ख़ुशी
ख़ुशी


एक दिन मूड़ बहुत ख़राब था। इतने में घंटी बजी। कामवाली आयी थी, उसे देखकर तसल्ली हुई कि चलो घर तो सिमट जायेगा। वो अपने काम में लग गई।मैं भी आराम से टी वी देखने बैठ गई। सोचा शायद इससे बेहतर लगे। अचानक से नज़र पड़ी तो देखा कि अम्मा अपना एक पैर थोड़ा ऊपर उठाकर चल रही थी। दक्षिण भारत में ज़्यादातर स्त्रियों को अम्मा कहकर ही सम्बोधित किया जाता है।
मैंने पूछा "क्या हुआ अम्मा पैर में?" उसने बताया "कुछ खास नहीं बस थोड़ा छिल गया है।" मैं उसके जवाब से संतुष्ट नहीं थी। मैंने कहा" दिखाओ।" जब देखा तो ज़ख़्म था। मुझे देखकर ही दर्द का एहसास हुआ तो उसे कितना दर्द होगा , आप समझ सकते हैं।
अम्मा ने बताया कि रास्ते में कुछ चुभ गया था। जब मैंने उसकी चप्पल देखी तो उसमें एक बड़ा छेद था
। वही से कुछ चुभा होगा।
मैंने उसे कहा तुम बैठो मैं दवा लगाती हूँ। वो हिचकते हुए बोली नहीं अम्मा मैं लगा लूंगी आप दे दो। मैंने कहा नहीं तुम बैठो मैं लगाती हूँ। मैंने उसके पैर के नींचे दवा लगाई , पट्टी बाँधी और उसे अपनी एक पुरानी चप्पल पहनने को दे दी। वो अम्मा हिंदी ज़्यादा नहीं जानती थी। अपनी भाषा में मुझे बहुत कुछ बोलती रही। मैं उसकी भाषा तो उतनी नहीं समझी पर उसकी आँखों का सुकून और खुशी मुझसे बहुत कुछ कह गया।उसकी छोटी सी मदद करके जो सुकून और खुशी मुझे मिली, ऐसा लगा शायद इसी की तलाश थी।
कितना अच्छा है ना किसी को खुशी देना। जब कोई हमारे कारण खुश होता है तो हम भी खुश और वो भी खुश।चलिये अपनी खुशी के लिए ही सही , हम खुशियां बांटे।देखिए ज़िंदगी बेहतर लगने लगेगी।