इश्क़ का दरबार
इश्क़ का दरबार
कहते हैं ज़िन्दगी गुलजार है और ये इश्क़ का दरबार है, लेकिन मुझे तो नहीं लगता क्योंकि ज़िन्दगी तो एक संघर्ष का नाम है। हर कोई अपना रोल अदा कर रहा है। जो बुज़ुर्ग हैं वो दवाई के चक्कर में मशरूफ है, जो जवान है उन्हें तो बस अच्छी नौकरी और अच्छी बीवी और सुकून वाली ज़िन्दगी, बच्चों का तो न पूछो हाल क्योंकि उनके पास सब है फिर भी वह इस आधुनिक ज़माने में खो गए हैं। अब तो हाल ये है कि हम गुलाम जैसे हो गए हैं इस मोबाइल के, इंटरनेट के।
अब मै आपको एक और समाज से मिलाना चाहूंगी क्योंकि वहाँ तो हमारा ध्यान जाता नहीं है या ये कहे कि हम सब जानते लेकिन उसे अनदेखा करते है।
"अरे सकीरा ! तूू इतनी उदास क्यों है ?"
"क्या हुआ तेरे तो रिश्ते की बात चल रही थी ना तो तय हुआ या नही?"
"नहीं, सना तू तो जानती है न कि मेरा रंग कितना सांवला है और अगर कोई पसन्द भी करले तो उसे बहुत सारा दहेज चाहिए, आह! अब कहाँ से लायेंगे जाने दे सना शायद तेरी दोस्त के किसमत में यही लिखा है। "
"नहीं सकीरा... ऐसा नहीं सोचते देखना तुझे भी कोई राजकुमार ब्याहने को आयेगा ,यार ये बात बचपन से सुनते आ रहे है अम्मा कहती थी पढ लिख लेगी तो अच्छे घर जायेगी तो तू देख अब तो बी. ए. अव्वल नंबर से पास कर लिया एक तू है सना तुमने तो बस सातवीं दरजा पास की है और तेरा रिश्ता भी लग गया जिसको तु पसन्द करती थी । यार हमें तो प्यार करने का भी हक नहीं है क्योंकि सबको खूबसूरत लडकी चाहिए ।"
"लेकिन सकीरा ... शादी के बाद तो सबको खूबसीरत ही चाहिए होती है न।
हाँ सना !!!"
"सकीरा जैसी नेक सीरत बहुत है हमारे मुआशरे में लेकिन लोग इसको अपना भी तो नहीं सकते लोग क्या कहेंगे!"
"मैं ये नहीं कहती की सबकी सोच ऐसी है लेकिन एक बहोत बड़ा हिस्सा हमारे समाज का है जो सकीरा की तरह अपनी ज़िन्दगी जी रही है। "
"क्या सच में ज़िन्दगी इश्क़ का दरबार है?"
