जिजिया
जिजिया
रामेश्वर गुप्ता के ग्यारह सदस्यों भरे पूरे परिवार में किसी बात की कोई कमी नहीं थी। बस सात भाई बहन में सबसे बड़ी बेटी केतकी की शादी की चिंता उन्हें बहुत सताती थी। तेरह साल की हो चली है और अब तक कोई अच्छा रिश्ता उन्हें मिला ही नहीं रहा था। बड़ी बेटी के बाद गंगा नहा लेंगे यही मानना था उनका और फिर जैसे ही बड़ी की शादी होगी वैसे ही छोटे भाई बहन के लिए भी अच्छे रिश्ते आएंगे। सबको ब्याह के तीर्थ पर जाने की बड़ी इच्छा रखते थे।
बहुत ख़ोज खबर के बाद एक बड़े अच्छे घर का रिश्ता उन्हें भा गया। बस चट मंगनी और पट ब्याह की तैयारियों में पूरा परिवार लग गया। आने वाले महीने एकादशी का मुहूर्त था।
दिन कैसे कट जाते हैं शादी ब्याह की तैयारियों में पता ही नहीं चलता है। कब शादी आ जाती है कब बेटी विदा हो जाती है मालूम ही नहीं पड़ता है। रामेश्वर गुप्ता के जीवन में भी वही दिन आ गया था, उनकी प्यारी जिजिया की शादी का दिन बहुत ख़ास था। केतकी को कभी उन्होंने नाम से नहीं पुकारा था हमेशा जिजिया ही कहकर पुकारते थे, केवल रामेश्वर गुप्ता ही नहीं उनका पूरा परिवार उसे जिजिया ही कहता था। जिजिया बड़े लाड़ की थी।
सब कुछ अच्छा चल रहा था। सारे बाराती व्यवस्थाओं से बहुत खुश थे। रामेश्वर गुप्ता की छाती गर्व से चौड़ी हुई जा रही थी। शादी भी अच्छे से संपन्न हो गयी। विदाई को कुछ वक़्त बाकी था सो सब बहनें और माँ अपनी कुछ वक़्त में पराई होने वाली बेटी के साथ बैठी थी।
थकान की वजह से केतकी अपनी माँ की हो गोद में सिर रख कर सो गयी। कुछ देर बाद रामेश्वर गुप्ता अपनी बुलाने को पहुँचे तो अपनी लाड़ली को इतने सुकून से सोता हुआ देखकर वहीं ठहर गये लेकिन ज्यादा ठहरने की फुर्सत कहाँ थी सो पत्नी को उठाया और चले गये।
कुछ देर में गाने बजाने वाली औरतें आने वाली थीं तो छुटकी जिजिया को जगाने आयी। बड़ी ज़ोर - ज़ोर से झिंझोड़ कर उठाये जा रही थी लेकिन केतकी कई बार जगाने के बाद वह एकदम से उठ बैठी और उसका पूरा शरीर ज़ोर - ज़ोर से काँपने लगा। देखने में तो लगता था जैसे मिर्गी के दौरे आ रहे हैं। ऐसी बातों को फैलने में देर कहाँ लगती है कुछ ही देर में जनवासे से दामाद के बाबूजी और जीजा वहाँ आ पहुंचे पूछताछ करने के लिए।
रामेश्वर गुप्ता का तो दिल मुँह में आ गया था लेकिन जैसे तैसे उन्होंने सारी बातें संभाल लीं कुछ बिगाड़ हो जाता इससे पहले ही कह दिया कि थकावट की वजह से हुआ है अभी पानी की बोतलें चढ़वा देते हैं तो ठीक हो जायेगी।
कुछ घंटों बाद केतकी एकदम ठीक थी और सारा परिवार उसे विदा करने की तैयारियों में जुट गया था और कुछ देर बाद सारा परिवार केतकी को विदा कर अपने आँसू पोंछ ख़ुशी मनाने में जुट गया।
लेकिन ससुराल में फिर एक बार केतकी को मिर्गी का दौरा आया और बात सभी मेहमानों को मालूम पड़ गयी कि नयी बहु को मिर्गी के दौरे आते हैं।
जिजिया को दूसरे ही दिन बेरंग मायके लौटा दिया गया। साथ नये जमाई भी आये थे और कह गये थे कि आपने हमारे साथ धोखा किया है। आपने अपनी बीमार लड़की झूठ बोल कर हमारे मत्थे मढ़ दी है। लेकिन उन्हें कौन बताता कि यह सब पहली बार ही हुआ है केतकी को कोई बीमारी नहीं थी। बहुत मान मनाने के बाद दामाद राज़ी हुए कि इलाज के बाद जब केतकी ठीक हो जाएगी तो उसे लिवा ले जाएंगे।
लगभग छः महीने तक लगातार इलाज के बाद केतकी की हालत में काफ़ी सुधार आ गया था। कुछ दिन के बाद दामाद केतकी को लिवाने आये। अपनी जिजिया को जाते देख उसकी माँ की आँखों में हज़ारों सवाल थे कि क्या उनकी बेटी निबाह कर पाएगी ? क्या उसे स्वीकार कर पाएंगे दामाद जी और ना जाने क्या - क्या।
कुछ महीनों बाद एक बार फिर जिजिया को घर लौटा दिया गया। और इस बार कहकर भिजवाया था कि इसे कभी वापिस नहीं बुलाया जाएगा। केतकी की हालत दिन पर दिन ख़राब होती जा रही थी। एक दिन अचानक गश खा कर गिर जाने के बाद जब गाँव के डॉक्टर को दिखाया तो मालूम हुआ की जिजिया पेट से है। लेकिन अब क्या होगा कोई नहीं जनता था। उसके सासरे ख़बर भिजवाई तो वहाँ से कोई उत्तर नहीं आया। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था रामेश्वर गुप्ता जी को कि क्या किया जाए कैसे किया जाए।
वक़्त बीतता जा रहा था और केतकी की स्थिति ख़राब हुई जा रही थी।
सब उम्मीद हार चुके थे। एक महीना, दो महीने, पाँच महीने और फिर केतकी ने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया। रानेश्वर गुप्ता जी को लगा की अब शायद जिजिया की जगह बन जाए ससुराल में लेकिन उनका सोचना बिल्कुल गलत था। केतकी दिनभर अपनी बेटी को सीने से दबोची रहती थी। न किसी को छूने देती ना खिलाने देती, उसकी मानसिक हालत बुरी हो चली थी बच्ची भी माँ से सटे सटे साँस नहीं ले पाती थी जो कभी कोई जिजिया को समझता की बच्ची को खुली हवा में जाने दें दूसरे लोगों को खिलाने दें लेकिन वो बच्ची को किसी को छूने ना देती। और फिर एक दिन दम घुट जाने से फूल सी बच्ची की मौत हो गयी। घर में फिर एक बार मातम पसर गया था। लकिन वक़्त सारी चोटों पर मरहम लगा देता है। यहाँ भी ऐसा ही हुआ कुछ वक़्त बाद सब पहले जैसा होने लगा सिर्फ जिजिया को छोड़ कर उसकी हालत पहले से और बुरी होती जा रही थी।
साल और फिर दो साल, धीरे - धीरे वक़्त बीतता चला गया। रामेश्वर गुप्ता के घर में फिर से चहल पहल होने लगी थी उनकी दूसरी बेटी और उसके छोटे भाई की आटे - साटे में शादी जो होने वाली थी। यानी कि रामेश्वर गुप्ता की बेटी उनके घर और उनकी बेटी रामेश्वर गुप्ता के घर की बहु बनने वाली थी।
घर में शादी में ढेरों काम होते हैं। वैसे तो केतकी की मानसिक स्थिति ख़राब थी लेकिन भाई बहन की खुशियों में वह भी बहुत खुश थी। घर की चहल पहल में उसने भी कई बार सबकी शादी के कामों में मदद करनी चाही लेकिन हर बार कुछ ना कुछ बिगाड़ हो जाता केतकी के हाथों और बस घर का माहौल बिगड़ जाता।
इसी तरह रामेश्वर गुप्ता के सभी बच्चों की शादी हो गयी और केतकी अभी भी परिवार में वैसे के वैसे ही बनी हुई थी। हर बार शादी के काम काज में जिजिया काम करने की ज़िद करती और कुछ ना कुछ खराब हो जाता। रामेश्वर गुप्ता बार - बार उसे मना करते लेकिन जब जिजिया ना मानती तो पाइप का टुकड़ा उठा कर उसे बेदम पीटते, तब तक पीटते जब तक थक कर चूर न हो जाए। केतकी के सारे बदन पर निशान थे नीले - हरे रामेश्वर गुप्ता की जितनी भी चिंता थी केतकी को लेकर वो सब अब खीझ में बदल चुकी थी। पहले तो जब वे इस तरह केतकी को पीटते तो कोई ना कोई उन्हें समझता था लेकिन अब यह आम बात हो चुकी थी और अब उस घर में कोई उसे जिजिया नहीं बुलाता था। ना तीर्थ ना व्रत सब कुछ रामेश्वर गुप्ता का घर ही था। वे केतकी की वजह से कहीं आ जा नहीं सकते थे। सब कुछ स्थिर सा हो चला था गुप्ता परिवार में और उनके घर में , घर नाती पोतों से भर गया था और केतकी एक कमरे में पड़ी रहती थी। अब उसकी बच्ची की यादें शायद उसके ही मन में थी।
कुछ सालों में केतकी पागल सी हो गयी थी लगभग पच्चीस वर्ष की तो हो ही गयी होगी। उसका जीवन एक लंबी यात्रा सा हो चला था और अब उसे ऐसा लगता था की उसके जीवन से सारे सुखद आयाम बीत चुके हैं। परिवार की ख़ुशी में खुश उनके दुःख में दुखी होते - होते उम्र काटती जा रही थी। जब परिवार ख़ुश तब केतकी भी ख़ुश होती थी। बस इतने ही काम की बची थी उसकी जिंदगी और ज़िंदगी में दिन ही कितने बाकी थे।
फिर एक सर्द रात आयी और सोती हुई केतकी की जीवन लीला समाप्त कर के चली गयी। सारा बदन अकड़ गया था उसका चेहरा नीला पड़ गया था। एक सामान्य कद काठी की केतकी का शरीर एक पोटली जैसा हो गया था। उम्र से पहले बुढ़ापा उसके शरीर को जकड़ चुका था। और अब मौत ने उसे जकड़ लिया था। शरीर की जकड़न से तो शायद उसे छुटकारा मिल जाता लेकिन मौत की पकड़ और उसकी जकड़ इससे भला कौन छूट पाया है। दुनिया चाहे कितनी भी आगे बढ़ जाए मौत को कभी नहीं हरा पाएगी।
बाद उस वक़्त की हो जब केतकी का दौर था या बात आज की हो मौत कभी नहीं बदलती है।
कभी कभी मौत उन सारे दर्द और तकलीफों से निजात दिला देती है जिन्हें जीवन कभी नहीं पाट पाता है।
कुछ दिन रामेश्वर गुप्ता के घर में रोना पीटना मचा रहा और फिर सबकुछ पहले जैसा हो गया।
केतकी यानी जिजिया के जीवन का अध्याय उन सभी के जीवन से ख़त्म हो चुका था ।
