इण्डियन फ़िल्म्स 3.5
इण्डियन फ़िल्म्स 3.5
मुझे कुछ कहना है!
मेरा जन्म मशहूर हीरो-सिटी स्मोलेन्स्क में सन् 1978 में हुआ और मैं वहाँ सितम्बर 1985 तक रहा। स्मोलेन्स्क में करीब-करीब मेरे सारे रिश्तेदार रहते थे, ममा की तरफ़ से और पापा की तरफ़ के भी।
चूँकि मेरे मम्मा-पापा काम करते थे (पापा फ़ौज में, और मम्मा रेडिओ स्टेशन पर), और मैं नर्सरी स्कूल में जाता था, जहाँ मैं अक्सर बीमार हो जाता था, इसलिए लम्बे समय तक मैं अपने नानू-नानी के पास ही रहा। इसीलिए मेरे इस लघु उपन्यास में नानी की, परनानी की, और नानू की कहानी आई है। और व्लादिक – मेरा मौसेरा भाई है – मम्मा की बहन, स्वेता आण्टी का बेटा। उनका परिवार भी स्मोलेन्स्क में रहता था। और वैसे, मेरी कहानियों के बाकी पात्र भी वास्तविक हैं – वे या तो उस समय हमारे कम्पाऊण्ड में रहा करते थे, या मेरे रिश्तेदारों के दोस्त थे। मैंने कोई भी काल्पनिक चीज़ नहीं लिखी है।
स्मोलेन्स्क उन दिनों एक ख़ामोश, हरियाली से लबालब शहर था, जिसमें, बुढ़ापे के कारण चरमराती हुई ट्रामगाड़ियाँ घिसटती थीं। सामूहिक फार्म के बाज़ार में हमारे मनपसंद बीज, तरबूज़ और चेरीज़ बिकते थे और शहर के सिनेमाघरों में अलग-अलग तरह की, नई और पुरानी इण्डियन फिल्में दिखाई जाती थीं।।।
आज जब उस समय को मैं याद करता हूँ, तो वो मुझे जन्नत के समान लगता है, जिसे, मैं सोचता हूँ, कि कभी नहीं भूल पाऊँगा। हमारे मॉस्को आने के बाद भी, करीब सन् 1994 तक मैंने अपनी सारी छुट्टियाँ और पूरी गर्मियाँ स्मोलेन्स्क में ही बिताईं, इस जन्नत के एहसास को लम्बा करने की कोशिश में, क्योंकि वहीं मेरी असली ज़िंदगी थी। किसी और शहर और देश ने मुझे कभी आकर्षित नहीं किय, जैसे मैं कोई, इस लब्ज़ का इस्तेमाल करने से मैं डरूँगा नहीं, वहीं पर सीमित होकर रह गया था। सन् 1998 में मेरे नानू गुज़र गए ( वो ही‘इण्डियन फिल्म्स’ वाले लघु उपन्यास के पर्तोस), और जन्नत का एहसास लुप्त हो गया। मैं स्मोलेन्स्क जाता रहा, मगर ये अलग ही तरह की यात्रा होती थी।
सन् 2005 में मैंने मॉस्को स्टेट युनिवर्सिटी से जर्नलिज़्म का कोर्स पूरा किया, पहले एक प्रकाशन गृह में काम किया, फिर रेडिओ पे, मगर साथ ही मेरी ज़िंदगी में लेखकों के लिए सेमिनार्स भी होते रह, मेरी अपनी रचनाएँ छपती रहीं, अपनी कहानियों और गीतों को भी तरह-तरह की पब्लिक के सामने प्रस्तुत करता रहा – (वैसे तो मैंने बचपन से ही लिखना शुरू कर दिया था, मगर बात एकदम बनी नहीं)। मेरे लिए ख़ास तौर से मुश्किल था लेखिका मरीना मस्क्विना से, कवियत्री एवम् अनुवादक मरीना बरदीत्स्काया से, कवियत्री तात्याना कुज़ोव्लेवाया स, आलोचक इरीना अर्ज़ामास्त्सेवाया से, कवियत्री और नाटककार एलेना इसायेवा से, और बेशक एडवर्ड निकोलायेविच उस्पेन्स्की से ‘बातचीत’ करना)। एडवर्ड उस्पेनस्की द्वारा मेरी रचनाओं की तारीफ़ किए जाने के बाद मुझे विश्वास हुआ कि मैं लेखक हूँ। मैं इरीना युरेव्ना कवाल्योवा को, जो लीप्की में आयोजित नौजवान लेखकों के मंच के संयोजकों में से एक हैं, जिसमें मैंने सन् 2004 में भाग लिया था, उनके विशेष प्यार भरे बर्ताव के लिए और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ।
मैंने ख़ास तौर से बच्चों के लिए लिखने की कोशिश नहीं की – बस, जो जी में आया, लिखता रहा, बल्कि बड़ों के ही लिए लिखता रहा। मग, इसके बावजूद, मुझे बच्चों का लेखक समझने लगे। ठीक है, मैं विरोध नहीं करता।
तहे दिल से उन सबका शुक्रिया अदा करता हूँ, जो इस किताब को पढेंगे। और उन्हें, जिनको ये पसंद आएगी, ख़ुशी से अपना दोस्त समझूँगा।
हमेशा आपका
सिर्गेइ पिरिल्यायेव।