खुशी के आंँसू
खुशी के आंँसू
रेखा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की छात्रा थी। वह हमेशा प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी और पुरस्कार भी प्राप्त करती आई थी। उसकी रुचि साहित्य और लेखन के क्षेत्र में बहुत ज्यादा थी।
रेखा की तमन्ना थी और वह चाहती थी कि उच्च शिक्षा प्राप्त करें और अफसर बने। पिताजी ने भी आर्थिक तंगी के बावजूद, बचपन से ही उसे यह भरोसा दिलाया था कि वह अपने इच्छानुसार पढ़ाई कर लेगी तभी उसकी शादी करवाएंगे।
तकदीर को कुछ और ही मंजूर था, जब वह ग्यारहवीं में पढ़ रही थी, एक रात पिता जी को सीने में भयंकर दर्द हुआ और अस्पताल ले जाने के क्रम में रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
किसी
तरह रेखा ने बारहवीं की परीक्षा दी। मामा जी ने एक संपन्न घर में रिश्ता तय किया, और उसके लाख मना करने पर भी शादी कर दी गई।
ससुराल काफी संपन्न जरूर था पर औरतों को स्वतंत्रता नहीं थी, उन्हें घर की चारदीवारी में ही रहना था। उसने जिंदगी से समझौता किया, पर अपना लिखना जारी रखा।
आज उसके युवा बेटे ने एक निमंत्रण पत्र पकड़ाते हुए कहा," माँ तुम्हारी रचनाओं को मैंने चुपके से प्रकाशित करवा दिया था। आज तुम्हारी रचना के लिए तुम्हें जिलाधिकारी से पुरस्कार
मिलने वाला है, अब तुम तैयार हो जाओ इस चारदीवारी से बाहर निकलने के लिए।"
रेखा ने छलक पड़े खुशी के आँसुओं को पोंछते हुए उसे गले लगा लिया!