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Anviksha Rathore

Drama Action Thriller

4  

Anviksha Rathore

Drama Action Thriller

इंस्पेक्टर तवेशी

इंस्पेक्टर तवेशी

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भयंकर तूफान से भरी रात थी वो । तेज हवाएं इस कदर चल रही थी कि कोई भी डर से कांप जाए और इसी के साथ होती मूसलाधार बारिश अजीब सा ही तूफान था जैसे कह रहा हो कि ऐसा ही तूफान किसी की ज़िंदगी मे भी आने वाला है। सर्द रात की उस तूफानी बारिश में जँहा लोग अपने घरों में घुसे हुए भी ठिठुर रहे थे तो वंही एक गौदाम ऐसा भी था जिसमे कुछ लोग अभी भी काम मे लगे हुए , बोरियों को उठाकर वँहा खड़े ट्रक में डाले जा रहे थे । पर ये क्या बोरियों में कोई सामान नही बल्कि लड़कियों को बांध के डाल रखा था और उन्हें ट्रक में भरा जा रहा था । ये लोग इतने निश्चिन्त होकर काम कर रहे थे कि जैसे कोई इनका कुछ नही बिगाड़ सकता । किसी के भी चेहरे पर डर का नामोनिशान नही था । कुछ था तो वो थी सिर्फ हैवानियत ।

ये ह्युमन ट्रेफिकिंग वाले हैवान थे जो इस तूफानी बारिश में भी नही रुक रहे थे । लेकिन दो लोग ऐसे थे जो चोरी छुपे इस गौदाम में घुस चुके थे । और ट्रक की तरफ बढ़ रहे थे । दोनों ने यूनिफार्म पहन रखी थी जिससे साफ पता चल रहा था कि दोनों ही पुलिस ऑफिसर है । सभी लोग अपने काम मे बिजी थे जिससे उन पर ध्यान नही दे पाए । क्योंकि सबको यकीन था ऐसी सर्दी की तूफानी बारिश में कोई बाहर नही निकलेगा पर वो भूल गए थे कि वो हैवान है तो दुनियां में और भी बेखौफ लोग है और ये दोनों उन्ही लोगों में से थे । दोनों बचते बचाते ट्रक के पास पहुंच ही गए पर तब तक कुछ लोगों की नजर उन पर पड़ गयी और फिर शुरू हुई हाथापाई । वो दो लोग उन सभी पर भारी पड़ रहे थे जिससे ये साफ पता चल रहा था कि दोनों काफी बहादुर है और उनको ट्रेनिंग भी बहुत अच्छी मिली हुई है । आखिरकार दोनो ने मिलकर वँहा के मौजूद सभी हैवानो को धूल चटा दी । दोनो एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए कि तभी किसी ने उनमे से एक कि पीठ पर लात दे मारी और वो अपने साथी पर जा गिरा । उसका साथी झटके से उठा और वापस वार करने ही वाला था कि अचानक उसके गले पर वार हुआ और खून उछल कर जिसके ऊपर गिरा था उस साथी के चेहरे पर फैल गया और वो भी कटे पेड़ की तरह लहराकर फिर अपने ही साथी पर गिर पड़ा । उसका वो साथी अपने ही साथी के खून से नहा चुका था । अपने साथी का ये हाल देख उसकी आंखें पत्थरा गयी और एक जोरदार चीख गले से निकली ।

.......................

यंहा एक लड़की झटके से उठ बैठी । हमेशा की तरह आज फिर वो सपना उसकी आँखों में घूम रहा था । वो इस सपने से ना घबराई , ना ही किसी तरह की कोई शिकन उसके माथे पर दिखी जैसे ये सब देखने की आदि हो गयी हो वो । उस लड़की ने अपने आई ब्रो पर हाथ फिराया और घड़ी की तरफ देखा हमेशा की ही तरह आज भी अलार्म से पहले उठ चुकी थी वो या फिर हमेशा की तरह इस सपने ने जगा दिया उसे । वो खड़ी हुई और फ्रेश होकर ट्रैक सूट डाला , उसके ऊपर हुडी जिससे उसने अपना सर कवर कर लिया , मोबाइल फोन लिया और ईयरप्लग्स लगाकर घर से बाहर आ गयी और दौड़ पड़ी दिल्ली की सड़कों पर । दिसम्बर के अंतिम दिन चल रहे थे । ठंड अपने पूरे चर्म सीमा पर थी पर उस लड़की को कोई फर्क नही पड़ रहा था । वो धुंध में खाली पड़ी सड़क के किनारे बस दौड़े जा रही थी और कानों में भी सिर्फ एक ही गाना रिपीट पर चल रहा था । साहिबा चल वहां , जहां मिर्जा...

उसकी ज़िन्दगी में मनोरंजन के नाम पर सिर्फ ये एक ही गाना था । इस गाने के अलावा वो किसी दूसरे गाने को देखना सुनना पसंद नहीं करती थी । धुंध तो थी ही पर साथ ही हल्का हल्का अंधेरा भी था । ऐसे में जब लोग घर में दुबके बैठे थे वो सड़क पर पागलों की तरह दौड़े जा रही थी। तब तक दौड़ती रही जब तक सांसे शरीर को छोड़ने पर उतारू ना हो गयी हो ।

आखिर में थककर निढाल सी एक गार्डन में बैंच पर बैठ गयी और गहरी गहरी सांसे लेने लगी। हल्का हल्का उजाला हो गया था पर धुंध अभी भी बरकरार थी । इस तरह खुद को तकलीफ देकर ना जाने मन का कौनसा गुब्बार शांत करने की कोशशि करती थी वो पर पिछले 1 साल से ये रूटीन सा बन गया था । वँहा बैठे बैठे ना जाने उसके दिमाग मे क्या कुछ चल रहा था क्योंकि चेहरे पर अनगिनत भाव आते जाते नजर आ रहे थे । गार्डन में अब और भी लोग आने लगे थे । धीरे धीरे हलचल बढ़ने लगी तो वो उठकर घर के लिए रवाना हो गयी । इस पूरे समय मे वो एक गाना ही था जो एक पल ल लिए भी नही रुका । घर पहुंची तो देखा घर मे काम करने वाली विद्या दीदी आ गयी थी । उनको चाय का कह खुद अखबार लेकर बैठ गयी । थोड़ी देर में चाय आ गई तो चाय पी कर नहाने चली गयी । बाथरूम से बाहर निकलकर ड्रेसिंग के सामने खड़ी हो गयी। और खुद को देखने लगी और सोच में पड़ गयी कि 1 साल में कितना कुछ बदल गया पहले इस ड्रेसिंग के सामने खड़ी होती थी तो आंखों में चमक होती थी अब सिर्फ और सिर्फ खालीपन है एक वीरान सा सूनापन । लड़की ने एक नजर खुद को देखा तो नजर यूनिफार्म पर लगे नेम बेच पर पड़ी । जिस पर लिखा था इंस्पेक्टर तवेशी राठौड़ । हाँ ये लड़की कोई और नही इस कहानी की नायिका ही थी । इंस्पेक्टर तवेशी राठौड़। कशिश ने अपनी यूनिफार्म सही की । जुड़ा बनाया , जूते पहनके सर पर कैप लगाई और एक बार फिर खुद को देखने लगी । कन्धे पर तीन सितारे देख इस वक्त उसके चेहरे पर इस पद की गरिमा अलग ही थी । तवेशी ने ड्रॉअर से गन निकाली और पीछे कमर में डाल ली और हाथ घड़ी पहनते हुए नीचे आने लगी तभी उसके कानों में घर में हो रही आरती की आवाज पड़ी । जिसे सुन तवेशी बड़बड़ा उठी - आहह्ह , फिर से नही,,,,,,। हजार बार बोल चुकी हूं छोटी माँ को फिर भी ये सब,,,,,,।

घर मे तवेशी के पिता की दूसरी पत्नी मालती जी आरती कर रही थी । कहने को तो तवेशी की दूसरी माँ थी पर उसको प्यार इतना दिया जितना कोई सगी माँ भी नही दे पाती । तवेशी को कभी नही लगा कि उसकी मां दुनियां में नही है । हाँ वो उन्हें माँ नही कह पाई कभी क्योंकि वो अपनी माँ के बहुत करीब थी । इसलिए माँ नाम किसी और को नही दे पाई पर वो हमेशा छोटी मा कहके ही बुलाती मालती जी को साथ हि उन्हें मान सम्मान हमेशा सगी मा की तरह ही दिया। मालती जी ने आरती पूरी की और आरती देने जैसे ही मुड़ी तो तवेशी पर नजर पड़ी - अरे तवेशी बेटा हो गयी तैयार ।

तवेशी उनके पैर छूकर - जी छोटी माँ पर आप कब आई ।

मालती जी आशीर्वाद देते हुए बोली - बस अभी थोड़ी देर पहले ही आई । पर तुम तो जा रही हो ।

तवेशी कुछ बोलती की तभी उसका फोन बज उठा । बात करते वक्त माथे पर थोड़ी सी शिकन आई पर जल्दी ही नॉर्मल हो गयी और जल्द ही लोकेशन पर पहुंचने का कह फोन रख दिया ।

तवेशी ने मालती जी को देखा जो नजरों से ही सवाल कर रही थी कि क्या हुआ तो तवेशी बोली - मर्डर हुआ है करोल बाग में वंही जा रही हु ।

मालती जी रोकने की कोशिश करते हुए - पर बेटा आज तो तेरा जन्मदिन है ना । छुट्टी ले ले और भी तो लोग है डिपार्टमेंट में वो सम्भाल लेंगे ।

तवेशी - आपकी बेटी एक साल पहले ही मर गयी छोटी माँ तो मरे हुए लोगों का जन्मदिन नही मरणदिन होता है ।

मालती जी ने डपटकर बोली - तवेशी ,,,,!

तवेशी ने उनकी बात पर ध्यान नही दिया और पूजा की थाली का दीपक फूँक मारकर भुजा दिया और बोली - आपको कितनी बार कहा है मेरे फ्लेट में आपके भगवान की कोई जगह नही है इसलिए क्यूँ हर बार मेरे हाथों इनका अपमान करवाती है । रात को ड्यूटी से आऊँ तो ये पूजा का सारा तामझाम यंहा से गायब हो जाना चाहिए वरना अगर मैंने अपने तरिके से किया तो आपको तकलीफ होगी जो मैं नही चाहती।

मालती जी आंखों में आँसू भरकर - ये बगावत कब तक चलती रहेगी बेटा ।

तवेशी - जब तक सांसे चल रही है ।

उसने मालती जी के आंसू पोंछे और बोली - आपकी बेटी इस काबिल नही है छोटी माँ की आप अपने कीमती आंसू उस पर वेस्ट करो । आपसे कितनी बार कहा है कि आप भी अपने पति की तरह मुझसे मुह मौड़ लो तकलीफ कम होगी ।

मालती जी - मेरे पति से पहले वो तेरे पिता है बेटा ।

तवेशी व्यंग्य से मुस्कुरा दी - फिर भी उन्होंने ज़िन्दगी की सबसे बड़ी हार थाली में परोसकर अपनी बेटी को दे दी । वैसे भी वो शुरू से यही तो करते आए है ।

मालती जी - तुम बाप बेटी के बीच मैं पिस रही हु वो नही दिखता ।

तवेशी - मैं तो कह चुकी हूं आप दोनों कसती में सवार मत होइए । आप अपने पति को चुन लीजिये क्योंकि मैं तो अब बदल नही पाऊंगी आप जानते ही हो । इसलिए आप उनके पास जाइये जो इन आँसूओ की कद्र करे । मेरे तो खुद के सूख गए , आपके आँसूओ की कीमत क्या ही समझूंगी।

मालती जी बोलने को हुई तो तवेशी ने बीच मे रोक दिया - मुझे लेट हो रहा है छोटी मां चलती हु ।

तवेशी बाहर निकल गयी । बिद्या दीदी पीछे से नास्ते के लिए आवाज देती ही रह गयी । उसने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और करोल बाग की तरफ घुमा दी । गाड़ी में भी इस वक्त वही गाना चल रहा था ।

साहिबा चल वँहा , जँहा मिर्जा ........


क्रमशः



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