काश ! में समझ पाता
काश ! में समझ पाता
प्रणव और प्रेरणा, कॉलेज की हर दिवार सुना रही थी। इनकी प्रेम कहानी हां ऐसा लगता था कि "मेड फॉर इच अधर"। प्रणव समजदार और संस्कारी लड़का था । उसके पापा दिन को रात कहे रात , रात को दिन कहे तो दिन हो जाता था। बहोत खूबसूरत लड़कियों के प्रपोजल को ठुकरानेवाला प्रेरणा को देखते ही दिल दे बैठा , अपनी हर सांस पर प्रेरणा का नाम लिख दिया । प्रेरणा कि ना भी कब हां में बदल गयी पता ही नहीं चला। प्रेरणा अमीर घराने कि लाड़ली पर बिगड़ी हुई बेटी नहीं थी, संस्कार उसके दिल को छू जानेवाले थे , खूबसूरत भी उतनी ही , जैसे सोने पे सुहागा। अब तो रोज मुलाकात होने लगी , छुटिया तो जैसे सताने लगी थी। सहेलियों के घर जाने के बहाने प्रणव से मुलाकात होने लगी , रात भी कटती नहीं थी , सूरज कि किरण जैसे मिलन कि उम्मीद लेकर आती थी। इन मुलाकातों में कॉलेज के दो साल कहा ख़तम हो गए पता ही नहीं चला। दो साल तक छुपनेवाली बात अब आखिर कब तक छुपनेवाली थी। प्रणव लड़का मिडिल क्लास था पर स्वाभिमानी और संस्कारी था। पहले तो प्रेरणा के पिताजीने अपने बराबरी का रिश्ता ना होने पर साफ़ इंकार कर दिया। फिर अपनी बेटी कि ख़ुशी कि खातिर , उसके कहने पर प्रणव से मीटिंग फिक्स कि। मीटिंग में उसने प्रणव के प्यार की परीक्षा ली , बोला "तुम मेरी बेटी को , वो ऐशो आराम कि जिंदगी कहा दे पाओगे , जो मेने उसे दी है।" तब प्रणव ने कहा " हां ! शायद आपके जितने ऐशो आराम ना दे पाऊ, उसे महारानी ना सही , पर अपने दिल कि रानी जरूर बनाके रखूँगा, उसकी हर जरुरत को पूरा करने की ताकत रखता हूँ, आप जैसा बंगला ना सही लेकिन एक फ्लैट मेरे पास भी है । उसके लिए बॉडीगार्ड नहीं रख सकता लेकिन , दुनिया कि हर मुसीबत से लड़ना सीखा सकता हु , उसकी ढाल बनके चलूँगा ।" इसके बाद वो अपने फ्यूचर प्लान प्रेरणा के पिताजी को बताता है और उनके दिल को भी जीत लेता है और उनकी ना को हां में बदल देता है ।"
अब तो प्रेरणा को पर लग गए थे , प्रणव ने तो अपने घरवालो को कब से मना लिया था । अब मेहंदी रची हाथो में , अरमान सजे दिल में और सगाई हो गई। अब तो बस सिर्फ रस्मे ही बाकी थी , बाकि तो दोनों एक दूसरे के साथ ही होते थे । प्रणव ऑफिस से सीधा प्रेरणा से मिलने जाता , फिर ही घर जाके खाना खाता । सगाई के बाद वक़्त तेज रफ़्तार से चल रहा था । अब प्रेरणा और प्रणव कि शादी का महूरत निकल गया और धीरे धीरे शॉपिंग तैयारियां होने लगी थी । शादी कि तारीख नज़दीख आ गई और अब शादी भी आ गई ,शादी के साथ साथ प्रणव के कर्रिएर पे भी चार चाँद लग गए , प्रणव के घरवाले तो प्रेरणा को लक्ष्मी का रूप मानने लगे थे । प्रणव के माता-पिता ने उसे पलकों पे बिठा रखा था और प्रेरणा ने भी दिल जितने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । प्रणव को लगने लगा था ईश्वरने उसे दुनिया कि हर ख़ुशी दे दी है बस, घर में घर के चिराग कि कमी थी । शादी के एक साल बाद प्रेरणा ने गुड न्यूज़ सुनाई तब घर के हर कमरे में कृष्णा-कनैया कि तस्वीर लगाई गई । अचानक से एक पड़ोसन एक दिन प्रेरणा कि सास के पास मालिश का तेल लेने आई , आई तो थी दवाई लेने लेकिन ज़िन्दगी भर का दर्द दे गई । कहने लगी " हर जगह काना कि फोटो लगाई है अगर लड़की हुई तो ! बस ये बात जैसे प्रणव कि माताजी को कांटे की तरह चूभ सी गई ।
बस ये बात जैसे प्रणव कि माताजी को कांटे कि तरह चुभ सी गई । दिन-रात एक ही चिंता उसे सता रही थी , अगर बेटी आई तो इस घर का वंश आगे कैसे बढ़ेगा ? उन्होंने प्रणव के पिताजी , प्रणव और प्रेरणा से यह बात की , सबने कहा ," बेटा-बेटी एक सम्मान है ।" प्रणव के माताजी की रातो की नींद उड़ गई थी । चिंता की वजह से उनकी तबियत ख़राब रहने लगी , सबने बहोत समझाया , किन्तु वहेम की कोई दवाई नहीं होती । एक दिन अचानक से दिल में भारी दर्द उठा , डॉक्टर ने पूछा," कोई परेशानी ?" हालात को नज़र में रखते हुए उन्हें ठीक करने का एक ही रास्ता था , प्रेरणा के गर्भ में पल रहे बच्चे का चेक उप । प्रेरणा के पति और ससुर इसके खिलाफ थे पर मजबूर थे ।
प्रणव अपनी माँ को ठीक करने के लिए प्रेरणा से चेक अप कराने की विनंती कर रहा था । प्रेरणा के पेरो तले जमीं खिसक गयी , आखिर अब वो भी एक माँ थी । बस प्रणव को देखती रही , आखिर वो ये कैसे कह सकता था ! पर वो मजबूर था ।पिता बनने का इंतज़ार उसे भी था । प्रणव प्रेरणाका हाथ थामते हुए ,ईश्वर को प्रार्थना करते हुए डॉक्टर के पास जाता है , चेक अप होता है । बस रिपोर्ट का इंतज़ार था । रिपोर्ट्स से पता चला की प्रेरणा के गर्भ में पल रही नन्ही सी जान , बेबी गर्ल है । ऐसा लगा जैसे कोई बिजली सी गिर गई । प्रणव और प्रेरणा के दिल में एक तूफान पहले से चल रहा था की बहार भी मौसम का रुख बदलने लगा । प्रणव ," हे भगवान ! तू आज कोनसा खेल, खेल रहा है ? किस दोराहे पे ला कर खड़ा कर दिया है ?"डॉक्टर बहार गया है , यह कहकर थोड़े दिन तक बात छुपाये रखी , पर आखिर कब तक? वक़्त का मिज़ाज़ देख कर घर के सभी सदस्यों ने माँ को समझाने की बहोत कोशिश की , लेकिन माँ एक न मानी। प्रेरणा की रिपोर्ट सुनते ही माँ को दिल का दोहरा पड़ा ।
प्रणव मंदिर जाकर ईश्वर से पूछता है ," माँ ये पाप में कैसे करू ?" प्रेरणा ,"एक बेटी होकर में अपनी ही बेटी को नहीं मार सकती ।" प्रणव तो पूरी तरह से टूट चूका था , जैसे प्रेरणा से अपनी माँ की जिंदगी की भीख मांग रहा था, पर होनी को कौन टाल सकता था ? ऐसा लग रहा था की , घर की सुख शांति को किसी की नज़र लग गई । प्रणव ," प्रेरणा बच्चा तो दूसरा भी आ जाएगा पर एक बार माँ को कुछ हो गया तो में खुद को माफ़ नहीं कर पाउँगा।" कहते हुए रो पड़ता है । प्रेरणा मजबूर होकर एबॉर्शन कराती है, सिर्फ घर की खुशियों के खातिर इतना बड़ा बलिदान ! प्रणव, " प्रेरणा, आई ऍम सॉरी, में तुम्हारा ये क़र्ज़ कभी न उतार सकूंगा।" प्रेरणा ," बस तुम मेरे साथ रहना ।" अब प्रेरणा बड़ी उदास रहती थी , प्रणव भी प्रेरणा को देखतेही उदास हो जाता था , न घर में मन लगता था न ऑफिस में । कुछ महीने बाद प्रेरणा फिर से एक बार खुश खबरी सुनाती है हीचकिचाहट के साथ कुछ महीने बाद प्रेरणा फिर से एक बार खुश खबरी सुनाती है हीचकिचाह के साथ और फिरसे चेक उप कराती है इस बार ईश्वर की कृपा से वह नन्ही सी जान बेबी बॉय था । घर में अब सब बहोत खुश है किन्तु प्रेरणा अब भी खुद को गुनेगार मान रही है , प्रणव उसे समजा रहा है की ,"अब सब कुछ ठीक हो जाने पर पुरानी बाते भूल जाओ ।" बातो बातो में युही वक़्त बीतता गया । आखिर कार प्रेरणा ने एक बेटे को जनम दिया और पूरा माहौल खुशाल हो गया । बेटे की परवरिश में व्यस्त रहते प्रेरणा के जखम भरने लगे थे , अब वह खुश रहने लगी । उसने पुरे परिवार को दिलसे माफ़ कार दिया । प्रणव के माताजी ने प्रेरणा से माफ़ी मांगी और कहा ," उसका दिल दुखाने या कष्ट देने का कोई इरादा नहीं था किन्तु वंश बढ़ाने की चिंता थी ।" बेटे का नाम करन किया, बहोत लोगो को निमंत्रण दिया गया , नाम रखा गया 'चिराग' पुरे घर में खुशिया लौट आयी थी । आज फिर प्रणव सोच रहा था की बस अब मुझे इस जिंदगी से कुछ नहीं चाहिए । मुझे हर ख़ुशी मिल गयी है । चिराग बड़ा हो गया । वक़्त की रफ़्तार तेज थी ।उसने अभी अभी बारवी की परीक्षा दी थी और कॉलेज में पहोच गया । कॉलेज में फर्स्ट ईयर तक सब कुछ ठीक चल रहा था । लेकिन दूसरे बच्चों देखते देखते उसने अपने पापा से बाइक की डिमांड की । घर का एक लोता चिराग उसकी ख़ुशी में सब खुश थे । पर बात बाइक पर ख़तम नहीं हुई । अब रोज दोस्तों के साथ बाइक रेसिंग होती थी, रेसिंग लगाते लगाते कब सटो पे पहोच गया और सटो से कैसिनो पे । अब दिन ब दिन उसकी अय्याशिया भी बढ़ने लगी । अतः प्रणव के घर में वापस लोटी हुए सुख शांति का अंत निश्चित हो गया । प्रणव को उसके ही घर के चिराग ने अँधेरे रास्तो पे ला खड़ा कर दिया । दूसरी और प्रणव का बिज़नेस ग्राफ ढलता हुआ दिखाई दे रहा था ।हर वो आदत चिराग का साया बन चुकी थी । जिससे हर माँ बाप अपने बच्चे को दूर रखना चाहते है । प्रेरणा और प्रणव का मन बहोत व्यथित था , उनके मन में बस एक ही सवाल था ," कहाँ कमी रह गयी थी हमारी परवरिश में ? ये हमारे करम है या सजा ?"
अचानक, प्रेरणा अपना भूतकाल याद करते हुए प्रणव को कह रही थी शायद ये उसी गलती का परिणाम है, जब हमने माँ लक्ष्मी का स्वागत करने की बजाए दरवाजे बंद कर दिए थे , उसी वक़्त प्रणव को एहसास होता है की सच में वही ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती थी जिसकी सजा हमें आज मिल रही है । काश ! में उस दिन थोड़ी सी जिद और बुद्विमानी दिखाता तो हमें आज ये दिन देखना न पड़ता । सच कहा है किसने ," बेटा अगर वंश है , तो बेटी अंश है और अंश को मारकर वंश को ज़िंदा नहीं रखा जा सकता । "प्रणव कहता है ," काश ! में समझ पाता की करम एक आईना है जो इंसान को अपना असली चेहरा जरूर दिखता है । इसलिए तो कहा जाता है की ," धरमराज जब लेखा मांगेगा तो क्या मुख लेके जायेगा ।" प्रेरणा प्रणव को समझाते हुए ," तुम्हारा बुरा हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा , लेकिन तुम्हारा अच्छा लौट कर फिरसे आएगा ।" इसी सोच के साथ प्रेरणा और प्रणव ने प्राश्चित करनेका निश्चय किया । अब वो लोग एक एन. जी. यो (रौशनी) चलाते है ,जहाँ गरीब लडकियों को शिक्षा दी जाती है और आत्मनिर्भर बनना सिखाया जाता है । उनके विवाह की भी जिमेदारी उठाई जाती है , इसके उपरांत गरीब परिवारों में लड़की का जनम होते ही बख्सीश के तौर पर कुछ रकम दी जाती है ।
"बेटी ही जीवन का आधार है ।"