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Nikita S Byali

Tragedy

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Nikita S Byali

Tragedy

कहाँ महफ़ूज़ हूँ मैं

कहाँ महफ़ूज़ हूँ मैं

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बेटियाँ न घर की न घाट की

विवाह करके जहाँ पैदा हुई वह से जाना पड़ेगा

जहाँ गयी वो तो किसी और का घर है

जहाँ पैदा हुई और जहाँ शादी करके गयी

दोनों ही नहीं तो कहाँ है मेरा घर।


अकेली लड़की खुली तिजोरी जैसी

यही कहते आया है समाज

एक लड़का इंसान के रूप में मृग

ऐसा क्यों नहीं कहा गया लड़को को।


लड़की बस में जाये या ट्रैन में

खुद की कार में जाये या पैदल

घर में हो या बाजार में हो

किसका भरोसा मृग कहाँ दिख जाये।


पापा की पारी से लेकर जो मजदूरी करती हो

अनपढ़ से लेकर जो डॉक्टर हो

चार महीने की बच्ची से लेकर बूढी औरत तक

कौन, कैसा, किसका, क्यों कुछ भी न जाने

बस मृग की तरह टूट पड़ते हैं बलात्कार करते हैं मासूमों का।


कुछ को इन्साफ मिला और कुछ को नहीं

और कुछ लोग इन्साफ के चक्कर में अपराधी ही मर गया

घर से लेकर देश-विदेश तक मुर्ग बैठे है

जरूरी सवाल ये है की लड़कियां महफ़ूज़ कहाँ हैं ?


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