इंसान और कुत्ते
इंसान और कुत्ते
आज सुबह मैं अखबार पढ रहा था कि मोबाइल ने घनघना कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। हमारी सोसायटी के अध्यक्ष जी थे। मैंने मन ही मन सोचा कि इतनी सुबह क्या बात हो सकती है ? मगर कोई क्लू हाथ नहीं लगा।
"हैलो"
"नमस्कार भाईसाहब"
"नमस्कार अध्यक्ष जी। आज सुबह सुबह क्या हो गया ऐसा कि फोन करना पड़ गया" ? हमने हंसते हुए पूछा।
"कुत्ते, भाईसाहब कुत्ते"
मैं एकदम से चौंका। क्या इसने मुझे कुत्ता कहा ? इतनी हिम्मत नहीं हो सकती है अध्यक्ष जी में। कोई और बात होगी। माना कि कॉलोनी में कुत्ते बहुत ज्यादा हो गये हैं आजकल। और इंसान भी अब इंसान कहां रहा , वह तो कुत्ता बन गया है अब। तो क्या आज किसी इंसान के कुत्ते बनने जैसे कार्य पर चर्चा होगी ? जिज्ञासावश पूछ बैठे
"क्या किसी इंसान ने किसी कुत्ते को काट लिया है" ?
"नहीं भाईसाहब, अगर ऐसा होता तो वह कुत्ता तो अब तक मर गया होता। यहां तो कुत्ते ने ही इंसान को काटा है और अभी तक तो दोनों ही जिंदा हैं"।
यह चौंकाने वाली बात थी। आजकल तो आदमी कुत्ते को काटे या कुत्ता आदमी को, मरता कुत्ता ही है। क्योंकि आदमी में इतना जहर भर गया है कि कुत्ता उसे झेल ही नहीं पाता है और वह तुरंत मर जाता है। लेकिन इसमें चिंता की क्या बात है ? यह समझ से परे थी।
"तो क्या कुत्ते के जिंदा बचने पर कोई उत्सव आयोजित करना है" ? हमने बात आगे बढ़ते हुए कहा।
"नहीं भाईसाहब, इस मुद्दे पर सोसायटी की एक मीटिंग रखी है आज रात में आठ बजे। आपको अवश्य आना है"।
कुत्ते के मुद्दे पर सोसायटी की मीटिंग ? बड़ी विचित्र बात थी। हमने आश्चर्य से पूछा
"अध्यक्ष जी, वो छमिया भाभी कबसे कह रही हैं कि बच्चों के खेलने की बड़ी समस्या है ? कोई खेल मैदान ही नहीं है मौहल्ले में।पार्क में उन्हें खेलने नहीं देते हैं लोग और दूसरी कोई जगह है नहीं। फिर बेचारे बच्रचे कहां जाएं खेलने ? मगर आपने उस बात पर तो कोई मीटिंग नहीं बुलवाई और कुत्तों की कुत्ती जैसी बात पर आप मीटिंग बुला रहे हैं ? हमने थोड़ा तमक कर कहा।
हें हें करके वे थोड़ी देर तक हंसते रहे फिर कहने लगे "उस पर भी बुलाएंगे। पर आज तो कुत्तों की समस्या पर ही है यह मीटिंग। आप नहीं जानते हैं भाईसाहब, ये समस्या बहुत गंभीर है। मौहल्ले में आवारा कुत्ते बहुत हो गए हैं और बेशर्म भी। जहां देखो वहीं "इश्क" फरमाने लग जाते हैं। ये भी नहीं देखते हैं कि उधर से कोई महिला गुजर रही है तो उसका थोड़ा सा तो लिहाज रखें। मगर नहीं। अपनी ही धुन में मस्त होकर अपने "कार्यक्रम" में मशगूल रहते हैं , बेशर्म कहीं के। उस "सुंदर दृश्य " को देखकर बेचारी महिला को ही अपना रास्ता बदलना पड़ता है।
दूसरा कारण यह है कि लोग बीच चौराहे पर कुत्तों को रोटी डाल देते हैं इससे इनमें लड़ाई होती रहती है। उस समय अगर कोई मी व्यक्ति वहां से गुजरे तो वह आदमी इनकी चपेट में आ जाता है और गिर पड़ता है। दो चार कुत्ते उस पर टूट पड़ते हैं और उसे जगह जगह से काट खाते हैं। उस इंसान को बिना बात के ही इंजेक्शन लगवाने पड़ जाते हैं। अब यदि उन रोटी फेंकने वालों को मना करो तो वे "काट खाने" को दौड़ते हैं। पुलिस की धमकी भी देते हैं। चौपड़ा जी के पास "पशु पक्षी विभाग" के एक अधिकारी का एक नोटिस आया है। बस उसी पर चर्चा की जानी है"।
हम चौंके। "नोटिस ! कैसा नोटिस ? " क्या लिखा है उस नोटिस में" ?
"लिखा है कि उनके किसी पड़ोसी ने शिकायत दर्ज कराई है कि वे कुत्तों को परेशान करते हैं। नोटिस का जवाब स्वयं उपस्थित होकर दें नहीं तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। इस नोटिस से वे घबरा गये हैं। इस पर विचार करने के लिए ही यह सब कवायद करनी पड़ रही है"।
कितनी उन्नति कर ली है इस देश ने। आदमी चाहे भूखा मर जाये मगर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती है। रोजाना अनेक बच्चियों के साथ दुष्कर्म कर उन्हें मार दिया जाता है मगर कोई हो हल्ला नहीं होता है। और अगर एक कुत्ते को एक भी लठ्ठ मार दिया जाये तो नोटिस आ जाता है। वाकई बहुत तरक्की कर ली है देश ने। ऐसा ही नजारा अभी देखने को मिला जब कुछ लोगों ने सड़क पर अतिक्रमण करके अवैध बंगले बना लिए। मगर जब सरकार ने वहां पर बुलडोजर भेज दिया तो न्यायालय ने स्टे दे दिया। अरे भाई, जब लोग एक सवा साल से न्यायालय की नाक के नीचे आम सड़क पर रास्ता रोक कर बैठे रहे और तांडव कर रहे थे तब इस न्यायालय को नागरिक अधिकारों की चिंता नहीं हुई ? तब उन अराजक लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जबकि इसी अदालत का फरमान है कि सड॔क को जाम नहीं किया जा सकता है। मगर यहां दंगाई, अपराधियों, आतंकवादियों के अधिकारों की इतनी चिंता हो गई कि कोर्ट को स्टे देने में एक मिनट भी नहीं लगा। वाह रे न्याय व्यवस्था !
ठीक आठ बजे मीटिंग आरंभ हो गई। कुछ लोग इतने गंभीर लग रहे थे जैसे वे "तीये की बैठक" में आये हों। हमने कहा "अभी तो वह कुत्ता मरा भी नहीं है। फिर अभी से शोक क्यों मना रहे हो ? जब वह मर जाये तो खूब शोक मना लेना। अभी तो मस्ती से मीटिंग करो"।
शर्मा जी चिंतित होकर बोले। नहीं गोयल साहब "समस्या बहुत गंभीर है। एक तो सारे आवारा कुत्ते रात के ठीक बारह बजे घर के सामने इकठ्ठे होकर रोज "कुकरहाव" करते हैं। हमारी तो सारी नींद बर्बाद हो जाती है। उस पर वो शुक्ला जी की श्रीमती जी रोज इनको रोटी डालती हैं। देखा नहीं आपने, कैसे सांड बन गए हैं ये। राह चलते आदमी को काट लेते हैं। कल ही चौधरी जी के पोते को काट लिया था एक कुत्ते ने। जब चौधराइन मिसेज शुक्ला के घर उलाहना देने गई तो उन्होंने साफ साफ कह दिया कि अगर कुत्तों पर कोई कार्रवाई की गई तो उनसे बुरा कोई नहीं होगा। बेचारी, इतना सा मुंह लेकर आ गई । अब आप ही बताइए कि क्या किया जाये "
लोगों के लटके हुए चेहरे देखकर लगा कि समस्या बहुत गंभीर है। हमने एक सलाह दी कि एक बार मिसेज शुक्ला को भी बुला लो इस मीटिंग में। उनका पक्ष भी सुन लिया जाये"। बात सबको जम गई और मिसेजशुक्ला को बुलवा लिया गया।
जब उनसे पूछा गया कि वे कुत्तों को रोटी क्यों खिलाती हैं तो वे बोलीं " मुझे एक ज्योतिषी ने कहा था कि रोज काले कुत्ते को रोटियां खिलाओ। इससे कोई अला बला नहीं आएगी। तो उस दिन से मैं रोज रोटी खिला रही हूं और आगे भी ऐसे ही खिलाती रहूंगी। है कोई माई का लाल जो मुझे रोककर दिखाए " ? उन्होंने चैलेंज देते हुए कहा।
सबकी हवाइयां उड़ने लगीं मिसेज शुक्ला से पंगा लेने की कूवत किसी में नहीं थी। वहां कोई माई का लाल नहीं बल्कि "जोरू के गुलाम थे, इसीलिए कोई कुछ नहीं बोला। दस कुत्तों की आवाज से तेज स्वर में चिल्लाती हैं मिसेज शुक्ला। इतनी ऊंची आवाज और किसी की थी ही नहीं। बेचारे शुक्ला जी। दिनभर घर में शायद हेल्मट लगा कर रहते होंगे। तभी अब तक बचे हुए हैं नहीं तो कब के बहरे हो गए होते।
मीटिंग में दो घंटे तक मंथन होता रहा भगर नतीजा कुछ नहीं निकला । "कुत्तों" के आगे इंसान कितना बेबस है, आज साक्षात देख भी लिया था। हम भी "कुत्तों की महानता" जानकर धन्य हो गए।
