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Vinod Silla

Tragedy Classics

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Vinod Silla

Tragedy Classics

करतारो की अंतिम यात्रा

करतारो की अंतिम यात्रा

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महिलाओं के रोने की आवाज आ रही थी। राधा ने अपने पति बंसी को बताया कि पड़ौसी भजनलाल की मां करतारो का देहांत हो गया। बंसी बोला, “आज सुबह तो अच्छी-भली बैठी थी।”

राधा ने कहा, “दोपहर के एक बजे के करीब माता करतारो ने अंतिम सांस लिया।”

 बंसी ने कहा, “जब अंतिम संस्कार की तैयारी हो जाए तो मुझे बताना।”

राधा बोली, “माता करतारो की बेटियों के आने के बाद ही संस्कार होगा।”

उबासी लेता हुआ बंसी बोला, “फिर तो बहुत समय लगेगा। इतने लंबे समय तक कौन बैठेगा? रिश्तेदारों के आते-आते शाम हो जाएगी। नींद आ रही है। तब तक मैं सो लूं।”

यह कह कर, बंसी कूलर चलाकर सो गया। उसकी पत्नी भजनलाल के घर चली गई। बंसी दो बजे सो कर, पांच बजे उठ गया। राधा ने आ कर बताया कि शायद संस्कार की तैयारी चल रही है। बंसी ने मुंह धो कर नींद का आलस दूर करने का प्रयास किया। उसके बाद चल पड़ा, पड़ौसी भजनलाल के घर की तरफ। जहाँ पर बंसी की तरह और भी अनेक व्यक्ति खड़े थे। सभी जानने का प्रयास कर रहे थे कि कौन-कौन आना बाकी है। भजनलाल के एक रिश्तेदार ने बताया कि बाकी तो सब आ चुके हैं। भजनलाल की छोटी बहन सुशीला आनी है। अभी फोन पर बात हुई है। दस-पंद्रह मिनट में पहुंचने ही वाले हैं। एक ने कहा आधा-पौना घंटा तो आने में और लगेगा। फोन पर तो ज्यादातर झूठ ही बोलते हैं। वृद्धा करतारो की अंतिम यात्रा में शामिल होने आए सभी लोग परेशान थे। सभी सोच रहे थे। कब आएंगे रिश्तेदार? कब शमशान पहुंचेंगे? कब औपचारिकताओं से पीछा छूटेगा?

 सभी कह रहे थे, “जल्दी करो, दिन छिपने से पहले-पहले होता है अंतिम संस्कार। सभी अपनी-अपनी बेचैनी छुपा कर, तरह-तरह के तर्क देकर, अंतिम संस्कार जल्दी करने की कह रहे थे। पहले तरह-तरह की बातें चलीं। उसके बाद हंसी-मजाक पर आ गए। अब किसी को लग ही नहीं रहा था कि ऐसी हंसी-ठिठोली वो लोग कर रहे थे, जो अंतिम संस्कार में शामिल होने आए हैं। चर्चाएं चलीं किसकी पत्नी, कितनी सुंदर है? कौन-कौन अपनी पत्नी से डरता है। फलां का तलाक क्यों हुआ? फलां शारीरिक तौर पर कमजोर है, इसलिए उसकी पत्नी तलाक ले गई। मातम करने वालों की संवेदनहीनता को देखकर, संवेदनहीनता स्वयं पानी-पानी थी।

 एक ने कहा, “भजनलाल का भाई किशनलाल दिखाई नहीं दे रहा।”

तो दूसरे ने कहा, “भजनलाल से उसकी कब बनती है? दोनों भाई एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं।”

 एक ने चुटकी ली कि भाई-भाई की कभी नहीं बिगड़ती अगर बीच के लोग अपनी करामात न दिखाएं तो। सबको पता है, सीख तो पत्थर को भी फाड़ देती है। एक वो भी समय था, जब भजनलाल और किशनलाल दोनों भाइयों के प्रेम-प्यार की मिशाल दी जाती थी। दोनों में अत्यधिक स्नेह था। जब से अनाम सिंह का भजनलाल के साथ उठना-बैठना हुआ है। तब से दोनों भाइयों के बीच की दूरियां बढती ही गई। खैर कुछ भी हो इस अवसर पर तो गिले-शिकवे एक तरफ रख कर, किशनलाल ने आना ही चाहिए था। एक ने कहा कि हमने भी तो कोई प्रयास नहीं किया। अगर हम प्रयास करें तो, शायद आज दोनों भाइयों के बीच की दूरी को पाटा जा सकता था। यही गमी - खुशी के अवसर टूटे हुए परिवारों को जोड़ देते हैं। उसी भीड़ में खड़ा राजकुमार नाम का अधेड़ व्यक्ति, जिसके चेहरे से व्यवहारिकता और जीवन का अनुभव झलक रहा था।

राजकुमार ने कहा, “मैं कुछ प्रयास करता हूँ।”

 कह कर भीड़ से निकल कर किशनलाल के घर की तरफ चल पड़ा। किशनलाल का घर, भजनलाल के, घर के बगल में ही है। सब के मन में अवधारणा है कि दोनों भाई किसी भी कीमत पर एक नहीं हो सकते। थोड़ी देर बाद राजकुमार, किशनलाल के घर से निकला। सभी ने उत्सुकतावश उसे घेर लिया और जाना क्या रहा?

राजकुमार ने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं कि किशनलाल न आए, वो आएगा। उसका कहना है कि उसके घर भी उसके मेहमान आए हुए हैं। वह उनके चाय-पानी से निवृत हो कर आएगा।”

राजकुमार ये बातें कर ही रहा था। माता करतारो की अर्थी भजनलाल के घर से निकली। सभी लोग परम्परानुसार पीछे-पीछे चल पड़े। किशनलाल भी अपने घर से निकल शव-यात्रा में शामिल हो गया। जब उसने अपनी मां की अर्थी को कंधा देना चाहा तो भजनलाल के बेटे ने विरोध किया। राजकुमार जैसे व्यक्तियों ने बीच बचाव करवाया।

माता करतारो को कभी अपने बेटों पर पूरा गुमान होता था। वह कहती नहीं थकती थी कि उसके बेटों की जोड़ी नल-नील जैसी है। दोनों भाइयों में अगाध प्रेम था। दोनों एक ही थाली में खाते थे। वे एक - दूसरे बिन पल भर भी नहीं रहते थे। इकट्ठे खेलना, इकट्ठे पढ़ना, इकट्ठे शरारत करना। दोनों में नाखून - मांस का सा मेल था। लेकिन अनामसिंह ने भजनलाल पर जाने क्या मंत्र मारा? दोनों भाई एक - दूसरे के धुर विरोधी हो गए। माता करतारो, दोनों को एकजुट देखने के लिए तड़पती हुई चल बसी। वो दोनों को एक साथ देखना चहती थी। जो उसके जीते जी संभव नहीं हो सका। हां अंतिम - यात्रा में दोनों भाई कंधा देने के लिए, एक - दूसरे के करीब जरूर आए। लेकिन यहां भी उनके बीच ईर्ष्या व नफरत की मोटी दीवार थी। इस दीवार को मां की मृत्यु भी नहीं ढहा पाई। अनेक उदाहरण हैं, ऐसी परिस्थितियों में टूटे हुए परिवार जुड़े हैं। लेकिन भजनलाल व किशनलाल दोनों ही अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए। बात - बात को नाक का सवाल बनाते रहे। एक वो भी समय था, जब एक को जरा सी चोट लगती तो दूसरा भी रो पड़ता था। आज इतनी बड़ी चोट खा कर भी वे दुख सांझा नहीं कर पा रहे। इसे अपना दुख नहीं अपना - अपना दुख मान रहे थे।

माता करतारो का पार्थिव शरीर लकड़ियों से बनी चिता पर सुशोभित किया गया। मां के मुंह में देशी घी जबरन डाला गया। जीते जी तो माता लम्बे समय से घी नहीं खा सकी थी। डॉक्टरों ने बंद करवा रखा था। लेकिन आज पूरा एक कनस्तर घी माता पर उडेल दिया। क्रियाक्रम के दौरान सभी लोग अपने मन माफिक दिशा - निर्देश दे रहे थे। उन्हें चाहे कोई सुन रहा था या नहीं। सभी अपने अनुभवी होने का प्रमाण - पत्र लिए घूम रहे थे। दोनों भाइयों ने मिलकर मुखाग्नि दी। मुखाग्नि देते समय आगे - आगे भजनलाल, पीछे - पीछे किशनलाल बड़े सुंदर लग रहे थे। मानो वे बचपन में इकट्ठे खेले, किसी खेल का अभिनय कर रहे हैं। इकट्ठे मुखाग्नि देने की तरह, बाकी जीवन भी एक - दूसरे का सहयोग करते हुए, व्यतीत करते तो कितना सुंदर होता। लेकिन यह सहयोग अंतिम संस्कार तक ही सीमित रहा।

अंतिम संस्कार के बाद भजनलाल के रिश्तेदार, भजनलाल के घर जा बैठे। किशनलाल के रिश्तेदार, किशनलाल के घर जा बैठे। कुछ सांझे रिश्तेदार थे, जो तय नहीं कर पाए किधर बैठना है। वे अपनी - अपनी गाड़ी में जा बैठे और अपने - अपने घर की ओर रवाना हो गए। भजनलाल के घर सारी व्यवस्था अनाम सिंह ने संभाल ली। किशनलाल के घर सारी व्यवस्था उसके साले राजेश ने संभाल ली। तेरह दिन दोनों तरफ, उनके अपने - अपने मित्र - प्यारे, सगे - संबंधी, रिश्तेदार, सहकर्मी व मिलने वाले मातम पुरषी करने आए। भजनलाल के घर अनाम सिंह सबको बता रहा था। 28 तारिख को, शहर की फलां धर्मशाला में माता करतारो की याद में कीर्तन रखा गया है। जहाँ हमारे गुरु जी पूरी संगत को आशीर्वाद दे कर व प्रवचन सुना कर पुन्य के भागी बनाएंगे। गुरु ने व्यस्त समय के बावजूद हमारे लिए समय निकाला है। हम बड़भागी हैं। गुरु जी का समय बहुत कीमती है। इनके यहाँ तो बड़े - बड़े नेता, विधायक, सांसद, मंत्री व प्रशासनिक अधिकारी, मिलने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं। हम धन्य हैं, जो खुद - खुदा चल कर, हमारे पास आ रहे हैं। अनाम सिंह बड़े आकर्षक व रोचक अंदाज में कीर्तन व गुरु जी की महिमा का गुणगान कर रहा था। उधर किशनलाल का साला राजेश मौर्चा संभाले हुए था। जो कह रहा था। माता जी की आत्मिक शांति के लिए 28 तारिख को यहाँ घर पर ही गरुड़ पुराण का पाठ रखा हुआ है। पहुंचने का कष्ट जरूर करें।

करते कराते 28 तारिख आ गई। दोनों भाइयों ने भव्य मृत्युभोज के आयोजन किए। भजनलाल के मित्र, रिश्तेदार, सहकर्मी व गुरभाई धर्मशाला में जा पहुंचे, सबने स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। कीर्तन सुना। गुरु जी को नगद भेंटस्वरूप रुपये भी चढाए। गुरु जी ने भी उसी ढ़ंग से आशीर्वाद दिया। जितने का नोट चढाया गया। स्टेज के नीचे माता करतारो का फोटो फूल माला डाल कर रखा हुआ था। गुरु जी ने प्रवचन किए। भजनलाल को योद्धा का दर्जा दिया और बताया कि भजनलाल धन्य है, जिसने माता की आत्मिक शांति के लिए आश्रम के अनुसार आयोजन किया। इस आयोजन के लिए, अपने कुल की, परिवार की, सभी परम्परा तोड़ दी। यहाँ तक कि सगा मां जाया भाई भी छोड़ना मंजूर किया। गुरु जी कीर्तन उपरान्त सारी दान - राशी व उपहार लेकर, अपने किलेनुमा आश्रम की ओर प्रस्थान कर गए। संगत भी कीर्तन सुन कर अपने - अपने घर चली गई।

उधर किशनलाल ने अपने घर कथावाचक बैठाए, जिन्होंने किसी के न समझ में आने वाली भाषा में गरुड़ पुराण का पाठ किया। बेशक किसी को कुछ समझ न आया हो। परन्तु लाउडस्पीकर की आवाज पूरी कॉलोनी में सुनी जा सकती थी।

कथावाचक ने बताया, “किशनलाल धर्म परायण व्यक्ति है। जिसने सनातन परम्परा अनुसार अपनी माता जी की आत्मिक शांति के लिए गरुड़ पुराण का पाठ करवाया। किशनलाल ने अपना धर्म, कुल की मर्यादा, कुल की परम्परा को नहीं छोड़ा, अपने मां जाए भाई को छोड़ना स्वीकार किया। कथावाचक के आसन के पास यहाँ भी माता करतारो का फोटो फूल - माला डाल कर रखा हुआ था। फोटो में माता करतारो की आंखें दोनों भाइयों को एक साथ देखना चाहती थी। लेकिन परिस्थितियों और व्यवस्था ने उन्हें एक नहीं होने दिया।


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