जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा

जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा

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जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा

ये कहानी अर्पिता की है जिसकी शादी को अभी 1 साल भी नहीं हुआ| कुछ दिन पहले तक वो बहुत ख़ुश थी कि उसे ऐसा परिवार मिला जो उसको बहुत प्यार करता है और खासकर उसके पति जो उसका बहुत ध्यान रखते हैं| कुछ दिन पहले जब उसे पता लगा कि वो माँ बनने वाली है तो उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा| उसके ससुराल वाले भी इस ख़बर से बहुत खुश थे| लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने चोरी-छुपे किसी डॉक्टर से लिंग निर्धारण टेस्ट करवाया तो उन्हें पता लगा कि अर्पिता इक लड़की की माँ बनने वाली है| उस दिन से आज तक उन सबका अर्पिता के लिए रवैया बदल सा गया|

अर्पिता के पति का नाम दर्पण है| दर्पण का एक बड़ा भाई भी है जो कि शादीशुदा है और वो दोनों इकट्ठे एक परिवार में रहते हैं| दर्पण के बड़े भाई के पहले से ही 2 बेटियां हैं| एक कारण तो यही है कि उन्हें हर हाल में लड़का ही चाहिए जो उनके वंश को आगे बढ़ा सके| दूसरा ये कि अर्पिता का परिवार आर्थिक रूप से ठीक-ठाक है और उसके सास ससुर को ये फ़िक्र थी कि वो आगे जाके 3 बेटियों की शादी का खर्चा कैसे कर पाऐंगे|

आज दर्पण ने अपने माता-पिता की बात मानते हुए अर्पिता को साफ़-2 लफ्जों में कह दिया कि हमें ये बच्चा गिराना ही होगा| इसके लिए तुम मानसिक रूप से तैयार हो जाओ| अर्पिता पहले कई बार मना कर चुकी थी| पर अब दर्पण ने कह दिया कि हम कल डॉक्टर के पास जा रहे हैं, मैंने डॉक्टर से इस काम के लिए बात कर ली है और वक़्त भी नियुक्त कर लिया है| ये सुनकर अर्पिता रोने लगती है| तुम रोओ या कुछ भी करो, अब ये फैसला नहीं बदलेगा| अर्पिता इक कशमकश में फँस जाती है कि अगर वो अपने पति और परिवार के खिलाफ गयी तो शायद उसे घर से ना निकाल दिया जाए या फिर आने वाली गुड़िया और मुझे प्यार ना किया जाऐ| रात को बेचैनी की हालत में उसे बहुत देर तक नींद नहीं आती है| उसके मन में यही ख्याल चलता रहता है कि क्या मैं कल कोई पाप करने तो नहीं जा रही| उसे नींद में एक ख़्वाब आता है जिसमें एक प्यारी सी गुड़िया जो बिलकुल उसके जैसी दिखती है वो अपने नन्हें होंठों से उसे इक कविता सुनाती है…………………………………..

तेरी साँसों से साँस ले रही हूँ माँ,

तेरी कोख में इक अंश है मौजूद मेरा।

हरदम साथ निभाऊँगी तेरा साया बनके,

जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा।

 

तेरे लबों पर हँसी की लहर दौड़ जाएगी,

जब मैं प्यारी सी किलकारियाँ लूँगी।

तेरे कानों में मिश्री की मिठास घुल जाएगी,

जब मैं तुतला कर तुझे माँ कहूँगी।

नन्हें होंठों से पी लूँगी आँसू का हर बूँद तेरा।

जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा…

 

खानदान को बेटे की ज़िद भुला दे,

बेटा-बेटी बराबर है सबको बता दे।

किसी तरह से भी सबसे लड़कर माँ,

ये अधखिला फूल पूरी तरह से खिला दे।

तेरे हाथों में ही जीवन है महफ़ूज़ मेरा।

जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा…

 

ऐसा क्या कर दिया है मैंने गुनाह​,

जो अपने नहीं देना चाहते मुझे पनाह​।

माँ तो बच्चों को ज़िन्दगी देती है,

पर तू मुझे करना चाहती है फ़ना।

माँ अपने अन्दर​ फिर से माँ को ढूँढ ज़रा।

जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा…

 

पूछ कर देख उनसे बेटी की क़ीमत,

जिनकी गोद कई सालों से सूनी है|

क्या जवाब देगी उस पाक ख़ुदा को,

मेरी और उसकी नज़र में तू ख़ूनी है|

कैसे उतार पाऐगी ये क़र्ज़ और सूद मेरा।

जन्म से पहले ना मिटा देना वजूद मेरा…

 

अक्सर रात को देखे ख्व़ाब सुबह भूल जाए हैं पर अर्पिता को वो ख्व़ाब पूरी तरह याद था| अर्पिता को ऐसा लगा कि वो ख्व़ाब नहीं उसकी अन्तर-आत्मा की आवाज़ थी| अब अर्पिता ने मन में ठान लिया था कि,वो अपने पति को डॉक्टर के पास जाने से मना कर देगी| उसके बाद जो होगा, देखा जाएगा|

सुबह सबके सामने अर्पिता कह देती है कि मैं इस गुड़िया को ज़रूर जनम दूँगी| जो आप सब सज़ा सुनाऐंगे वो मुझे स्वीकार है| दर्पण का भाई मतलब अर्पिता का जेठ चिल्लाकर कहता है कि हमें इस घर में 3 बेटियां नहीं चाहिए| अर्पिता बड़ी नम्रता से इक सवाल करती है कि भैया क्या आप अपनी दोनों बेटियों में से किसी की हत्या कर सकते हो क्या? अर्पिता के जेठ को और गुस्सा आ जाता है| साथ ही अर्पिता ख़ुद ही अपने सवाल का जवाब देकर कहती है कि नहीं भैया आप कभी नहीं कर सकते क्योंकि आप तो अपनी दोनों बेटियों से इतना ज्यादा प्यार करते हो| तो फिर मेरी हालत भी समझिए ना| माना कि मेरी गुड़िया अभी दुनिया में नहीं आई पर मेरी कोख में तो पैदा हो चुकी है| जिस तरह आपको अपनी दोनों बेटियों से मोह हो चुका है उसी तरह मुझे अपनी गुड़िया से मोह हो चुका है क्योंकि मैं उसे महसूस कर सकती हूँ | ये सुनकर अर्पिता का जेठ शांत हो जाता है|

उसके बाद अर्पिता के सास-ससुर ऊँची आवाज़ में कहते हैं कि हमें वंश आगे बढाना है इसके लिए बेटा ही चाहिए| अर्पिता फिर बड़े आदर से उनसे कहती है कि मम्मी पापा इस बात की क्या गारन्टी है कि अगली बार हमारे बेटा ही होगा| अगर अगली बार भी बेटी हुई तो क्या आप उसे भी मार दोगे? और ये तब तक करते रहोगे जब तक इक बेटा नहीं हो जाता? वंश को बढाने के लिए कितनी बार आप पाप करोगे? क्या ये सही है? आपका रवैया मुझसे बदल सा गया जब आपको पता लगा कि मैं इक बेटी की माँ बनने वाली हूँ| जबकि आप जानते भी हो कि इसमें जीवनसाथी की भी अहम भूमिका होती है कि एक लड़की बेटे की माँ बनेगी या बेटे की| आपकी अपनी बेटी मतलब मेरी ननद के भी तो दो बेटियाँ हैं लेकिन उनके घर वाले तो उन्हें उतना ही प्यार करते हैं जितना बेटियों के होने से पहले करते थे| अगर वो उनसे ऐसा व्यवहार करें तो आपको कैसा लगेगा? ये सब बातें सुनकर सास ससुर चुप रह जाते हैं| शायद उन्हें एहसास होता है कि वो गलत हैं|

उसके बाद अर्पिता का पति दर्पण कहता है कि तुम्हारी सभी बातें ठीक है, लेकिन तुम भी जानती हो कि महँगाई कितनी बढ़ चुकी है फिर आगे जाकर उसकी शादी भी करनी होगी और मेरी तनख़्वाह तो इतनी ही है कि मैं रोज़ का ख़र्चा पानी ही अच्छे से चला सकता हूँ| उनकी बातों के जवाब में अर्पिता कहती है कि आप जितना भी हर महीने मुझ पर ख़र्च करते हो हमारी बेटी पर कर दिया करना| आज के बाद मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए| और उसकी शादी को तो अभी 20 से 25 साल हैं| हर बेटी अपनी किस्मत साथ लेकर आती है और वैसे भी लड़कियाँ अपने पापा के लिए बहुत किस्मत वाली होती हैं| आप ख़ुद ही देखो जब जेठ जी के पहली बेटी हुई थी तो कुछ दिनों बाद उन्हें पहली वाली के मुकाबले कितनी अच्छी नौकरी मिल गयी थी और जब दूसरी बेटी हुई थी तो उनकी कितनी तरक्की हुई थी| कभी उन्हें उनके ख़र्चे करने में कोई दिक्कत नहीं आई| साथ ही दर्पण का भाई मतलब अर्पिता का जेठ बोलता है कि हाँ दर्पण, अर्पिता बिलकुल सही कह रही है| अर्पिता फिर दर्पण को कहती है कि आपने ख़ुद बताया था कि आपको अपने लिए लड़की ढूँढने मतलब मुझे ढूँढने में कितने साल लग गए थे क्योंकि लड़कियों की लड़कों के मुकाबले में मात्रा बहुत कम हो गई है| उसकी असली वजह यही है कि हम लड़कियों को दुनिया में आने से पहले ही ख़त्म कर देते हैं| ये सब सुनकर दर्पण की भी आँखें खुल जाती हैं| और फिर पूरा परिवार अर्पिता और उसकी आने वाले गुड़िया को कबूल कर लेता है और अर्पिता को महसूस होता है कि सभी उसे पहले की तरह ही प्यार करने लगे हैं|

रात को अर्पिता बड़ी ख़ुशी से सोती है और उसे फिर वही गुड़िया दिखाई देती है और एक कविता सुनाती है.....

तू चाहे तो क्या नहीं कर सकती माँ,

तेरे होते हुए मैं नहीं मर सकती माँ|

नफ़रत निकाल प्यार भर सकती माँ,

तेरे होते हुए मैं नहीं मर सकती माँ|

बच्चों खातिर अपनों से लड़ सकती माँ,

तेरे होते हुए मैं नहीं मर सकती माँ|

ख़ुदा ना कर पाता जो कर सकती माँ,

तेरे होते हुए मैं नहीं मर सकती माँ|


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