खून का रिश्ता
खून का रिश्ता
अचानक आँख खुली। खुद को अजनबी जगह पर पाकर मैं जोर से चिल्लाया, "कहाँ हूँ मैं ? कहाँ हूँ मैं?" तुरन्त एक नर्स मेरे सामने आई। उसके चेहरे पर खुशी थी। वह बोली,"आप चिल्लाईए मत। आपको चिल्लाना मना है।" मैं बोला, "कहाँ हूँ मैं?" जवाब मिला, "अस्पताल में।" "कैसे आया?"
मेरी तेज़ आवाज़ सुन और उत्तेजना देखकर नर्स ने मेरे बाजू में लगी सुई में इंजेक्शन डाल दिया। धीरे धीरे मेरी आँखें बंद होने लगी। नर्स की आवाज़ धीमे-धीमे कानों में आ रही थी,"इसकी फैमिली को बता दो कि इसे होश आ गया है।"
अब कुछ घंटों बाद फिर मेरी आँख खुली। अब मुझे पता था कि मैं अस्पताल में हूँ। मैंने धीरे-धीरे अपने सभी अंगों पर गौर किया। मेरे पाँव में पलस्तर चढ़ा था। मेरे सिर पर पट्टियां बंधी था। मुझे ड्रिप लगी थी। मुझे याद आ रहा था कि मैं कार ड्राइव कर रहा था और सामने से एक ट्रक आ रहा था। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं।
मेरी खुली आँखें देखकर नर्स मेरी तरफ दौड़ी। मैं शांत था। नर्स के चेहरे पर विजय जैसी खुशी थी। नर्स ने बताया कि मैं चंडीगढ़ के बड़े अस्पताल में हूँ। मौत के मुंह से बाहर आया हूँ।
थोड़ी ही देर में अनिता (मेरी पत्नी) मुझसे मिलने आई। उसे सिर्फ 2 मिनट ही मेरे पास आने की अनुमति थी। उसकी आँखों से आँसू छलक रहे थे मानो वह भगवान से मेरे जीवन के लौटने का शुक्रिया कर रही हो। वह बिना कुछ बोले चली गई। फिर माँ मेरे पास आई - दो मिनट के लिए। वह सिर पर हाथ फेर कर चली गई। मानो सारे जीवन का आशीर्वाद मेरे सिर पर रखकर चली गई हो। अब आए मेरे बच्चे - अतुल और अनन्या। दोनों मेरा एक हाथ पकड़े रहे, जब तक वे खड़े रहे। अतुल ने कहा,"दादा ने, दादी ने, माँ ने कितनी सारी मन्नतें मांगी हैं आपके लिए। इसलिए आप ठीक हो गए।" बापू नहीं आए मिलने। नाराज़ हैं ना मुझसे। मेरे व्यवहार से। प्यार करते हैं मुझे पर कहते नहीं हैं।
दो घंटे बाद फिर डॉक्टर आया। मेरा चेहरा देखा, नब्ज़ देखी, आँखें देखी। नर्स को कुछ दवाइयाँ बताकर चला गया। नर्स दवा देने आई। मैने उसे बैठने का आग्रह किया। उससे बात करना चाहा। उसने बताया कि बहुत ही बुरी हालत में अस्पताल पहुंचा। मुझे 15 दिन बाद होश आया। जूझता रहा ज़िन्दगी और मौत के बीच। नर्स ने बताया कि मुझे 10 यूनिट खून चढ़ा है। किसका खून था? ब्लड बैंक से लाया गया था खून। तुरंत मेरे ज़हन में कई प्रश्न एक साथ आने लगे-
क्या मुझे कालू का खून चढ़ा होगा? कालू, जिसे मैं घर पर रोज़-रोज़ अपमानित करता हूँ। उसकी जाति को छोटा कहता हूं। उसके बार बार बुलाने पर भी मैं उसके भाई की शादी में नहीं गया, यह सोचकर कि वह छोटा है। एक दिन तो मैंने उसे पीटा भी था। फिर भी मेरे घर पहुँचते ही कैसे प्यार से "बाबू जी, बाबू जी " कहकर बुलाता था। एक बार जब मुझे छुट्टी नहीं मिली थी और अनिता भी मायके गई थी और अनन्य को तेज़ बुखार हुआ था तो वही तो उसे डॉक्टर के पास लेकर गया था। जब मैं अनन्य को अस्पताल में देखने गया तो वही तो कालू ही तो था जो उसके माथे पर बर्फ की पट्टी रख रहा था। मैन कैसे उसे कमरे से बाहर कर दिया था।
क्या अनस का खून चढ़ा होगा? धर्म के नाम पर मैने उसके कितने प्यारे- प्यारे दोस्तों को उससे दूर करवा दिया। उस पर हमला भी करवाया था। उस हमले में उसकी 10 साल की बेटी भी मर गई थी। बचपन में वो मेरा कितना प्यारा दोस्त था। साथ- साथ स्कूल जाते थे, साथ - साथ खेलते थे। मुझे बड़ा होने पर ये क्या हो गया? क्यों नफरत करने लगा में उससे? वो तो मुझसे कभी गुस्सा भी नहीं हुआ? क्यों आया मेरे मन में उसके खिलाफ बात करना? उससे दूर होना, वो भी तो एक इंसान है, बहुत प्यार इंसान।
क्या ये खून मेरी पत्नी का होगा? वही जो दिन- रात मेरी सेवा में लगी रहती। फिर भी मैं हर वक्त उसमें कमियाँ ढूँढता रहता। उसे नीच दिखाने की कोशिश करता रहता। घर आते ही गर्म खाना खिलाती रही। मेरे कपड़े धोती रही। मेरा घर संभालती रही। मेरे बच्चों को शाम को पढ़ाती रही। और मैं? मैन कभी उसका दुख दर्द नहीं बांटा।
उससे सम्मान से बात नहीं की। क्यों नहीं दिया मैन उसे वो सम्मान जिसकी वो हक़दार थी।
आज वो नफरत अनस की, कालू की, अनीता की, मेरे दिल को रुला रही थी। मैं फूट-फुटकर रो पड़ा। नर्स चुप करवाती रही। मेरा रोना और तेज होता गया। जीवन में हमेशा अभिमान से, गर्व से जीने वाला आज स्वयं को सबसे छोटा महसूस कर रहा था। स्वयं को गालियां दे रहा था। पीट रहा था अपने आप को। आज समझ आया समानता का पाठ जो अध्यापिका रोज़ बताती थी कक्षा में ।
पश्चाताप के आँसू बहते रहे, बहते रहे, बहते रहे।
