जिम्मेदारी का अहसास
जिम्मेदारी का अहसास


सुबह सुबह प्रीतम को चाय की चुस्की लेना बहत पसद है बिस्तर पर बैठे हुए । ठीक समय पर कभी ऑफिस पहुंच ही नही पाता था उसकी आलसीपण की वजय से । घर का काम भी कुछ खास नही करता था , देरसे ऑफिस जाता , और घर पे माँ कुछ काम करने देती तो हजार बहाने करता। प्रीतम को सिर्फ एक चीज़ पसंद थी , वह है नींद । जब कभी टाइम मिलता था थोड़ी देर सो लेता था बगैर यह सोचे की उसे कुछ जरुरी काम भी करना है ।
२६ साल के प्रीतम के, घर मैं माँ, पिताजी और उस्का छोटा भाई है । भाई स्कूल मैं पढ़ता है। प्रीतम को घर की जिम्मेदारिओं का कोई ख्याल नहीं था ,वह तो अपने ही मतलब मैं रहता था । पिताजी के रिटायर्ड होने के बाद भी कभी घर चलने के बारे में कोई जिम्मेदारी भी खुदसे नही लिया । हालाकि उसकी माता पिता मन से चाहते थे की प्रीतम कुछ घर की जिम्मेदारियां समझे ,पर वह तो हर वक़्त जिम्मेदारिओ से भागता था । ऑफिस के काम मैं भी अक्सर गलती करता था , इस वजय से उसकी नौकरी भी चली गयी । फिर भी उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा। उसके माता पिता हर वक़्त उसे लेके चिन्तित रहते थे । पर कभी कुछ कहते नहीं थे । सोचते थे के एक न एकदिन समझ जायेगा ।
प्रीतम को फर्क पड़ा जब हार्ट अटैक से पिता की मौत के २ महीने बाद एक लीगल चिटठी घर पे आयी । प्रीतम को इंजीनियरिंग पढ़ाने के लिए उसके पिताजी ने घर गिरवी रक्खा था , और पैसे चुकाने का समय ख़तम होने को था । जिस जिम्मेदारी से प्रीतम बहत दूर भागता था आज वह जिम्मेदारियां उसके सामने अचानक से आ गयी। उसके पिताजी ने कभी उसे यह अंदाजा भी होने नहीं दिया के वह इतने कर्जे में फंसे हुए थे , लेकिन आज प्रीतम को ही उनकी जिम्मेदारियां उठानी है , छोटे भाई , माँ को संभालना है । छोटे भाई को एक अच्छी ज़िन्दगी देनी है । पर क्या करे प्रीतम, उसकी नौकरी भी तो नहीं रही। काश अपने पिताजी के साथ कुछ जिम्मेदारियां बांट लेता तो उसे आज इतना बुरा नहीं लगता।
सोचते सोचते वह एक चाय के दुकान में जाके बैठा, वहा एक १२ साल के बच्चे को चाय के दुकान में काम करते देख उसने उस बच्चे को बुलाया और पूछा "तुम स्कूल क्यों नहीं जाते हो"? वह बच्चा बोला" जाता हूँ, स्कूल का टाइम ख़तम होने के बाद मैं यहाँ काम करता हूँ, मेरे घर पे मेरी माँ सिलाई का काम करती है, लेकिन बहत बीमार रहती है, मै काम करके उनका हाथ बंटाता हूँ , बहत पैसे कमाना चाहता हूँ जिससे उन्हें और काम न करना पड़े" ।
अचानक से प्रीतम के अंदर जिम्मेदार इंसान जाग उठा उसने बच्चे से कहा , "आज से तुम सिर्फ पढ़ाई ही करो , क्योंकि पढ़ लिखके तुम बड़ा इंसान बनोगे और अपनी जिम्मेदारियां ले पाओगे , और तुम्हारी पढ़ाई की जिम्मेदारी आज से मेरी"।
इसके बाद प्रीतम ने चाय के दुकान से चाय ली और एक चुस्की लगायी , आज प्रीतम को इस चाय के चुस्की मैं कुछ अलग ही स्वाद का अहसास हुआ, जिम्मेदारी का अहसास।