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Sanket Vyas Sk

Drama

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Sanket Vyas Sk

Drama

कूकड़कुकक्...

कूकड़कुकक्...

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एक मुर्गा हररोज सुबह-सुबह मस्जिद के आगे आकर बाँग लगाता, "कूकडे..... कुक.... और सबको जो पास में रहते उनको जगाता, वो लोग भी मुरघे की बाँग के बाद ही उठे, तैयार होते फिर काम-धंधे पर जाते थे। ये हर रोज होता था। 

   वहां मस्जिद में एक मौलानाजी रहते थे जो हररोज सुबह जल्दी उठने के बाद मस्जिद का सब काम करते उसके बाद मुर्गे की बाँग सुनते और लोगों का ये नित्यक्रम देखते। ये सब उनको बिलकुल ही पसंद नही था।

वो एसा सोचते "हर रोज सुबह मुरघे की बाँग के बाद ही सभी लोग उठते हैं, जब ये मुर्गा नहीं होंगा तब ये लोग क्या करेंगे ?" एक शाम को मौलाना साहब खुद मुरघे को उठाकर पासवाले गाँव में रख आते है। उस रात के बाद सुबह को मुर्गे की बाँग न हूई तो कई लोग देर से उठे और काम पर लेट पहुँचे । घर पे वापस आए शाम को तो फरहान और रसूल आपस में बात करने लगे की "आज मुर्गा कहाँ गया जो क्हररोज उठा दिया करता था, आज उसकी बाँग न सूनने पर हम सभी लेट हुए इस से बेहतर तो यह है की हम वैसे ही सुबह जल्दी उठ जाए अपने समय पर, ये मुर्गे की बाँग की गलत आदत हमें दूर करनी पड़ेगी।

दूसरे दिन सभी आसपास वाले जल्दी उठ गए। उठकर तैयार होने के बाद जब काम पर जाने निकले । हररोज की जैसे मुर्गा बाँग लगाते मस्जिद के आगे आ जाता है तभी मौलाना साहब उसे देखते बोल पडे "सुबह का भूला शाम को वापस आ ही गया, फिर भी कोई बात नहीं कल की वजह से आज तो सभी को सबब मील गया की आदत बनाना किसकी वो सही बात नहीं है।" उसी बात पर मुर्गे ने फिर बाँग लगा दी "कूकडे.... कुक...."


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