कर्म
कर्म
एक बार एक व्यापारी भक्त मन्दिर गया ! उसने पैरों में महँगे और नये जूते पहन रखे थे,उसे जूते की फिक्र होने लगी ,उसने सोचा कि क्या करूँ ?
यदि बाहर उतारता हूँ तो कोई उठा न ले जाये और अंदर पूजा में मन भी नहीं लगेगा सारा ध्यान जूतों पर ही रहेगा। तभी उसे बाहर एक भिखारी बैठा दिखाई दिया !
उस व्यापारी ने भिखारी से कहा - भाई ! मेरे जूतों का ध्यान रखोगे ?जब तक मैं पूजा करके वापस न आ जाऊँ !
भिखारी ने भी हाँ में सिर हिला दिया !
अंदर पूजा करते समय व्यापारी ने सोचा - हे प्रभु !आपने यह कैसा असंतुलित संसार बनाया है ?
किसी को इतना धन दिया है कि वह पैरों तक में महँगे जूते पहनता है तो किसी को अपना पेट भरने के लिये भीख तक माँगनी पड़ती है। कितना अच्छा हो कि सभी एक समान हो जायें !
मन ही मन उस व्यापारी ने निश्चय किया कि वह बाहर आकर भिखारी को 100 रुपये का एक नोट देगा। लेकिन बाहर आकर उस ने देखा कि वहाँ न तो वह भिखारी है और न ही उसके जूते !
व्यापारी खुद को ठगा-सा महसूस किया था,तब भी कुछ देर भिखारी का इंतजार भी किया कि शायद वह किसी काम से कहीं आस पास चला गया हो पर काफी समय उपरांत भी वह लौट कर नहीं आया !
व्यापारी दुखी मन से नंगे पैर घर के लिये चल दिया।
उसने रास्ते में फुटपाथ पर देखा कि एक आदमी जूते चप्पल बेच रहा है !
व्यापारी चप्पल खरीदने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचा तो क्या देखा है कि उसके जूते भी वहाँ बेचने के लिए रखे थे !
व्यापारी ने दबाव डालकर उस जूते बेचने वाले से अपने जूतों के बारे में पूछा तो उस आदमी ने बताया कि एक भिखारी उन जूतों को 100 रुपये में बेच गया है !अगर आपका है तो मेरे 100 रुपए देकर के जाइए,मुझे झंझट नहीं चाहिए।
व्यापारी ने वहीं खड़े होकर कुछ सोचा और मुस्कराते हुए उसे 100 रुपए दे जूते पहन घर के लिये चल दिया !
व्यापारी को उसके सवालों के जवाब मिल गये थे कि समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती !
क्योंकि हमारे कर्म कभी भी एक समान नहीं हो सकते और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन संसार और समाज की सारी विषमतायें समाप्त हो जायेंगी !
ईश्वर ने हर एक मनुष्य के भाग्य में लिख दिया है कि किसको कब और क्या और कहाँ मिलेगा। पर यह नहीं लिखा होता है कि वह कैसे मिलेगा ?
यह हमारे कर्म तय करते हैं। जैसे कि भिखारी के लिये उस दिन तय था कि उसे 100 रुपये मिलेंगे। पर कैसे मिलेंगे ? यह उसके कर्मो पर था ,उसने व्यापारी के जूते उठा कर बेच दिए ,जबकि व्यापारी ने तो उसे सौ रुपए देने की सोच ही लिया था ,और भिखारी को सौ रुपए मिलना था ,उसे मिला।
