किस डे
किस डे
किस, प्रेम की अभिव्यक्ति भर ही तो है और प्रेम जितना सहज सरल अभिव्यक्ति भी उतनी ही सहज सरल। मेरी नन्ही परी मुझे दिन भर में 20 किस तो कर ही देती है, बिना किसी खास वजह के बिना किसी खास अवसर के। और यह अभिव्यक्ति तृप्ति लाती है पर पूर्ण हो जाने वाली तृप्ति कभी नहीं लाती।
कुछ क्षण के लिए भी नहीं। कभी अपने किसी रूचिपूर्ण कार्य में व्यस्त हो तो भी मैं जबरदस्ती किस कर दूँ, तो बड़ी मासूमियत से गाल पौंछने का उपक्रम करती है, उसके एक बार पौंछने पर मैं चार और कर देती हूँ। फिर या तो वो पलट कर मुस्कुरा जाती है या वो भी जल्दी से उठ मुझे किस कर देती है।
तो बस यही लगता है प्रेम सरल, सहज ही होना चाहिए, मौका, अवसर, मूड, दिन, दिखावा, छुपाव, बंदिशों, फॉरमैलिटी आदि से दूर अल्हड़, निश्छल, अनपढ़, अनगढ़, और बिना मिलावट किया हुआ।
