Sanjiv Malviya

Inspirational

5.0  

Sanjiv Malviya

Inspirational

ज़िंदगी की परीक्षा

ज़िंदगी की परीक्षा

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विजय(रोहन के पापा) रोहन को आवाज लगा रहा है पर रोहन कहीं नज़र ही नही आ रहा, इतना मस्तीखोर लड़का और फिर इतना सन्नाटा कैसे? हो भी क्यों ना आज रोहन का परिणाम आया था और रोहन इस बार फिर फैल हो गया जैसा की पिछले दो सालों से चलता आ रहा था, पर इस बार रोहन पूरी तरह टूट चुका है क्योंकि इस परिणाम के साथ उसकी सारी उम्मीदें भी ध्वस्त हो चुकी है और अब दूर दूर तक उम्मीद की कोई किरण नही। विजय रोहन को ढूंढते ढूंढते ऊपर वाले कमरे तक आ पहुंचा जहाँ रोहन पलँग के सिरहाने बैठा मन्द मन्द रोये जा रहा था, विजय ने दरवाज़ा खटखटाया पर कोई जवाब न मिला विजय का डर भी वाज़िब था, इकलौता बेटा और कहीं भय में कुछ कर बैठा तो उसके लिए तो मानो पैरो तले ज़मीन खिसक गई हो। फिर क्या बिना कुछ सोचे कमरे के अंदर प्रवेश किया और रोहन वही सामने बैठा बैठा रो रहा था तभी विजय ने उसे देख एक सुकून की सांस भरी और पूछा "क्या हुआ रोहन, ऐसे क्यों बैठे हो मैं कब से तुम्हें आवाज़ दे रहा हूँ पर तुम ने कोई जवाब ही नही दिया"

कुछ देर का मौन लेकर सिसकती हुई आवाज़ में रोहन ने जवाब दिया "मैं फिर फैल हो गया"

विजय हल्की सी मुस्कान लिए रोहन के पास गया और उसके पास बैठते हुए उससे कहा कि "बस इतनी सी बात, इसमें रोने वाली भी क्या बात हो गयी भला, चलो अब ये रोना धोना बन्द करो और नीचे चलो खाना ठंडा हो रहा है।"

पर रोहन मानो आज ज़िद लेके बैठा है कि कोई उसे यहाँ से हिला के तो दिखाए उसके चेहरे की मासूमियत देख ऐसा लगता है जैसे ये ज़िद ज्यादा देर की नही पर उसकी नम आँखें बहुत कुछ कह रही है, जिनमे कुछ ऐसे सवाल जिनका जवाब जानना आज उसके लिए बहुत जरूरी है। तभी विजय ने एक बार फिर कोशिश करते हुए भारी आवाज़ में पूछा "तुम आ रहे हो या नही?" रोहन ने भी कसी हुई आवाज़ में जवाब दिया "मुझे भूख नही आप मुझे अकेला छोड़ दो।"

विजय ने भी एक पल सोचा कि इस वक़्त इसे अकेला छोड़ना ही ठीक रहेगा इस वक़्त बात करने से कोई मतलब नही और इतना कहते ही वो वहां से जाने लगा और तभी पीछे से आवाज़ आई "पापा मैं बुद्धू हूँ, मुझे कुछ नही आता" जाते जाते पापा के कदम वही रुक गए जैसे ही ये बात कानों में पड़ी पापा ने कहा "किसने कहा तुम्हें ?"

"सब कहते है, राजू,अभिनव, मानव और अब तो स्कूल में जो नए बच्चे आएंगे वो भी यही कहेंगे वो सब पास हो गए और मैं फिर..." इतना कहा और रोहन चुप हो गया।

विजय ने रोहन को उठाया और अपने पास बैठने को कहा, वो बैठ तो गया पर अभी भी आँसू है कि रुकने का नाम नही। थोड़ी सी नरमी दिखाते हुए "अच्छा तो तुम कह रहे थे कि तुम्हारे दोस्त कहते है कि तुम बुद्धू हो और टीचर्स ने क्या कहा ?" विजय ने पूछा

"टीचर ने कहा की अगली बार और मेहनत करना" रोहन ने पापा की तरफ देखते हुए कहा

"वो इसलिए क्योंकि पढ़ाया उन्होने है तुम्हें और इस मामले मे वो तुम्हें तुम्हारे दोस्तों से ज़्यादा ज्ञान रखते है सो तुम्हें बजाय इस बात के की लोग मेरे बारे मे ग़लत क्या कहते है, तुम्हें इस बात पे ध्यान देना चाहिए की तुम्हारे लिए कौन सी बात ज़्यादा मायने रखती है और कौन सी बात तुम में सकारात्मक विचार जगाये " विजय ने रोहन की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा।

"पर पापा अगर ऐसा ही चलता रहा तो मेरा क्या होगा, मैं अपने भविष्य मे कुछ नही कर पाऊँगा और आप ही कहते हो ना की हर किसी को अपने भविष्य की चिंता होनी ही चाहिए फिर क्यूँ ना करूँ मैं फिकर" रोहन का जवाब सुनते ही विजय ने उसकी बात काटते हुए कहा "हाँ सबको अपने भविष्य की चिंता होनी चाहिए और इसमे कुछ ग़लत भी नही पर उस भविष्य की चिंता तब तक ही वाज़िब है जब तक वो हमारे आज पर हावी ना हो" पापा का यह जवाब सुनकर रोहन को थोड़ा असमंजस हुआ पर जैसे वो कुछ कहता तभी पापा ने कहा की "चलो मे तुम्हें कुछ दिखाता हूँ " और पापा उठकर अलमारी की और गए और वहां अलमारी के उपर से उसने कुछ नीचे उतरा, कोई पुराना सा संदूक है।

कपड़े से धूल साफ की और उसमें से कुछ पुराने काग़ज़ के टुकड़े निकाले, और रोहन को बुलाते हुए कहा "ये लो देखो"

रोहन ने पूछा "ये क्या है पापा"

"मेरी उपलब्धियाँ" विजय ने जवाब दिया

परिणाम देखते ही रोहन के आँसू मानो थम से गये

"पर ये तो आपकी आठवीं कक्षा का परिणाम है, और इसमे तो आपको बस 45 % ही मिले है, ये कैसे हुआ ? मतलब आपका हाल भी मेरा जैसा ही था फिर आप आज डॉक्टर कैसे बने पापा, परीक्षा मे नकल की होगी है ना ? " एक मस्ती वाले अंदाज़ मे रोहन ने पूछा ?

"बताता हूँ बाबा, पहले ये देखो.." विजय ने कहा

"ये क्या है ?" रोहन ने पूछा

"देखो !" पापा ने कहा

"अरे ये तो नौवी कक्षा का परिणाम है और इसमे तो आपके 40% ही है, हाहाहा ! इससे तो आठवीं कक्षा का परिणाम ही अच्छा था " रोहन ने थोड़ी सी खीचाई करते हुए कहा,

"कोई बात नही हंस लो, मुझ पर भी सब लोग ऐसे ही हँसे थे जब मैने सबको ये परिणाम दिखाया था" विजय ने कहा,

"हाहा ! और मार भी पड़ी होगी...है ना" रोहन ने ज़ोर से ठहाके लगाते हुए

विजय उसके चेहरे की हँसी देख मन ही मन मुस्कुरा उठा और कहा "तुम्हारी हँसी का इलाज़ है मेरे पास, ये देखो"

"ये क्या है?" रोहन ने अपनी हँसी वही रोक दी और विजय से पूछा ?

"ये मेरा दसवी कक्षा का परिणाम.. " इतना कहा ही था की रोहन ने तुरंत उसी खिचाई वाले अंदाज़ मे कहा "इसमे तो पक्का फैल..हाहाहा.."

"पहले देख तो लो" विजय ने भी बेबाकी से जवाब दिया,

रोहन ने परिणाम देखा और परिणाम देखते ही उसकी सारी हँसी वही धरी की धरी रह गयी और मानो जैसे कमरे मे एक सन्नाटा सा छा गया..कुछ देर तो रोहन को समझ ही नही आया की ये कैसे हुआ फिर उसने हिम्मत करके पापा से पूछ ही लिया,

"80%...ये कैसे हो गया, आपने पक्का नकल की होगी पापा..है ना"

मानो जो हँसी रोहन के चेहरे पे थी अब विजय ने चुरा ली हो कुछ इसी अंदाज़ मे विजय ने जवाब दिया "हाहा ! क्यूँ चौक गये ना, हाँ ये मेरा ही परिणाम है और मैने कोई नकल नही की, ये मेरी मेहनत का परिणाम है"

"पर कैसे ! एक साल मे इतना बदलाव कैसे आख़िर ?" रोहन से अब रहा नही जा रहा था वो काफ़ी उत्साहित था ये जानने के लिए की आख़िर ये चमत्कार हुआ तो हुआ कैसे ?

"पढ़ने मे मैं भी कुछ खास नही था, बस दिन भर दोस्तों के साथ साइकिल लेकर निकल जाया करता था और जब परीक्षा आती थी तब भी बस यही किया करता था, फिर जब आठवीं कक्षा का परिणाम आया और जब मुझे ये पता चला मेरे नंबर बहुत कम है यहाँ तक की जिन दोस्तों के साथ मैं घूमा करता था उनमें सबसे कम नंबर मेरे ही थे और ये देख के मैं भी इसी तरह रोने लग गया और जब पापा(रोहन के दादा) ने मेरी रोने की आवाज़ सुनी तो वो सीधे मेरे पास आए और मुझसे पूछा क्या हुआ तो मैने उन्हे सब बता दिया, मुझे इस बात का भी डर था की पापा कही मुझे डांटे ना पर ऐसा नही हुआ, और उन्होने मेरे कंधे पे हाथ रखते हुए बस यही कहा की देख बेटे, हार जीत ज़िंदगी का नियम है और अगर आज तू हारा है तो कल तेरी जीत पक्की है, और अगर देखा जाए तो ये तेरे परीक्षा का परिणाम नही ये तेरी ग़लतियों और लापरवाही का परिणाम है जिसे तू मस्ती की आड़ मे नज़रअंदाज़ करता रहा, एक परीक्षा ज़िंदगी भी लेती है और उस परीक्षा मे हमारा पास होना बहुत ज़रूरी है.."

"और वो क्या है पापा ? " रोहन ने विजय से पूछा

"खुद की कीमत समझना, खुद को काबिल बनाना और जिस तरह परीक्षा के प्रस्नपत्र मे सवाल पूछे जाते है बस वैसे ही ज़िंदगी की परीक्षा मे हमे खुद से सवाल पूछने चाहिए की मैं जो कर रहा हूँ वो मेरे लिए कितना सही है और इसके मेरे लिए क्या मायने है, जिस तरह बुरे वक़्त आते हुए भाप नही सकते ठीक वैसे ही आनेवाले कल की मुश्किलों का अंदाज़ा लगा पाना भी नामुमकिन पर उन्हे रोका जा सकता है बस ज़रूरत है तो हमे थोड़ा जागरूक रहने की, अगर इतनी सी बात समझ आ जाए तो फिर अपने आने वाले कल को तुम खुद लिख सकते हो कोई परीक्षा उसे बदल नही सकती, और कल शायद मे तुम्हारे साथ ना रहूँ, ये सब बातें ना कह पाउ जैसाकि मैने कहा बुरे वक़्त को भाप नही सकते तो मैने आज ही तुमसे ये बात कहके अपनी ज़िम्मेदारी निभा ली, मैं तुम पर कोई बोझ नही डालना चाहता पर तुम्हें अपनी ज़िम्मेदारी से भागने भी नही दे सकता और मैं तुमसे इतना वादा करता हूँ की मैं भी तुम्हारे साथ ही भागूँगा..अब बोलो " विजय ने अपने पापा की कही बात रोहन के सामने रखी।

"मानो ये बातें मेरे दिल मे घर कर गयी और हर पल मेरे मन मे यही चलता रहा, और मैने दिन रात मेहनत की और अगले एक साल मे मेरी ज़िंदगी बदल गयी और उस बदलाव का परिणाम तुम्हारे हाथ मे है, और जब परिणाम आया तो मेरे चेहरे पे फिर से मुस्कान लौट आई " विजय ने कहा

"खुशी क्यूँ ना होगी, 40% से सीधे 80% जो आए थे" रोहन ने कहा

"नही, मुझे खुशी इस परीक्षा मे पास होने की नही थी मुझे खुशी इस बात की थी मैं ज़िंदगी की परीक्षा मे अव्वल आया, परिणाम तो मेरे लिए के काग़ज़ का टुकड़ा मात्र था और वही हुआ जो मैने चाहा था मतलब अब मैं अपना कल खुद लिख सकता था, और उस दिन मैने जो पाया वो था मेरा आत्मविश्वास और मेरे पापा का प्यार अब और क्या चाहिए भला किसी को...अब कोई फिकर नही..मैने ज़िंदगी के उसूल सिख लिए..मैने ज़िंदगी को जीना सिख लिया" विजय से बड़े गर्व के साथ कहा

"मैं समझ गया पापा" रोहन ने कहा

"क्या समझे?" विजय ने पूछा

"यही की हमे खुद पर भरोसा होना चाहिए और ज़िंदगी मे आने वाली हर परीक्षा के लिए हमे तैयार रहना चाहिए, अब से मैं भी दिन रात मेहनत करूँगा और देख लेना अगले साल अच्छे नंबर से पास होकर दिखाऊंगा" रोहन ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ खड़े होते हुए कहा,

"बहुत खूब, अब चले नीचे वरना 5 मिनट और देर की तो तुम्हारी मम्मी बेलन लेके हमे ढूँढती हुई उपर आ जाएगी और उससे पहले की ऐसा बुरा वक़्त आए हम पहले ही तैयार हो जाते हो.." विजय ने एक हास्य भरे अंदाज़ मे कहा।

"हाहाहा! चलो" रोहन ने इतना कहा और दोनो नीचे जाने लगे पर रोहन अब मस्ती की आड़ मे,

"वैसे पापा दादाजी ने आपको कभी पिटा...?" इतना कहते ही भागने लगा और विजय उसके पीछे पीछे, दोनो खाने के टेबल तक दौड़ लगाते हुए नीचे चले गये..


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