अपमान
अपमान
एक बार जब मैं कक्षा में गयी तो एक बच्चा अपना सिर डेस्क पर झुका कर रो रहा था। उसने तो पूछने पर कोई कारण नहीं बताया पर उसके साथ बैठी एक लड़की ने बताया कि कुछ बच्चे उसे काला कौआ कहकर चिढ़ाते हैं। इसलिए वो रो रहा है। जब मैंने पूछा कि कौन कौन चिढ़ाता है तो सभी ने एक दूसरे का नाम लेना शुरू कर दिया। बच्चे थे इतनी आसानी तो अपनी गलती मानने वाले नहीं थे।
ख़ैर मैंने पढ़ाना शुरू किया और कुछ देर बाद मैंने सभी बच्चों से कहा कि आज सभी एक एक कार्ड बनाओ। सभी ने अपने अपने हिसाब से कार्ड बनाये।
जब मैंने उनके कार्ड देखे तो कुछ बच्चों के कार्ड को हाथ में लेकर उनका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया।
ये सुनकर उन बच्चों के चेहरे ही उतर गए। उन्हें बुरा लगना स्वाभाविक ही था।
तब मैंने बच्चों से कहा कि मैंने तो कार्ड को बुरा कहा, तुम्हें क्यों बुरा लगा। एक बच्चे ने उठकर कहा कि मैडम कार्ड तो हमने ही बनाया है ना, तो बुरा तो लगेगा। हमारा अपमान किया है आपने।
तब मैंने बच्चों को समझाया कि यही बात मैं आपको समझाना चाहती हूं , अच्छा हम सबको किसने बनाया है, एक बच्चे ने कहा ईश्वर ने । अब बताओ जब हम किसी का मज़ाक उड़ाते हैं, तो हमें उसे बनाने वाले ईश्वर का मज़ाक उड़ाते हैं।
तब उस इंसान के साथ हम ईश्वर का भी अपमान करते हैं। ये सुनकर बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने उस रोते हुए बच्चे से माफ़ी माँगी।
रचना का अपमान, रचनाकार का अपमान है। याद रखिये।
उसके बाद कक्षा में खुशी का माहौल था।