इण्डियन फ़िल्म्स 1.8

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मैं 'हीलर' कैसे बना...


जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ता थ, तो टी।वी। पर करीब-करीब हर रोज़ हर तरह के मैजिशियन्स,जादूगर और परामनोवैज्ञानिक (हीलर्स) दिखाए जाते थे। वे सारी बीमारियाँ ठीक कर सकते थे। सिर्फ हाथों को हिलाएँगे या शब्दों में हिदायतें देंगे, और आपका हर मर्ज़ फ़ौरन रफ़ू चक्कर हो जाएगा। अगर आपको उन पर भरोसा न हो तो भी। ख़ास कर दो हीलर्स को अक्सर दिखाया जाता था – कश्पीरोव्स्की को और चुमाक को। चुमाक सफ़ेद बालों वाला था और उसका प्रोग्राम सुबह के समय होता था, वो सिर्फ हवा में हाथों को हिलाया करता ( क्रीम ‘चार्ज’ करता, पानी – मतलब जो भी टी।वी। के पास रखो, वो ‘चार्ज’ कर देता), और कश्पीरोव्स्की शाम को ‘हील’ किया करता, उसके बाल काले थे और वो मौखिक हिदायतें दिया करता।

मैंने उन्हें देखा, देखा और सोचा: मैं उनके जैसा अति-संवेदी क्यों नहीं हूँ ? वो भी तो कभी स्कूल में ही पढ़ते थे और अपनी आश्चर्यजनक योग्यताओं के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। हमारे स्कूल में हर शुक्रवार को क्लास-एक्टिविटी’ होती थी। मैंने फ़ैसला कर लिया कि इस शुक्रवार को मैं ‘शो’ करूँगा। इसी बहाने माशा मलोतिलोवा भी जान जाएगी कि मैं कोई ऐसा-वैसा लड़का नहीं हूँ,बल्कि असली ‘हीलर’ हूँ। माशा मलोतिलोवा हमारी क्लास की सबसे अच्छी लड़की हैै, मगर, फ़िलहाल,इस बारे में कुछ नहीं बताऊँगा।

मैं अपनी क्लास-टीचर ल्युदमिला मिखाइलोव्ना के पास गया और कहा कि ऐसी-ऐसी बात है, क्या शुक्रवार को एक्टिविटी-टाइम में हीलिंग शो कर सकता हूँ ? पहले तो वो हँसी, फिर पूछने लगी कि क्या ये ‘हीलिंग’ का गुण मुझमें काफ़ी पहले से है,मगर फिर उसने इजाज़त दे दी। मुझे, सही में, झूठ बोलना पड़ा कि मैं करीब छह महीने से पानी चार्ज’ करता हूँ और मैंने अपने अंकल का अल्सर ठीक कर दिया था।

गुरूवार को, जब 'शो' में एक ही दिन रह गया था, तो मैंने सोचा कि थोड़ी रिहर्सल कर लूँ। मैं कैसेट-प्लेयर के सामने बैठ गया और, ये कल्पना करते हुए, कि मेरे भीतर से स्ट्राँग-पॉज़िटिव एनर्जी निकल रही है, मैं अपने सामने हाथों को हिलाते हुए कहने लगा:

 “आँखें बंद करो,'' मैंने कहा। “आप एक बड़ा सफ़ेद कमरा देख रहे हैं, जो रोशनी से लबालब भरा है। आप कमरे में हो। आप कमरे के बीचोंबीच हो। आप एक साइड से अपने आप को देख रहे हो, आप जैसे काँच के बने हो। सफ़ेद, भारहीन प्रकाश आपके शरीर को गर्माहट से भर रहा है। हल्की-हल्की हवा चल रही है। शरीर के उन भागों में, जहाँ भारीपन है, ज़्यादा-ज़्यादा प्रकाश एकत्रित हो रहा है और भारीपन ग़ायब हो रहा है। आप अच्छा महसूस कर रहे हैं। गर्माहट महसूस कर रहे हैं।” 

मैंने हाथों को कुछ और तनाव दिया, उन्हें झटका और अपना कहना जारी रखा:

“हवा कमज़ोर पड़ रही है। आप उसे मुश्किल से महसूस कर रहे हैं। आप इस स्थिति में जितना संभव हो, उतनी ज़्यादा देर तक रहना चाहते हैं। मगर प्रकाश बिखरने लगता है। वह लुप्त हो जाता है, अपने साथ आपकी सारी तकलीफ़ें ले जाता है। आपका शरीर शांत है और स्वच्छ है।।।”       

मैं करीब आधे घण्टे तक बोलता रहा, जब तक कि दरवाज़े की घण्टी नहीं बजी। पड़ोस वाला मक्सिम मुझे घूमने के लिए बुलाने आया था। मैंने कहा कि इस समय मैं नहीं आऊँगा, मैं उसे खींचकर अपने कमरे में ले आया, मैंने उसे समझाया कि बात क्या है, और उसके सामने 'शो' वाला टेप-रेकॉर्डर रख दिया।

मक्सिम ने आज्ञाकारी बच्चे की तरह आँख़ें बंद कर लीं,बिना हिले पूरी कैसेट सुनी और बोला:

“व्वा, तू तो कश्-पी-र है! बल्कि उससे भी ज़्यादा स्मार्ट है! सुप्पर! पता ह, जब मैं तेरे यहाँ आया, तब मेरे सिर में दर्द हो रहा था, मगर अब – जैसे हाथ फेर कर दर्द निकाल लिया हो!”

मैंने सोचा, चलो, सब ठीक है, मतलब, कल सब अच्छा हो जाएगा।

शुक्रवार को सभी क्लासेज़ के दौरान मैं बस एक्टिविटी-टाइम के बारे में ही सोचता रहा। मेरे क्लासमेट्स ने पहली ही क्लास के पहले पानी से भरे डिब्बे और क्रीम की ट्यूब्स दिखाईं, जिन्हें 'चार्ज' करना था, और हालाँकि कल की रिहर्सल बढ़िया ही हुई थी, मगर मैं बेहद परेशान था। जब एक्टिविटी-टाइम शुरू हुआ और ल्युदमिला मिखाइलोव्ना ने टीचर वाली मेज़ के पीछे की जगह मुझे दे दी,तो उन डिब्बों और ट्यूब्स के पीछे से मैं करीब-करीब दिखाई ही नहीं दे रहा था और मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि जैसे पागल हो गया हो।

 “आँखें बंद करो,'' मैंने कहना शुरू किया। “एक सफ़ेद बड़ा कमरा , आप उसके भीतर हो। आप, जैसे काँच के बने हो। प्लीज़, गंभीरता बनाए रखें।।।”

सबसे पहले तो कोई आँख़ें बंद ही नहीं करना चाहता थ, और दूसरे, चाहे मैं कितनी ही शिद्दत से समझा रहा था, कि उनकी हँसी से मेरी एनर्जी के प्रवाह में बाधा पड़ रही है,सब लगातार हँस ही रहे थे और चिढ़ा रहे थे। शुरू में तो ऐसे हालात में मैं'शो' करता रहा। अगर सिर्योझा बोन्दारेव ने गड़बड़ न की होतीतो सब कुछ ठीक-ठाक हो गया होता, मगर जब मैंने कहा कि 'आपका शरीर शांत और स्वच्छ है, बीमारियाँ काले पदार्थ के रूप में उसे हमेशा के लिए छोड़कर जा रही है', तो सिर्योझा, जो आमतौर से एक शांत बच्चा है, इतनी ज़ोर से ठहाके लगाने लगा कि पूरा स्कूल बस गिरते-गिरते बचा। और सबने उसका साथ दिया। इतनी ज़ोर से ठहाके लगाने लगे कि खिड़कियों के शीशे झनझनाने लगे। जैसे वे पहले सोच ही नहीं सके कि दुनिया में मेरे 'शो' से बड़ी मज़ाकिया चीज़ कोई और हो सकती है। ल्युदमिला मिखाइलोव्ना क्लास के दरवाज़े में खड़ी होकर प्यार से मेरी तरफ़ देख रही थी, आख़िर में तो मैं ख़ुद भी हँसने लगा, मगर फिर मैंने घोषणा की कि चाहे कुछ भी हुआ हो, क्रीम्स और पानी 'चार्ज' हो गए हैं।

मतलब, मुझे मालूम नहीं है कि मैं अति-संवेदी हूँ या नहीं। मेरा 'शो' चाहे फ्लॉप हो गया हो, मगर सोमवार को माशा मलोतिलोवा ने भी कहा, कि अब उसकी तबियत पहले से बेहतर है।


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