जागरूकता
जागरूकता
यह कहानी ही नहीं अपितु मेरे विद्यालय में अध्ययनरत एक छात्रा की सच्ची घटना पर आधारित दिल को छू जाने वाली है। यह छात्रा मेरे विद्यालय में कक्षा 8 में पढ़ती थी। जब भी मैं विद्यालय जाता और पढ़ाने लगता तो कई बार मैंने उस पर जब नजर डाली तो उसका पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगता था। जब प्रश्न पूछता तो सहमी हुई कोई भी उत्तर नहीं देती थी। मैं विद्यालय में एकल शिक्षक हूँ। कोई भी महिला शिक्षक नहीं है, मेरे समझ में नहीं आ रहा था इसका कारण कैसे पता लगाया जाये। विद्यालय में एम.डी. एम बनाने वाली दो रसोईयाँ जरूर थी। मैंने सोचा बच्ची किशोरावस्था में है, इससे जुड़ी कई समस्याओं को मैं कैसे प्रस्तुत करुँ। हालांकि मैंने डाइट में कई अध्यापकों को किशोरावस्था से जुड़ी कई पहलुओं पर प्रशिक्षण भी दिया था। महिला शिक्षिका के न होने के कारण मैं उस छात्रा से चाह कर भी कुछ नहीं पूछ पाता था ,फिर मेरे मन में यह बात आई क्यों न इस छात्रा की समस्या का रसोइयों से पता लगाऊँ।
मैंने एक दिन इंटरवल में रसोइयों को प्रधानाध्यापक कक्ष मेंं बुलाया और विस्तार में उस छात्रा केेेे बारे में पता लगाने को कहा रसोइयों की जब मैंने बात सुनी तो मेरा दिल दहल गया और आंखो में अश्नु भी आ गए। छात्रा की माता का देहांत हो चुका था। छात्रा के पांच बहिनेें और थी। यही सबसे बड़ी थी। उसके पिता प्रतिदिन शराब पीकर बच्चों को डराता- धमकाता था, और इस छात्रा से घर के सारे काम करवाता था, और जो बात मैं कहने जा रहा हूँ, जिसको जानने के बाद खून का रिश्ता भी शर्मसार हो जाएगा।
मैंने रसोइयों की बात अनसुनी कर सोचा क्यों न एक बार घर पर जाकर छात्रा की परेशानी का पता लगाया जाए। अगले दिन मैं छात्रा के घर पर गया।वह विद्यालय भी नहीं आई थी, जैसे ही घर पहुँचा तो देखता हूूँ कि वह चूल्हे पर रोटी बना रही थी। उसके पिताजी घर पर भी नहीं थे। मैंने कहा-" बिटिया तुम स्कूल क्यों नहीं आई , वह बिना जवाब दिए रोने लगी। मैंने कहा-" बेटी घबराओ मत, मुझे भी तुम अपने पिता दाखिल समझो और क्या बात है जो तुम्हारा स्कूल में पढ़ने में पढने में मन नहीं लगता है । और सहमी -सहमी क्यों रहती हो ?उसने कोई भी उत्तर नहीं दिया और तेज रोने लगी। मैं उस छात्रा को सांत्वना देकर स्कूल बापिस आ गया।
रसोइया से मैने फिर पूछा कि असली बात बताओ ,कुछ भी छिपाओ मत,उस छात्रा के भविष्य का सवाल है।रसोइया ने कहा," उसके पिता प्रतिदिन ज्यादा शराब पीकर आता है तो इससे अपने पैर दबवाता है और उसके साथ अश्लील हरकतें करता है ,और जब वह रोती और चिल्लाती है तो मारने- पीटने लगता है। मेरे शरीर से मानो पैरों तले जमीन खिसक गई हो। घर पर आकर मैंने यह बात अपनी पत्नी से साझा की और कहा-" क्या करना चाहिए ? मेरी पत्नी दूसरे दिन मेरे साथ विद्यालय आई और मैंने जो- जो पत्नी को समझाया था , हांलाकि पत्नी गृहणी हैं और MA पॉलिटिकल साइंस से किया है। जो मैंने किशोरावस्था की अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया था, मैंने पत्नी से भी साझा किया ।अगले दिन विद्यालय में मेरी पत्नी प्रधानाध्यापक कक्ष में बैठकर उस छात्रा को प्यार से बैठा उसके मन की सारी बात जान ली और वह छात्रा रोने लगी, मेरी पत्नी ने समझाया, तुम समझदार हो और अगर तुम्हारे पिताजी कभी भी ऐसी हरकत करते हैं तो तुम दौड़ कर अपने गांव के प्रधान और समझदार व्यक्ति से 112 नंबर डायल करवाकर पुलिस को बुलवा लेना। तुम्हारे पिताजी को हमेशा के लिए सबक मिल जाएगा। पत्नी ने छात्रा की कॉपी में बाल -शोषण होने पर चाइल्ड केयर मोबाइल नंबर भी लिख दिया।और पुलिस की तत्काल सेवा लेने का भी नंबर लिख दिया।
जब वह छात्रा ऑफिस से निकल कर बाहर आई तो उसके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी। पत्नी ने आत्मरक्षा के कुछ पैतड़े भी बता दिए ।
और कुछ दिन बाद पता चला कि उसके पिताजी ने शराब पीना छोड़ दिया और सभी बच्चों को विद्यालय भेजने लगा। और जो कभी विद्यालय नहीं आता था आकर बहुत शर्मिंदा हुआ।और कहा-"गुरुजी मेरी मति मारी गई थी, जो मैंने अपने खून के साथ ही गलत सुलूक करने की कोशिश की।" मैंने कहा-" जब जागो तब सवेरा।
यह परिवर्तन कैसे हुआ, तो पता चला मैंने यह बात प्रधान जी को साझा की थी ।उन्होंने उसका राशन- पानी सब कुछ बंद कर दिया था और कमरे में 15 दिन तक बंद रख कर शराब नहीं छूने दी और उस पर पूरी निगरानी रखी।
जागरूकता में इतनी शक्ति है कि "बाल- शोषण" जैसी घिनौने कृत्य को ऐसे ही खत्म किया जा सकता है। अब वही छात्रा खुश होकर पढ़ाई में मन लगाती थी और आज भी जहाँ मिल जाती है तो कहने लगती है, गुरु जी आपने मेरा जीवन बचा दिया। मेरे आंखों में आंसू आ जाते और मैं कहता-" बेटी, तुम बेटे के समान हो, और आगे भी अपनी आत्मरक्षा के लिए लड़ाई लड़ती रहना और लड़कियों में जागरूकता को फैलाती रहना।