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Dinesh Dubey

Inspirational

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Dinesh Dubey

Inspirational

क्रोध

क्रोध

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एक राज्य का राजा बहुत ही क्रोधी स्वभाव का था। वह बात बात पर क्रोधित हो जाता औऱ तुरंत ही सजा का ऐलान कर देता। चाहे वह सेवक हो ,मित्र हो या परिवार का कोई भी सदस्य हो वह किसी को नही छोड़ता था।

उसके सारे दरबारी औऱ नौकर चाकर उससे थर थर कांपते थे। हर समय सभी भगवान से बस यही मनाते थे कि उनसे क़भी कोई ग़लती ना हो , वरना राजा उन्हे छोड़ेगा नहीं।

एक दिन की बात है। राजा अपने राजमहल में ख़ूब आराम से बैठकर छप्पन भोग का भोजन कर रहा था।उसी समय अचानक खाना परोस रहे नौकर के हाथ से थोड़ी सी दाल राजा के कपड़ों पर छलक गई ।नौकर डर के मारे थर थर कांपने लगा ।

राजा के तो क्रोध की कोई सीमा न रही औऱ वह तुरंत आग बबूला हो गया।

वह नौकर थोड़ा हिम्मती और समझदार था ,उस ने जरा साहस कर राजा कि तरफ देखा पर वह थोड़ा घबराया लेकिन तभी कुछ सोचकर उसने प्याले की बची सारी दाल भी राजा के कपड़ों पर उड़ेल दी ।

अब तो राजा के क्रोध की कोई सीमा न रही ही तो एकदम से आग बबूला हो उसने नौकर से चिल्लाकर कहा '*"बेवकूफ...तुमने जान बूझकर ऐसी गुस्ताख़ी करने का दुस्साहस कैसे किया ,मौत का भी डर नहीं तुमको ??

नौकर ने बेहद गंभीर भाव से हाथ जोड़कर उत्तर दिया.*"..महाराज, पहले जब आप पर थोड़ी सी दाल गिरी तो आपका गुस्सा देखकर मैनें समझ लिया था कि अब मेरी जान नहीं बचेगी ,लेकिन फिर मैंने सोचा कि लोग कहेंगे कि एक ताकतवर राजा ने एक मामूली सी गलती पर अपने एक बेगुनाह ग़रीब नौकर को मौत की सजा दे दी । ऐसे में आपकी ही बदनामी होती, तब मैनें सोचा कि सारी दाल ही उड़ेल दूं ताकि दुनिया आपको बदनाम न कर सके और मुझे ही अपराधी समझे ।कम से कम आपके बारे में किसी को कुछ बोलने का मौका न मिले क्योंकि मेरे जीवित रहते कोई मेरे महाराज मेरे मालिक के बारे में गलत बात बोले ,ये मुझें कतई बर्दाश्त नहीं होगा महाराज।"

राजा को झटका लगा , उसके जबाव में एक गंभीर संदेश के दर्शन हुए और उसे अनुभव हुआ कि सेवा भाव कितना कठिन है, जो समर्पित भाव से सेवा करता है, उससे कभी कभी गलती भी हो सकती है, फिर चाहे वह सेवक हो, मित्र हो या फ़िर परिवार का ही कोई सदस्य । ऐसे समर्पित व वफ़ादार लोगों की गलतियों पर नाराज न होकर उनके प्रेम व समर्पण का सम्मान करना चाहिए।शास्त्रों में भी कहा गया है कि *क्षमा वीरों का आभूषण है* अर्थात वीर,पराक्रमी औऱ समर्थवान व्यक्ति को हमेशा दयालु ही होना चाहिए।

प्रजा के पालक पर क्रोध शोभा नही देता।



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