किसी से कहना मत
किसी से कहना मत
हरिया डकैत चम्बल के बीहड़ों में पनपने वाला नामी डकैत था।उसका नाम ही भय का प्रतीक बन चुका था। बड़े बड़े सेठ साहूकार उसके द्वारा लूटे जा चुके थे। पुलिस के लिए वह एक सिर दर्द बन चुका था। लेकिन हरिया बहुत ही चालाक डाकू था।वह लाख प्रयत्न के बावजूद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका।असल में पुलिस में ही उसके आदमी थे और इस कारण उसे पुलिस की रणनीति का पहले ही पता चल जाता था और वह बच निकलता। राजस्थान के भोजपुर गांव में धनसिंह पटेल की चम्पा घोड़ी उस समय लगभग सौ कोस तक विख्यात थी। दौड़ते समय हवा से बात करती थी। हरिया डकैत की बहुत दिनों से चम्पा घोड़ी पर निगाह थी, लेकिन वह उसे हथियाने में सफल नहीं हो पाया था।धनसिंह पटेल भी नामी व्यक्ति था। इलाके में उसकी धाक थी। पांच पहलवान जैसे बेटे, तीन पचफेरा राइफल, तलवार, गंडासे और अन्य बहुत से हथियार घर में मौजूद थे। डांग क्षेत्र में रहने वाले बड़े घरानों को यह सब रखना पड़ता था। परिवार के जान,माल की रक्षा स्वयं के वल बूते ही संभव थी। पुलिस प्रशासन के भरोसे कुछ होने जाने वाला नहीं था।
धनसिंह पटेल न्याय प्रिय, धर्मनिष्ठ, और ईश्वर में आस्था रखने वाला व्यक्ति था। चम्पा घोड़ी धनसिंह पटेल के घर की शान थी। उसकी चौकसी भी वे बड़े ध्यान से करते थे और यही कारण था कि हरिया डकैत उसे लेजाने में सफल नहीं हो पाया था, लेकिन हरिया डकैत भी बहुत चालाक आदमी था और साथ में निडर भी। एक दिन हरिया डकैत ने एक साधू का भेष बनाया और फिर पहुंच गया धनसिंह पटेल के घर पर।शाम ढल चुकी थी और रात्रि की वेला आ गई थी।साधू को धनसिंह पटेल ने बड़े प्रेम से भोजन कराया और बाहर बैठक में सुला दिया। तीन बेटे रिस्तेदारी में गये हुए थे दो घर पर ही सो रहे थे। हरिया डकैत को नींद कहां आनी थी,वह सोने का बहाना कर के खर्राटे भरने लगा और रात्रि के बारह बजे वह पेशाब करने के बहाने से उठा। पेशाब कर के हरिया ने चुपचाप चम्पा घोड़ी को खोला और तुरंत उसकी पीठ पर सवार हो गया।धन सिंह पटेल को भी पता चल गया और उसने अपने बेटे को आवाज दी तथा हाथ में लट्ठ लेकर हरिया के पास आया लेकिन तब तक हरिया चम्पा घोड़ी की पीठ पर सवार हो चुका था। धनसिंह पटेल ने जैसे ही लट्ठ उठाया कि हरिया ने घोड़ी को एड लगाई और चम्पा घोड़ी हवा से बात करने लगी। धनसिंह भी पीछे पीछे दौड़ा। थोड़ी दूर जाकर हरिया डकैत ने घोड़ी को रोका और पीछे घूम कर बोला, "अरे धनसिंह पटेल देख मैं हूं हरिया डकैत। तेरी चम्पा घोड़ी को ले जा रहा हूं, तुझसे बने सो करले।"
धनसिंह पटेल ने गौर से देखा और बोला,"देख हरिया तू बहादुरी से तो नहीं ले जा सका, तेने छल किया है। लेकिन सुन एक काम मेरे कहने से जरूर करना।इस घटना का जिक्र किसी से करना मत। ये किसी से कहना मत कि तू चम्पा घोड़ी को कििस प्रकार लाया।" हरिया डकैत को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा कि "क्यों इससे क्या होगा ?"
धनसिंह पटेल बोला,"तू नहीं समझेगा हरिया तू डकैत है, तेने लोगों को लूूूटा है।यदि लोगों को ये पता चलेगा कि तू ने साधू बनकर ये काम किया है तो लोग किसी भी साधू संत पर विश्वास नहीं करेंगे। और समाज को बड़ी हानि होगी।पता नहीं हरिया डकैत कुछ समझा कि नहीं समझा ? उसने चम्पा घोड़ी को एड लगाई और चम्पा हवा की तरह दौडती चली गई।सुुुना है कि छः महीने बाद धनसिंह पटेल के बेटे घोड़ी को बापिस लाने में सफल हो गए।
धनसिंह पटेल आज भी विश्वास के साथ साधू संतो का आदर सत्कार करता है और अन्याय के खिलाफ संघर्षरत है।
रामचरित मानस में कहा गया है कि,
मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा। पंचम भजन सो वेद प्रकाशा।।