कुछ तो लोग कहेंगे
कुछ तो लोग कहेंगे
आजकल मंदिरा बेदी चर्चा में हैं। वही "शान्ति" नामक धारावाहिक की नायिका। वैसे तो बॉलीवुड में कोई अभिनेता या अभिनेत्री चर्चा में रहने के लिए क्या क्या प्रोपेगंडा नहीं करते लेकिन यहां पर मंदिरा बेदी कै चर्चा में रहने के कारण थोड़े अलग किस्म के हैं।
दरअसल हुआ यूं कि मंदिरा बेदी के पति फिल्म निर्माता राज कौशल की अचानक मृत्यु हो गई। यह एक हृदय विधायक घटना थी। इस घटना के बावजूद मंदिरा बेदी बहुत संयत दिख रहीं हैं। उन्होंने एक जींस और टॉप पहना हुआ था। उसी पोशाक में वह अपने पति का अंतिम संस्कार करने की तैयारियों में दिखी। यहां तक कि उन्होंने अर्थी को सहारा दिया और संभवतः वे मुखाग्नि देने के लिए श्मशान घाट भी गई।
लोगों को कुछ मसाला मिल गया और बैठे ठाले लोग मंदिरा बेदी पर पिल पड़े। क्यों ? अरे भाई, लोगों की आदत है। कुछ न कुछ तो कहना है। और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यहां थोक में है इसलिए कुछ भी कह सकते हैं। आखिर लोग पैदा किसलिए हुए हैं ? कुछ न कुछ कहने के लिए और किसलिए ?
जो लोग कुछ कह रहे हैं वे इसके कारण दो बता रहे हैं।
पहला कारण तो यह है कि वे महिला होकर अंत्येष्टि संस्कार में शामिल क्यों हुई ? महिलाओं को ऐसा करने का अधिकार नहीं है। ऐसा कहकर लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं। और फिर, अगर अंतिम संस्कार में शामिल हो भी गई तो जींस और टॉप में ? भला ये भी कोई अंतिम संस्कार की ड्रेस है ?
जहां तक महिलाओं के श्मशान घाट में जाने, नहीं जाने की बात है तो जब महिला प्लेन उड़ा सकती है, मेट्रो चला सकती है। सेना में भर्ती हो सकती है तो फिर श्मशान घाट क्यों नहीं ज सकती है ? है कोई ऐसा क्षेत्र जहां पर महिलाओं ने अपना झंडा नहीं फहराया हो ? जब सब जगह वे स्वीकार्य हैं तो फिर श्मशान घाट में क्यों नहीं। और यदि किसी का बच्चा छोटा हो तो क्या वह दूसरों पर निर्भर रहे ?
पुरुष मानसिकता अभी भी वैसी की वैसी है। वे यही चाहते हैं कि महिला घर के अंदर ही रहे। साड़ी में सिमटी एक गुड़िया की तरह। बस, और कुछ नहीं।
जो लोग ट्रॉली कर रहे हैं, ऐसे ट्रोलर्स से मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं कि जब मंदिरा बेदी के पति राज कौशल बीमार थे तो कितने लोग उनसे मिलने गए ? कितने लोगों ने उनका इलाज करवाया ? क्या किसी को अपनी मर्जी से जीने का हक नहीं है ?
दूसरों के गिरेबान पकड़ने वाले पहले अपना गिरेबां तो चैक कर लें। एक उंगली किसी पर उठाते हैं तो चार उंगली खुद पर भी उठती है। दूसरों के मामलों में टांग अड़ाना बंद कीजिए साहब। पहले अपना घर संभालिए। उसकी दीवारें दरक रहीं हैं। लोगों को अपने हाल में जिंदा रहने दीजिए। इसी में भलाई है। आपकी भी और देश की भी।
