कुछ फैसले
कुछ फैसले
"अरे!!माँ मैने कितनी बार कहा है कि तुम बीमार मत पड़ा करो.. तुम जानती होना तुम्हारे बीमार पड़ जाने से घर के सारे काम रुक जाते हैं.. काम के साथ साथ मुझे और शिल्पा को भी ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ती हैं.. गर रोज रोज तुम्हारी बीमार पड़ने की आदत से छुट्टी लेनी पड़ी तो..नोकरी से हमे हाथ धोना पड़ेगा.." शांति देवी से उनके बेटे सुमित ने झुंझलाते हुए कहा।।
बेटे की बातें एक माँ के दर्द को और बढ़ा रही थी..शान्ति देवी को अपने ही बेटे की बात सुनकर दुःख हुआ ओर सोचने लगी..बेटे को अपनी बीमार माँ से ज्यादा नोकरी की चिंता है.. घर के काम कैसे होगे।
"बेटे बहू के ऑफिस चले जाने के बाद घर की रखवाली कौन करेगा..?इन सब बातों की चिंता हैं लेकिन बीमार पड़ी माँ की चिंता करने का कोई सवाल ही नही है... !!
आखिर!! शादी बाद बेटे इतने पराये क्यो हो जाते है..? शांति जी का दिल अंदर से रो रहा था..वह बस अपने बेटे बहुओं से इतना ही कह पाई की.." बेटा तुम घर के कामों की चिंता मत करो..न बच्चो की चिंता को..बस जरा सी तबियत खराब (सिर दर्द) मैं कोई भी गोली ले लूंगी और ठीक हो जाऊंगी...।
"देखो!! मैंने तेरा औऱ बहू शिल्पा का टिफिन पैक कर दिया है, तुम दोनों का नाश्ता भी बना दिया है, बस काम करते करते कब सारा शरीर बुखार व सिर दर्द महसूस होने लगा..मुझे पता नही चला...शायद मुझे बीमार होने का भी हक़ नही है"... शांति जी ने नम आँखे करते हुए कहा.. "औऱ बेटे से सिर दर्द की गोली देने के लिए..बेटे सुमित ने डॉक्टर को भी नही बुलाया.. बस घर मे जो पैन रिलीफ थी वही देते हुए कहा कि"यह गोली लेकर थोड़ा आराम कर लेना और फिर घर का ध्यान रखना...।"
बहू शिल्पा यह सब देखकर बहुत दुःखी थी..उसने अपने पति सुमित से कहा-देखो !!"सुनीत अब हमें कोई न कोई फैसला जरूर लेना होगा...?
"कैसा फैसला..?" सुमित ने कहा।।
"माँ जी के बारे में..?" शिल्पा ने कहा।
"माँ के बारे में कैसा फैसला" सुमित ने कहा।
"देखो!!" सुमित कुछ फैसले अचानक ही लिए जाते है"..और मैने फैसला किया है कि हम माँ जी को अब वृद्धाआश्रम में छोड़ आते हैं..।" माँ जी से अब घर का काम भी नही हो पाता हैं..रोज रोज उनकी तबियत ख़राब हो जाती है.. रोज रोज छुट्टी लेकर इनकी सेवा करे..और अगले दिन ऑफिस जाकर बॉस की गाली सुनने को मिलती हैं। यह सब मुझे अच्छा नही लगता हैं.. इससे अच्छा है आप माँ जी को किसी भी वृद्धाश्रम में छोड़ आइये.. जब हमारी छुट्टियां रहेगी उसदिन हम माँ जी से मिल आया करेंगे.. और रही घर के कामों के लिए हम बाई लगा लेंगे.. ताकि हम अपना जीवन वैसे ही जी सके जैसे जीते आ रहे हैं...!! शिल्पा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।।
"गर घर मे हम कामवाली बाई ही रख रहे हैं तो फिर माँ को वृद्धाश्रम क्यो भेजना.. माँ भी तो हमारे ही साथ रह सकती है.." सुमित ने कहा।।
"अरे"!!मेरे भोले पति जब हम कामवाली बाई लगा लेंगे तब घर मे कुछ काम ही कहाँ बचेगा.. घर मे काम नही बचेगा तो माँ जी घर मे पड़ी पड़ी बोर हो जाएगी.. और ज्यादा बीमार रहने लगेगी... गर वृद्धाश्रम जायेगी तो वहाँ उनके जैसी ही महिलाएं मिलेगी.. जिन्हें वह सहेलियों बनाकर अपने दुख सुख की बतला भी सकती है.. और ख़ुशी से रह सकती है... शिल्पा ने बातों पर माखन लगाते हुए कहा.. उसकी माखन जैसी बातों पर सुमित फिसल गया ओर उसने शिल्पा के फैसले पर सहमत होते हुए कहा-"तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो।मैं कल ही इस शहर के वृद्धआश्रम में पूछताछ करता हूँ.. सुमित ने कहा।।
"अरे!!"कल ही क्यों जब तक हमे एक अच्छी कामवाली बाई नही मिल जाती तब तक तो माँ जी को यही रहने दो..ताकि घर के काम न रुकें..?" शिल्पा ने कहा।।
शांति जी का कमरा सुमित के कमरे के बराबर में ही था..जब शांति जी ने बेटे बहू के मुंह से वृद्धआश्रम वाली बात सुनी तो उनके पैरों तले से जमीं सरक गई..और सोचने लगी क्या सच मे पुत्र कुपुत्र हो जाता है..लेकिन गलती तो मेरी ही हैं जो मैं बेटे बहू की बातों में आकर गाँव की जमीन व घर बेचकर इनके साथ आ गई..और सारी रकम इनके हाथों में थमा दी..खुद के बारे में बिल्कुल नही सोचा कि बुढ़ापे अच्छे से गुजरे इसके लिए कुछ तो अपने पास रखूं लेकिन पुत्र के मोह में अंधी होकर सबकुछ उसे ही सौप दिया...शांति जी सारी बाते याद कर रोये जा रही थी...!!
ये लोग मुझे घर से निकाले इससे पहले मैं ही इस घर से चली जाउंगी.. मुझे पता है वृद्ध आश्रम कहाँ पर है.. वो पास के फ्लैट में रहने वाली विमला ने मुझे वहाँ का पता दिया था..शहर में आने के बाद पास के फ्लैट में अपने बेटे बहू के पास रह रही विमला जी शांति जी की अच्छी सहेली बन गई थी..जब दोनो के बेटे बहू ऑफिस ऑफिस चले जाते थे तो,विमला जी शांति जी के पास आकर एक दूसरे के दुःख सुख की बाते कर लेती थी...।
जिसदिन विमला जी वृद्धआश्रम जा रही थी..तब शांति जी के हाथ मे एक पर्ची देते हुए कहा-इसे सम्भालकर रखना यह तेरे काम आएगी...क्योंकि लोग पेड़ को जब तक ही अपने आँगन में रखते हैं.. जब तक वह छाया और फल दे..जब वह फल देना बंद कर देता है तो लोग उसे आँगन में से उखाड़ फेंकते है..। जाते जाते विमला जी शांति जी की आँखे खोल गई।।
शान्ति जी को विमला जी की बाते आज समझ मे आई ।। शान्ति जी अगले ही दिन बेटे बहू के ऑफिस जाने के बाद हमेशा हमेशा के लिए वृद्धाश्रम में चली गई...वहाँ जाने से पहले अपने बेटे के नाम कुछ लिखकर छोड़ गई...
"मुझे माफ़ करना बेटा... मैं तुझे बिन बताये जा रही हूँ... गर बताकर जाती तो भी तुम्हे शायद दुःख नही होता इसलिए मैंने बताना जरूरी नही समझा... मैं वही जा रही हूं जा तुम लोग मुझे भेजना चाहते थे... तुम दोनों खुश रहना..समय पर खाना औऱ समय पर उठकर ऑफिस जाना... औऱ काम वाली बाई से कहना कि घर का अच्छे से ध्यान रखें... औऱ मुझे माफ़ करना क्योंकि कुछ फ़ैसले अचानक ही लिये जाते है..!!"
इतने दर्द के बाद भी उस खत में माँ को अपने बेटे के लिए चिंता झलक रही थी..!!
