रहे हो", "नहीं क्या दिक्कत है कोई ले जायेगा तो इसकी जिंदगी भी बन जायेगी, थोड़ी हमारी भी सहायता हो जाएगी " उसकी मामी बोली, सुषमा को उनकी बातों से लग रहा था, उन्हें कुछ रुपये दे दें तो बच्ची को दे सकते हैं,
सुषमा बोली "वो तो हम कर देंगे, पर बाद में आपका कहीं विचार बदल तो नहीं जायेगा", "नाही ऐसा काहे सोचती हैं मैडम पैसा मिलेगा तो ऐसा थोड़ी करेंगे " उसकी उसकी मामी ने कहा, कितने पैसे चाहिए" थोड़ा जायजा लेने के लिए रविंद्र ने पूछा, सुषमा बोली "यार ऐसे थोड़ी ना बोलते हैं" रविंद्र बोला "थोड़ा पता तो चले इनकी डिमांड कितनी है", उधर से मामा बोला "दे दो दस हजार" "ठीक है" सुषमा ने कहा l
उस वक़्त वो लोग वापस चले गये, लेकिन शाम को वे वापस आये उनके तीनों बच्चों के लिए, मामा के लिए और मामी के लिए भी कपड़े लाये, नैना को सुन्दर फ्रॉक पहनाया और मामा को 25 हजार रूपये दिए, सबको मिठाई खिलाई, उनके पड़ोसियों को भी मिठाई खिलाई और सबको ये बताया कि नैना अब बड़े स्कूल में पढ़ाई करेगी, मामा को आश्वासन दिया कि ज़ब कोई परेशानी हो तो बता देना अपना एड्रेस फोन नंबर भी दिया l
लेकिन नैना से किसी ने नहीं पूछा क़ि वो अपने नये घर में जाना चाहती है या नहीं l नैना से पूछा "चलो नैना हम आपको आपके नये घर में लें जाएंगे", उस वक़्त तो नैना तैयार हो गई, पता नहीं उसके आगे का सफ़र कैसा रहा होगा, मगर ये जरूर था नैना को मामी की जगह बहुत प्यार करने वाली माँ मिल रही थी, और जब घर पहुँचे तो नैना बहुत खुश हुई, कुछ दिन एडजस्ट करने में लगे इस बीच नैना ने मामा मामी को और भैया को याद किया l
खुशी का अवसर तब था जब नैना ने सुषमा को पहली बार माँ कहकर पुकारा, सुषमा ख़ुशी से झूम उठी, रविंद्र देखते ही रह गया, उसके आंखों में प्यार के आंसू थे नैना को गले लगा कर, लगता है जैसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई हो l
* Madan Gankotiya
