कितने बदल गए हैं आप
कितने बदल गए हैं आप
"अरे, आप अभी तक नहाए नहीं" ?
घर में पैर रखते ही श्रीमती जी ने प्रश्न दाग दिया।
"देवी जी, आप शायद भूल रही हैं कि आज रविवार है। रविवार मतलब आजादी का दिन" हमने चिढ़ाने वाले अंदाज में कहा।
"अरे हां, मैं तो भूल ही गई थी कि आज रविवार है। अब देखो न, ये स्कूल वाले रविवार को भी परीक्षाऐं रख लेते हैं। हम औरतों को एक ही तो दिन मिलता है थोड़ा आराम करने के लिये मगर ये अधिकारी लोग खुद तो ए सी में बैठकर आराम फरमाते हैं और हमें इस चिलचिलाती धूप में सड़ने के लिए छोड़ देते हैं"। भुनभुनाते हुए वे बोलीं।
विषय बदल गया था। अब बात एक अधिकारी और एक शिक्षक के बीच होने लग गई। वे शिक्षक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही थीं तो मुझे अधिकारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करना ही था। वैसे भी एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में मैं कभी स्कूल शिक्षा विभाग में नहीं रहा। हां, शुरूआती दौर में विकास अधिकारी अवश्य रहा जहां प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का प्रशासनिक कार्य देखना पड़ता था। तब स्कूल शिक्षा का बुरा हाल देखकर मैंने स्वयं के स्तर पर पंचायत समिति में पांचवीं बोर्ड की परीक्षाऐं करवाई थी। फिर उसी पैटर्न को हर जगह अपना लिया गया था।
कल रविवार को कक्षा 5 की परीक्षा थी और श्रीमती जी को उसमें ड्यूटी देनी थी। हमें "आजादी पर्व" मनाने का अवसर मिल गया था तो हम "प्रतिलिपि" के लिये "10वीं बोर्ड " शीर्षक वाली हास्य व्यंग्य की रचना लिखने बैठ गए थे। बाकी दिनों में तो समय मिल नहीं पाता तो सोचा कि शनिवार और रविवार का भरपूर उपयोग किया जाए। सो दत्त चित्त होकर लिखने बैठ गए। कब देवी जी आ गई, पता ही नहीं चला।
हमने बात आगे बढ़ाते हुए कहा "अधिकारियों को सरकार के आदेश मानने ही पड़ते हैं। हम शिक्षकों की तरह नहीं हैं कि जो मन में आये वही करें"। हमने जानबूझकर उन्हें छेड़ते हुए कहा। उन्हें छेड़ने में जो आनंद आता है वह और कहीं नहीं मिलता है।
एक तो भयंकर गर्मी और उस पर रविवार को भी ड्यूटी। उस पर शिक्षक वर्ग के ऊपर मेरा तंज ! बिजली गिरना लाजिमी थी। वैसे हम चाहते भी थे कि ये बिजली गिरे। वो जब भी ऐसे "चमकती" हैं , कसम से क्या खूब लगती हैं। उसके बाद गरजने लगती हैं तो बादलों सी गड़गड़ाहट सुनाई देती है।
"आपको भी अधिकारी किसी शिक्षक ने ही बनाया है। शिक्षक नहीं होते तो आप किसी खेत में घास खोद रहे होते"। वे तमक कर बोलीं।
"बिल्कुल सही कह रही हैं आप। और तब मेरे साथ भी कोई दूसरी महिला घास खोद रही होती"।
तीर सही निशाने पर लगा था। वे इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं कि मेरे साथ कोई और रहे। तुनक कर बोलीं
"ऐसे कैसे कोई आपके पास होती ? मुंह नहीं तोड़ देती मैं उसका" ?
मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था। श्रीमती जी को छेड़कर जो आनंद प्राप्त होता है वह अवर्णनीय है। हम भी कहां पीछे रहने वाले थे, तपाक से कहा
"क्या आप एक घसियारे से विवाह करतीं" ?
प्रश्न तीखा था मगर था सटीक। इसका जवाब मैं जानता था। मेरी उम्मीद के मुताबिक उन्होंने उसका जवाब दिया भी नहीं। विषय बदलते हुए वे कहने लगीं
"सुनो, ATM से पैसे निकलवा लेना। बाजार चलना है"।
"कोई खास खरीददारी करनी हो तो ज्यादा पैसे निकलवाऊं" ?
"नहीं, कोई खास नहीं। बस, 5-6 शर्ट ही लेनी हैं।"
"आपने कब से शर्ट पहननी शुरू कर दी यार" ? हमने अचंभे से पूछा।
उन्होंने खा जाने वाली नजरों से घूरा और बोलीं
"आपने कब से शर्ट नहीं खरीदी हैं" ?
"अरे, अभी बिटिया की शादी पर ही तो नये कपड़े सिलवाये थे। अभी तो दो महीने ही हुए हैं"।
"हां, पर वो तो सर्दियों के थे। आपके पास हाफ शर्ट नहीं हैं। पिछले दो साल से आप कोरोना का बहाना बनाकर टालते आ रहे हैं। मगर आज तो मैंने पक्का कर ही लिया है कि आज आपको 5-6 हाफ शर्ट तो दिलवाने ही है"।
उनकी ये बात सही थी कि पिछले दो तीन साल से मैंने कोई हाफ स्लीव्ज वाली शर्ट नहीं खरीदी थी। पर मुझे लगता था कि अभी भी 10-15 शर्ट तो होंगी ही। मैंने कहा "बहुत सारी शर्ट हैं मेरे पास। मुझे नहीं लेनी कोई शर्ट"।
उन्होंने मुझे फिर से घूरकर देखा। कहने लगीं
"कितने बदल गए हैं आप ? पहले तो आप हर महीने कुछ न कुछ लेते थे। अब दो साल से भी ऊपर हो गया और अभी भी आनाकानी कर रहे हैं आप ? इतने कंजूस तो नहीं थे आप पहले। सच में, बहुत बदल गए हो आप।"
आदमी चाहे कुछ भी कहलाना पसंद कर ले मगर कंजूस कहलाना उसे पसंद नहीं है। हमें बड़ा बुरा लगा
"आपको मैंने कभी मना किया ? कभी रोका ? कभी टोका ? आपने एक के लिए कहा, मैंने दो दिलवाई। फिर भी कंजूस बता रही हो मुझे" ?
उन्होंने मेरे कंधे पर सिर टिकाते हुए मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा "अरे बाबा, आप अपने लिए कंजूस हैं। मुझे तो रानी बनाकर रखते हैं मगर खुद का ध्यान नहीं रखते हैं। तो मुझे रखना पड़ेगा। एक रानी को एक "राजा" के साथ ही रहना चाहिए ना ? आज कुछ नहीं सुनूंगी मैं आपकी। बस, शर्ट लेनी हैं तो लेनी हैं"।
ऐसा अचूक अस्त्र दे रखा है ब्रह्मा जी ने इन औरतों को कि हम मर्द लोग एक ही झटके में "चित्त" हो जाते हैं। सरेंडर करने के अलावा कोई विकल्प छोड़ती ही नहीं हैं ये। आखिर में बाजार जाना ही पड़ा। तीन शर्ट और दो टी शर्ट तो ले ली हैं मैडम ने कल। लेकिन अभी शॉपिंग पूरी नहीं हुई है उनकी। बाकी अगले सण्डे को प्लान किया है उन्होंने। हमसे सलाह लेना भी जरूरी नहीं समझा है।

