कोरोना से पहले !
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भगवान का दरबार सजा था। सभी फरियादियों की भीड़ लगी थी। भगवान ने सिंहासन पर बैठते ही देखा, धरती समेत सभी जानवर थे, सिर्फ़ इंसान नहीं था।बहुत शोर हो रहा था। प्रभु ने हाथ से इशारा किया। सभी चुप हो गए। भगवान ने ब्रह्मा जी की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा।आज इतनी भीड़?प्रभु, सभी अपनी फ़रियाद लेकर आये है।क्या फ़रियाद?सभी जानवरों ने धरती माँ की ओर देखा। धरती माँ आगे बढ़ी। भगवान के सामने हाथ जोड़ कर सिर झुका कर खड़ी हो गयी।
"हाँ वसुन्धरा, बोलो ! " प्रभु ने अपने गम्भीर वाणी में पूछा।
"भगवन, सभी जानवरों ने मुझ से प्रार्थना कि है कि मैं उन सब की बात आप तक पहुँचाऊँ।"
"हाँ हाँ बोलो, हिचक कैसी। लगता है बात कुछ ज्यादा ही गम्भीर है।"
"हाँ भगवन, बात तो गम्भीर ही है। पृथ्वी ने भूमिका बनाते हुए कहाँ। जब आपने मुझे बनाया था, मुझ पर पेड़ पौधें लगाये थे, उसके बाद आपने जानवर बनाये। दुनिया बहुत अच्छी चल रही थी। मैं पूरी हरीभरी थी। मुझ पर पानी था, साँस लेने को शुद्ध हवा थी। फ़िर प्रभु आपने इन्सान बनाया। आप अपनी रचना पर बहुत ख़ुश थे। उसे बुद्धि दी, विवेक दिया। शुरू में सब ठीक था। फ़िर धीरे धीरे इन्सान नई नई चीजें खोजने लगा। अपनी सुख सुविधा के साधन जुटाने लगा। इस सब में वो इतना खो गया कि सब कुछ भूला बैठा है। इन बेचारे निरीह जानवरों को भी नहीं बख्शा। इनके रहने के स्थान भी नहीं छोड़े। मुझे बंजर बना डाला। मुझ पर से पानी ख़त्म होता जा रहा है। जानवरों की संख्या घट कर शून्यता पर आ रही है। इन्सान बढ़ता ही जा रहा है।प्रभु , उसने अपने आप को ही धर्मों में बाँट लिया है। सब एक दूसरे से लड़ते रहते है। आपस में खून बहाने से भी नहीं डरते। मुझ पर हर तरफ़ अफरा तफ़री का माहौल है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूँ? हम सभी आपके चरणों मे उपस्थित हुए हैं। भगवन आप ही हमें बचा सकते है।"
भगवान के मुख पर चिन्ता की रेखाएं उभर आई। आज तक प्रभु इतने गम्भीर नहीं हुए थे। धरा की सारी बातें सुनने के बाद वो बड़ी सोच में डूब गए थे। सभी एक आशा भरी नजरों से उन्हें निहार रहे थे।लगता है इन्सान को सबक सिखाने का समय आ गया है। धरती पर अपने आप को मुझ से भी बड़ा समझने लगा है। प्रभु की आँखों में धीरे धीरे गुस्सा उभरने लगा था। सभी जानवर और धरती सहम से गये। "तुम सभी वापिस जाओ। जल्दी ही इस समस्या का समाधान करने वाला हूँ। चिन्ता न करो।"