कातिल
कातिल
क्या कहे के गुन्हेगार हम सब है कुछ गुनाह करके कुछ चुप रहके। मेरे भी है कुछ ऐसे ही गुन्हा है। जभी मै अकेला होता हु मुझे कुछ यादे याद आने लग जाता है। धुन्दला सा चेहरा। मुझे वो आँखें घूरने लग जाती है। तभी मैंने राजीव को देखा। राजीव आया है । अर्सो बाद। अब जख्म ताजाहोंगे। न मै आँखें मिला पाउँगा न सच बता पाउँगा।
"कैसे है आप किशोर चाचा? काफी साल हो गए आप से मिले ।" राजीव ने आते ही सवाल पूछा। वो अपने जूते उतार कर अंदर आया। उसकी आँखे पुरानी दीवार को देखके खुश थी। बचपन में इसी घर में वो खेलने आता जाता।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूँ बेटा।"
में कुर्सी में से उठा और राजीव से गले मिला। राजीव को मैंने बोहोत दिल लगाया। उसे किसी बात की कमी महसूस नहीं होने दी। इसे ही मैंने अपना प्रायश्चित मान लिया था।
मुझे आज भी याद है। जब वो १० साल का था तब उसके पिता मुझसे मिलने आए थे। उनकीआँखों में दुःख था। उनकी मौत करीब ही थी। उन्हें भी और ये बात मुझे भी पता थी। उन्होंने मुझसे दो कस्मे ली। राजीव को किसी भी हालत में अपनी माँ के बारे मे न पता चले। मैंने १० साल से जो बोझ उठाया था उसे वो मेरे मौत तक साथ रखने का वचन दिए वो चले गए। में कभी रोया नहीं आंसू आये थे पर वो किसी और के लिए।
"आप अपना ख्याल नहीं रख रहे। न ही आप मेरी कभी सुनते है। " राजीव के हाथ में एक बैग थी उसने उसे निचे रखा। और वो खुर्सी लेने अंदर के कमरे मे चला गया। मेरा मन चालबिचल होने लगा। अब कब तक में इसे अंदर ही रखूं ?
"चाची कहाँ है ?" उसे कुर्सी तो मिली पर चची कही दिखी नहीं। अनु ने बेहद लाड प्यार से पला था राजीव को।
"वो मंदिर गई है। आजाएगी कुछ देर में | तुम बैठो मै तुम्हें पानी देता _"
"आप रहने दे चाचा मै जल्दी में हूँ पानी वानी सब बाद में " उसने बैग से एक परचा निकला। सुनेहरा रंग था उसका। जैसे ही मैंने उसे देखा मैंने मेरा दिल भर आया।
"शादी ?"
उसने वो मेरे हांथो में थमाया। मेरी आंखो से आंसू आ रहे थे।
"काश तुम्हारी माँ _" मैंने खुदको रोका मेरा पर दिल बस इसी बात पे अड़ा रहा की कौनसी माँ?
वो माँ जिसने जनम दिया या वो जिसने_
"आप ही माँ हो और आप ही बाप " उसने मेरे चरण छू लिए।
कैसे कंहू कि मै इस लायक नहीं।
"बचपन से आप ही मेरे सबकुछ है। "
उसने मुझे कुसुम की तस्वीर दिखाई। उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी उसकी। काले घने बाल आँखों की चमक मानो ऐसी थी की तारे भी फीके लगे।
क्या दुनिया में सच में हमशकल होते है ? मुझे याद है ये चमक वो आँखे वो मुस्कुराहट।
मेरे हाथ पैर कापने लग गए एक चेहरा आँखों से जा ही नहीं रहा था । यादे अजीब होती है जब मर्जी याद आये जब मर्जी गुम हो जाए। बिलकुल अपनी माँ की तरह दिखने वाली लड़की। पर इसे तो अपनी माँ भी नहीं पता। या पता हो। क्या ये कोई षडयंत्र है?
अगर ऐसा हे तो में जुर्म मान लूंगा। बस वो बोले यूँ प्रहार न करे। या मेरी आँखे धोका खा रही है। मैंने तस्वीर को और गौर से देखा। उसके आँखे और भी खूबसूरत थी। नहीं नहीं ये वो नहीं। और हो भी कैसे सकती है। उसे मर के _ नहीं उसे मार के भी अर्सो बीत गए।
वो चेहरा , वो हंसी, वो आँखें मानो अभी वो खयालों से निकल सामने आ जाए। किसे पाता है उसके बारे में ? वो तो अकेली थी।
न घर था न कोई रिश्ते दार सेठ ने उसे इसी लऐ चुना। एक बे जुबा बेसहारा लड़की महज २० - २१ साल की होगी। उस ज़माने लड़कियों की शादी तो यूँ हो जाया करती थी।
अगर वो गुम हो जाए तो किसे परवा थी ? और बिलकुल वैसा ही हुवा वो चीखती ,दरवाजा पीटती पर कोई नहीं आया उसे बचाने । चीखे मानो मेरे कानो में उसकी जिन्दा हो गयी। न उसे कोई पानी देता न खाना। और उन्होंने रखा भी उसे ऐसी जगह जहा कोई सोच भी न सके। मेने इसे इतने सालो से कभी सामने आने नहीं दिया। क्या होगा अगर ये बात राजीव को पता चले तो। ये सोच के मेरी रूह कांपने लगी।
मौत आए तो अभी आए। पर मौत तो तब आती है जब तुम्हें जिंदगी की चाह होने लग जाए। मेरी मौत भी सेठ जैसे ही होगी।राजीव तो चला गया मुझे मेरे सारी मुश्किलों से मिलके। वो जा चूका।
मुझे वो सब याद आने लगा जो मुझे लगता था की मै भूल गया हूँ । हर एक बात। मेरे आँखों से वो हसी जा ही नहीं रही थी।
आँखें बंद करो तो वो चेहरा जो चीख चीख के थका हो जिसे पानी तक नसीब न हुवा हो |
मेने एक डायरी ली कलम ली और बैठा अपनी कुर्सी पर और मैंने लिखना शुरू कर दिया। जब सब ख़तम हुवा तब देखा अनु घर मे थी । शायद उसने मुझे कई बार बात करने की कोशिश की थी। वो खुदही खुदसे बाते कर रही थी |
कहते है दुःख बाटने से काम होता है। शायद ये भी झूट है। मेरा दर्द तो और बढ़ा। काश की मै कुछ कर पाता। काश की मै उसे कही दूर ले जाता तो वो शायद आज जिन्दा होती। कितनी सस्ती थी उसकी जिंदगी की बिकी भी नहीं। न कोई था उसका और होता भी तो उसे रखना भी कौन चाहता?
बारिश भी तो बदलो पे बोझ ही होती है। तभी तो यूँ बरसती है। मैंने डायरी के पैन फाड़े और उन्हें अच्छे से लिफाफे में रख दिया।
एक दिन ये लिफाफा राजीव को बोहोत रुलाएगा। उसे मुझ से नफरत होगी। वो अपने आप को कोसेगा। वो खुद को कैसे ढूंडेगा फिर?
पर मै ये सोचूंगा की मेने उसे सब बता या है। ताकि मौते के बाद ये बोझ न रहे। जो कातिल का साथ दे वो भी कातिल होता है।
होता है न?
