इंग्लिश ना आता तो कोई बात नही

इंग्लिश ना आता तो कोई बात नही

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वैसे तो कभी "स्पोकन इंग्लिश" की कोई क्लास की नही, इंग्लिश मुझे जितनी आती है, जिन्हें थोड़ा ज्यादा आती है उनकी नज़र मुझे घंटा आता है और जिन्हें मुझसे भी कम आता है उनके लिए तो शेक्सपियर हूँ मैं, खैर... बात ये है की एक दो बार जब स्पोकन इंग्लिश की "डेमो" क्लासेज में गया था, वहां एक कॉमन सवाल होता था, "टेल मी अबाउट योरसेल्फ" सच बताऊँ तो इस सवाल का जवाब मुझे हिंदी में भी पूछे कोई तो उसी कमरे के छत पर ही तारे दिखने लगते हैं। फिर भी जैसे-तैसे निपटा तो देते ही थे; तब भी अब भी। एक बात जो समझ मुझे देर से आई,  की आप, मैं या कोई भी इंग्लिश में तब ही "धड़ाधड़" बोल सकता है जब हम हिंदी में उससे दस गुना बोल सकें, बोलने के लिए जरूरी है पढ़ना, कुछ भी पढ़ो; पर पढ़ो। सरस सलिल, चंपक, चंदामामा जो मिले पढ़ डालो। रही बात उच्चारण में शुद्धता की... तो भाई जब से मुंह खोला है बोल तो हिन्दी ही रहे हो, कसम से 10 में 12 लोग तो हिंदी शब्दों के उच्चारण सही से नही करते, कहाँ इंग्लिश पे सर पटक रहे हो। मेरी मानो तो इंग्लिश बस एक भाषा मात्र है वैसे ही जैसे स्पैनिश है, फ्रेंच है, चाइनीज़, बांग्ला, पंजाबी, तमिल-तेलगु है। पता है ऊपर लिखी इन सात भाषा में से 4 दुनिया की शीर्ष(Top) 10 भाषा में है। जैसे इन में से कई आपको नही आती वैसे ही नंबर 3 ज्यादा बोली जाने वाली इंग्लिश भी नही आती या कम आती है। मारो गोली इंग्लिश की कनपटी में सटा के, और हर साल ताली बजाओ इस पर की अमेरिका के इंग्लिश उच्चारण प्रतियोगिता में भारतीय ही जीतते है। बाकि सब ठीक है...


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