कोरेन्टाइन यानि एकांत वास
कोरेन्टाइन यानि एकांत वास
एक दिन मैं ऑफिस में काम कर रहा था कि मेरे साथ काम करने वाले एक साथी सुनील का फोन आया " मैं कोरोना पोजिटिव निकला हूं "
यह सुनकर मैं धक्क से रह गया। धक्का इस बात का नहीं लगा कि सुनील को कोरोना हो गया है। बल्कि धक्का इस बात का लगा कि मैं परसों ही सुनील के साथ उसकी कार में बैठकर आया था। अब तो मेरी हालत खराब हो गई। लगा कि अब अपना भी नंबर आ गया है। कोरोना देवता के आगमन की पदचाप सुनाई देने लगी थी।
मैं इस घटना के परिणाम के बारे में सोचने लगा । अगर मुझे कोरोना हो गया तो मुझसे सब घरवालों को भी हो जाएगा। और एक बार यदि कोरोना का प्रवेश घर में हो गया तो पता नहीं क्या होगा ? बड़ी मुश्किल घड़ी आ गई थी, अब क्या करें ?
सबसे पहले एक ही आइडिया आया कि अपने आप को " कोरेंटीन" कर लिया जाए। मतलब एकांत में रहा जाये। आजकल एकांतवास का नया नामकरण हुआ है। कोरोना ने कुछ नये नये शब्द दे दिए हैं। जब कभी कोरोना के योगदान की चर्चा होगी तब ये शब्दों का उल्लेख अवश्य होगा। कोरेन्टाइन होने से कम से कम घरवालों को तो कोरोना के प्रकोप से बचाया जा सकेगा। यह सोचकर मैंने श्रीमती जी से कहा
" सुनो , वो ऊपर वाला कमरा ठीक कर दो। आज से मैं उसमें ही रहूंगा सात दिन तक "। और यह कहकर मैं नहाने चला गया।
जब मैं नहाकर वापस आया तो देखा कि श्रीमती जी लगातार रोए जा रहीं हैं। कुछ भी नहीं बोल रही हैं। मैंने बहुत पूछा कि बेचारे आंसुओ को इतना कष्ट क्यों दे रही हो, लेकिन उनके रुदन में कोई कमी नहीं आई और मुंह से कोई बोल भी नहीं फूटे। मैं अभी कुछ और कह पाता कि इतने में मोबाइल बज उठा। हमारे साले साहब का फोन था
" हैलो जीजा। जे मैं का सुन रहा हूं। किसी और छोकरियाँ से चक्कर चला रहे हो का ? कान खोलकर सुन लो जीजा। इधर उधर मुंह मारने की आदत छोड़ दो अब। चुपचाप अपनी घर गृहस्थी संभालो वरना इतना बजाएंगे कि तबीयत हरी हो जाएगी"।
मैं कुछ बोलता उससे पहले ही उसने अपना फरमान सुनाकर फोन काट दिया। मैं सन्न रह गया। इस बेवकूफ को किसने बताया कि मेरा कोई चक्कर चल रहा है ? ये बात श्रीमती जी के अलावा और कौन कह सकता है ?
मैंने श्रीमती जी की ओर देखा। वो अभी भी रोए जा रही थी। मैंने कहा " तुमने 'बेवकूफ' को कुछ कहा था क्या" ?
वो तुरंत समझ गई कि मैं किसकी बात कर रहा हूं। बोली " मैंने तो बस इतना ही कहा था कि आप मुझसे नाराज़ हो। और बता भी नहीं रहे हो कि क्यों नाराज़ हो। शायद छमिया भाभी से टांका फिट हो गया है आपका" ?
मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। " हे भगवान। ये औरत मेरे बारे में क्या क्या सोचती है ? माना कि छमिया भाभी पड़ोसन हैं पर पड़ोसन होने का मतलब यह तो नहीं कि ऐसा कुछ समझ लिया जाए "। मैं समझ नहीं पा रहा था कि श्रीमती जी की इस सोच पर हंसू या रोऊं ?
मैंने समझाने के उद्देश्य से कहा " भाग्यवान। मुझ पर ना सही , कोई बात नहीं, मगर कम से कम छमिया भाभी पर तो विश्वास कर लेती ? वो भी तो एक औरत है। औरतें तो औरतों को अच्छी तरह से जानतीं हैं " ?
वो बोली " इसीलिए तो डर लगता है। मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि वह तुमसे बात क्यूं करती है ? मुझसे तो करती नहीं सिर्फ तुमसे करती है। और तो और वो रसिकलाल जी , धोखेलाल जी और कपटी मल जी तो दिन रात उसके आगे पीछे घूमते रहते हैं लेकिन वह उनसे बात नहीं करती , केवल आपसे करती है। छिनाल कहीं की "
कोई छमिया भाभी को कुछ कहे , ये हमें बर्दाश्त नहीं होता। हमने कहा " देखो , हमें जो कहना है कह लो मगर खबरदार , छमिया भाभी के बारे में कुछ कहा तो " ?
इतना सुनते ही वह दहाड़ें मारकर रोने लगीं। हमने दोनों हाथ जोड़कर और फिर पैर पकड़कर माफी मांगते हुए कहा " हे मेरी अम्मा। ये क्या अंट शंट बके जा रही हो ? ऐसी वाहियात बात भी तुम्हारे दिमाग में कैसे आ सकतीं हैं ? अरे , मेरे साथी को कोरोना हो गया है। परसों ही हम लोग साथ साथ एक ही कार से आए थे। मुझे भी कोरोना होने की संभावना हो सकती है। इसीलिए मैंने ऊपर वाला कमरा ठीक करने के लिए कहा तुमसे जिससे मैं सेल्फ कोरेंटीन हो जाऊं। और तुमने तो तिल का ताड़ बना दिया।' मेरे मुंह से शोले निकलने लगे।
अब उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। " तो आपने पहले ही क्यों नहीं बता दी ये बात ? हम अपने भैया को तो अनाप-शनाप नहीं बकते " ?
हमने भी अब शरारत करते हुए कह दिया " क्या क्या कह दिया उस बेवकूफ से ? "
वो थोड़ा चिढ़ते हुए बोली " प्लीज़ , बेवकूफ मत कहिए न मेरे भाई को। माना कि अक्ल का कच्चा है पर वैसे एकदम सच्चा है।"
हमने भी ठहाका लगाते हुए कहा " अच्छा ठीक है। बेवकूफ नहीं कहते, इडियट कह देते हैं। अब खुश" ?
और वो बेलन लेकर मेरे पीछे भागी। मैं एकांत वास के लिए झट से कमरे में घुस गया।
