माइकल जाॅर्डन - सफलता की कहानी
माइकल जाॅर्डन - सफलता की कहानी
यह कहानी है, एक ऐसे व्यक्ति की जिसने वक्त से लड़कर अपने मनोबल से आने वाले कल की तस्वीर बदल दी।
माइकल का जन्म 1963 न्यूयार्क में हुआ था। उनके चार भाई-बहन थे और पिताजी का वेतन बहुत ही कम था। छोटे-से मकान में बड़े होते माइकल की आँखो में अपने भविष्य के सुनहरे सपने थे। जब वह तेरह वर्ष का हुआ तो उस के पिताजी ने उसे साधारण-सा एक कपड़े का टुकड़ा देते हुए उस की कीमत के विषय में पूछा।माइकल ने जवाब दिया, “यही कोई एक डाॅलर।” उस के पिताजी ने उसे उस कपड़े के टुकड़े को दो डाॅलर में बेच कर दिखाने को कहा।माइकल ने उसे धोया, अच्छे से तह किया। उन दिनों इस्त्री तो थी नहीं; तो उसने उसे कपड़ों के ढेर के नीचे अच्छे से रख दिया।दूसरे दिन रेलवे स्टेशन गया और छह घंटे की मेहनत के बाद उसे दो डाॅलर मिले।वह उछलता-कूदता उन दो डाॅलरों को लेकर घर आया।
दस दिन बाद उसके पिताजी ने उसे वैसा ही कपड़ा फिर दिया और इसे अब बीस डाॅलर में बेच कर दिखाने को कहा।माइकल ने मन ही मन सोचा कि इस कपड़े के बीस डाॅलर कौन देगा? लेकिन अपने मन को समझाते हुए उसने एक बार कोशिश करने का निश्चय किया। उसने बहुत सोचा और फिर अपने दोस्त की मदद से उस कपड़े पर मिकी माउस की तस्वीर बनाई। उस कपड़े को लेकर वह अमीर बच्चों के स्कूल पहुँच गया। एक छोटे-से बच्चे ने उस कपड़े को पसंद कर खरीद लिया और साथ ही पाँच डाॅलर बख्शीश भी दी।पच्चीस डाॅलर माइकल के लिए एक बहुत बड़ी धनराशि थी।लगभग उसके पिताजी का महीने भर का वेतन।
कुछ दिनों बाद उसके पिताजी ने उसके हाथ में एक और कपड़ा थमाते हुए उसे दो सौ डाॅलर में बेच कर आने को कहा।इस बार वह कुछ नहीं बोला; केवल सोचता रहा कि ये कैसे हो सकता है? उन दिनों उसके शहर में एक सुप्रसिद्ध हाॅलीवुड अभिनेत्री आई हुई थी। वह सुरक्षा व्यवस्था तोड़ते हुए उसके पास पहुँच गया और वही कपड़ा आगे करते हुए उसका आटोग्राफ माँगा। मासूम बच्चे को देखकर वह अभिनेत्री मना नहीं कर पाई। आटोग्राफ मिलते ही वह चिल्लाने लगा, “सुप्रसिद्ध हाॅलीवुड अभिनेत्री का आटोग्राफ किया कपड़ा दो सौ डाॅलर में।” वहीं उस कपड़े की नीलामी शुरू हो गई। आखिरकार वह कपड़ा उसने एक व्यवसायी को बारह सौ डाॅलर में बेच दिया।
आज माइकल जब बारह सौ डाॅलर लेकर घर पहुँचा तो उस के पिताजी की खुशी का ठिकाना न रहा।वह रो पडे़ और माइकल से पूछा, “बेटा तुम इतने दिनों से यह कपड़ा बेच रहे हो,इससे तुमने क्या सीखा?” माइकल ने गर्व-पूर्वक उत्तर दिया, “पिताजी, जहाँ चाह वहाँ राह।” “बिलकुल सही” ,पिताजी का जवाब था। “लेकिन साथ ही मैं तुम्हें यह भी समझाना चाहता था कि जिस साधारण कपड़े के टुकड़े की कीमत हम एक डाॅलर से बारह सौ डाॅलर तक बढ़ा सकते हैं , तो हम अपनी कीमत क्यों नहीं बढ़ा सकते? हम इनसान हैं, सोच सकते हैं, विचार कर सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं।”
पिताजी के इन शब्दों ने माइकल के व्यक्तित्व को बदल दिया। यह माइकल कोई अन्य नहीं, बल्कि वही माइकल जाॅर्डन है जिसे हम बास्केटबॉल की दुनिया के अभूतपूर्व चमकते सितारे के रूप में जानते हैं।
माइकल जाॅर्डन की यह कहानी हम सब के सामने उदाहरण प्रस्तुत करती है कि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं।हम वे सब कर सकते हैं, जो हम सोच सकते हैं। वक्त हमारा है, चाहे तो इसे सोना बना लें या चाहे तो इसे सोने में गुजार दें।
किसी ने क्या खूब कहा है-
जो सिरफिरे होते हैं, इतिहास वही लिखते हैं
समझदार लोग तो,सिर्फ़ उनके बारे में पढ़ते हैं।
परख अगर हीरे की करनी है तो, अंधेरे का इंतजार करो
वरना धूप में तो, काँच के टुकड़े भी चमकते हैं।
