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Anshpratap Singh

Tragedy

3  

Anshpratap Singh

Tragedy

काश......

काश......

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कितने बदक़िस्मत हैं ये हाथ जिनसे मांगी गई कोई दुआ कुबूल न हुई......

कितनी बदक़िस्मत हैं ये आँखें जिनसे देखे गए ख़्वाब कभी पूरे नहीं हुए......

कितने बदक़िस्मत हैं ये होंठ जिन पर लिया गया नाम हमेशा के लिए मिट गया......

कितनी बदक़िस्मत हैं ये उंगलियां जिनसे छुए गए हाथ इनके लम्स से जल गए.....

कितने बदक़िस्मत हैं ये पाँव जिनकी आहट से ही मंज़िल खो गयीं रास्तों से..........

कितना बदक़िस्मत है ये दिल जिसने जब भी किसी को चाहा वो छीन लिया गया....

कितनी बदक़िस्मत है ये रूह जिसे इस बदक़िस्मत जिस्म की क़ैद मिली.......


आँखों में नींद की पहली झलक के साथ इन तमाम सवालों में उलझे हुए रात गुज़र ही रही थी कि सहर की पहली आहट में एक ख़याल और आया कि "तुम भी तो.. 'थे'...... कभी मेरी क़िस्मत में"!


सच कहूँ इस "थे" ने झकझोर कर रख दिया,सोच रहा था कि काश ये "थे"........ अगर "हो" होता...... काश...............



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