इंतजार

इंतजार

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वह पहाड़न लड़की आज बड़ी ‌खुश है। बड़े उत्साह से अपने घर को संवार रही है फूल चुन चुन कर गुलदस्ते बना रही है घर में सब्जियों की मात्रा बढा देती हैं ताकि स‌र्द दिनों में उसे गर्म सूप पिला सके। खुद को सजाती है नये कपड़े पहनती हैं श्रृंगार करती है.…संबंधों और दोस्ती से परे एक ऐसा रिश्ता या यूं कहें जिंदगी से परे भी लेकिन एक दूसरे के साथ समाया हुआ वह रिश्ता जीवन में यू शामिल था कि जिंदगी मे‌ इसके अलावा कुछ और शेष नहीं था एक यही मकसद उसके जीवन का, उस अजनबी अपरिचित से मुलाकात करने का... कौन है? क्या है? नहीं जानती, फिर भी हर वर्ष उसका इंतज़ार करती है।


वह हर वर्ष सर्द ऋतू का इंतजार रहता हैं उसे लगता है कि वह ठण्ड के दिनों में पहाड़ पर बर्फ को देखने जरूर आएगा। उसने वादा भी किया था जनवरी में ही आने का। लोग नववर्ष के लिए जनवरी का इंतजार करते हैं और जनवरी इस पगली के लिए उस अपरिचित का…


जैसे-जैसे जनवरी पास आती है वह दुगने उत्साह से पहाड़ की चोटी पर जाकर उसके इंतजार में खड़ी हो जाती है जनवरी का आखिरी दिन उसके चेहरे से मुस्कान छीन ले जाता है वह अथाह तकलीफ में होती है जिसे नहीं आना था, नहीं आता। और उसके लिए रह जाता है इंतजार...और अगली जनवरी का इंतजार। नहीं जानती है ये उसको बीते वक्त की खुशियां बहुत तकलीफ देते हैं महज दिल को जलाती हैं और यूं ही दिन बीत जाते हैं साल गुजर जाते हैं


जनवरी लौट जाती है मगर वो खुशफहमी लड़की न जाने क्यों पहाड़ पर टकटकी लगाए जाने क्या सोचती रहती है उस अपरिचित अजनबी को कभी इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कोई उसका भी बेसब्री से इंतजार कर रहा है अनजान बेखबर अपने जीवन के पलों को आनंद से भरपूर गुजार रहा होगा।


यह कहानी कुछ इस तरह शुरू हुई कि शिमला का एक छोटा सा गांव प्रपोल... चारों तरफ पहाड़ों से घिरा हरियाली से आच्छादित। जहां ऊंची इमारतें नहीं है आधुनिक मॉल भी नहीं है चमचमाते स्कूल भी नहीं हैं छोटी सी डिस्पेंसरी है गाडिया तो यदा-कदा ही दिख जाती है उस एक सुहानी सर्द सुबह खिड़की से बाहर पहाड़ों पर वह गिरती बर्फ को देख रही थी अपने ही ख्यालों में गुम कुछ ख्वाब बुन रही थी कि अचानक दूर कोई आकृति अपने कैमरे से कुछ तस्वीरें निकाल रहा है अक्सर उसे सैलानी ऐसा करते हुए दिख जाते हैं काली पैंट और नीली जैकिट पहने हुए वो गले में स्कार्फ डालें हूए था उसका स्कार्फ बर्फ के रंग के जैसा था वो‌ तस्वीरें लेता रहा कभी इस एंगल से कभी उस एंगल से। अलग अलग तरह की तस्वीरें, न जाने कितनी ही। उन तस्वीरों में शायद एक छवि उस पहाड़ की तलहटी में बने लकड़ी के मकान की एक खिड़की की भी थी जिसमें से वह लड़की झांक रही थी। अपलक देखते हुए वह पहाड़ी लडकी उस फोटोग्राफर की नीली आंखों के सम्मोहन में बंध गई थी उसे कुछ होश ही नहीं रहा कि उसके आसपास की दुनिया कुछ और है वह उसे लगातार देखती रही। अचानक एक बर्फ का टुकड़ा फोटोग्राफर के सिर पर आकर लगा। वो वहीं अचेत हो गया, उसे गिरता देख लड़की की तंद्रा भंग हुई। वह बाहर की और भागी। साथ में गर्म तेल और सूप की केटली लेकर उस अपरिचित के पास पहूंची। सिर पर होले होले हाथ से तेल मला जिसकी गर्मी पाकर उसकी चेतना लौटी, उसने गर्म सूप पीने को दिया। सुप् पीते ही‌ उसे लगा कि उसे कुछ हुआ ही नहीं वो चुस्त दुरुस्त महसूस करने लगा। उसने उसे हाथ से कुछ देर रुकने को कहा ताकि उस अजनबी को वह कुछ खिलाकर दवाई दे सके।

जब वह गर्मागर्म नूडल्स लेकर लौटी तो वो नीली आंखों वाला जा चुका था। उसके स्थान पर वो सूप वाला कागज का मग जिसमें उसने सूप पीया था और एक पर्ची पड़ी थी जिस पर लिखा था.........


रिक्त संबोधन के साथ तुम्हें यह खत लिख रहा हूं तुम समझदार हो मेरी बात समझ ही जाओगी मेरे और तुम्हारे बीच में क्या संबंध है. दिसंबर में नहीं आ सकता।लाख कोशिशे भी बेकार है. ऑफिस में काम बहुत है मैं जनवरी में आऊंगा तुमसे मिलने। जनवरी में नववर्ष के आगमन के साथ ही धरती का मौसम सफेद होता है आसमान भी कोहरे के बहाने अपना रंग छुपा कर दूर क्षितिज तक पसरा रहता है। बस मैं उन दिनों तुमसे मिलने आऊंगा. जब मौसम की रंगत के साथ अपना प्रेम इंद्रधनुष के रंगों की भांति खिल उठेगा। तब हम बर्फ की इन वादियो‌ मे अठखेलिया करेंगे। मेरा इंतजार करना….

तुम्हारा…….


खत और मग दोनों आज भी उस अजनबी की धरोहर बने हुए हैं वह इन दोनों चीजों को अपने सीने से लगा कर रखती है। वह भोली भाली पहाड़न कभी इस बात को समझ ही नहीं पाई कि अजनबी कभी लौट कर नहीं आते‌ वो उस तूफानी सर्द सुबह में अपनी जगह खड़ी रहती है उसका इंतजार करती है चलते फिरते लोग अक्सर उसके पास आते हैं उसके चेहरे पर की मुस्कुराहटों की पृष्ठभूमि में उसका ठहरा होना तस्वीरों में समेटकर चले जाते हैं


वो चलना चाहती है बहना चाहती है ढूंढना चाहती है कोई नई दुनिया जो उसके इंतजार में है लेकिन अफसोस, वो मन मे जमी उस जकड़न को ना जीते जा सकने की हद तक की, को मिटा पाने में असफल रहती है आज भी धरती पूरी सफेद है आवागमन के रास्ते भी बंद है कभी कभी कोई राहगीर नज़र आ जाता है वह जनवरी को फिर से मौका देती है शायद इस बरस…. उसने अलविदा कहना भी कहां सीखा था इसलिए उसने अपने जीवन का सबसे सुंदर सपना सब से छुपा कर ऱख लिया था अपने सीने में….


फोटोग्राफर अपना कैमरा संभाल कर जल्दी जल्दी होटल पहुंच कर अपना सामान उठा कर एयरपोर्ट निकल गया। फ्लाईट में बैठकर उसे वो लड़की याद आयी‌ और वह अफसोस करने लगा कि उसने उसका धन्यवाद नही किया. लेकिन जल्दी ही इस बात को भूल गया। आज वह बहुत खुश था. उसे मंजिल मिलने वाली थी कई दिनों से इस कार्य में जूटा हुआ था. आज वह पूरा करके जल्दी से जल्दी पहुचना चाहता था. गंतव्य पहूंच कर वह सीधे ही एक पत्रिका के संपादक के सामने पहुंचा। कैमरे से निकाली तस्वीरों को दिखाने लगा। एक एक तस्वीर को ध्यान से देखते हुए सम्पादक जी बड़े प्रसन्न नजर आ रहे थे। संपादक जी उसके द्वारा निकाली गई तस्वीरों की तारीफ किए जा रहे थे और वह गर्व से फूला नहीं समा रहा था। उसने पैंट की जेब में हाथ डालकर कुछ निकालने का उपक्रम किया वो उसे नहीं मिला। उसने पूरी जेब उलट कर रख दी साथ लाया सामान भी बिखेर दिया एक एक कपड़ा उठाकर झटक दिया पर वो खत नहीं मिला। मिलता भी कैसे वो कागज़ का टुकड़ा उन पहाडो की वादी में छूट गया था। वह हताश हो गया उसकी मेहनत पर पानी फिर गया था….वो कागज़ का टुकड़ा उसके द्वारा लिखी गई कहानी का आखिरी हिस्सा था जो उन बर्फिले रास्तो पर टहलते हुए उसके दिमाग में अचानक कोंधने वाला विचार था अब उसने उसे खो दिया था….इस कहानी को उसे तस्वीरों के साथ छपने देना था इस कहानी के साथ उसकी नौकरी कन्फर्म होनी थीं। हैरान परेशान सम्पादक महोदय की डांट खाकर वह घर लौट आया। लाख कोशिश करने के बाद भी वो कहानी फिर कभी पूरी न हो सकी... 

जाने क्यों कुछ कहानियां हमेशा अधुरी ही रह जाया करती है जैसे कि जनवरी के इंतज़ारवाली कहानी...



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