Jagruti Pandya

Inspirational

3.8  

Jagruti Pandya

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इलाजी का पुतला ( सत्य घटना)

इलाजी का पुतला ( सत्य घटना)

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आज में आप सबको एक क्रांतिवीर की बात बताने जा रही हूँ। जिन्होनें हमारे देश की स्वंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया था।जब हमारा देश आजाद नही था,जब हम अंग्रजों की गुलामी में पिसे जा रहे थे। तब अंग्रेज ही हमारे राजा और अन्ग्रेज ही हमारें कानुन।अन्ग्रेजो के मनघडत कानूनों को हमें जेलना पडता था। एसे ही एक अंग्रेज अफसर जॉन टॉक था। साबरकांठा जिल्ले के ईशानकोण में मेघरज नामक एक गाँव था,आज भी मेघरज नामक गाँव अरवल्ली जिले में है। मेघरज में अंग्रेज अफसर ने जॉन टॉक को वहाँ का कलेक्टर नियुक्त किया गया था। जॉन टॉक भी बडा जुल्मी था। मेघरज गाव के आसपास 200-300 छोटे-बडे गाँव हैं। गाँवोंमें आदिवासी लोग, उनका प्रमुख त्यौहार होली था।आजभी होली है।पुरे सप्ताह वो लोग होली का त्यौहार मनाते थे। आजभी मनाते हैं। 

उस वक्त ये जॉन टॉक क्या करता था। जब होली का त्योहार आये,उसके दो तीन दिन पहले एक पुतला बनाता था। वो पुतला एक नंगे पुरुष का होता था।पुरे सप्ताह होली मनाने के बाद,जब होली का दिन आये तब सभी लोगों को मेघरज गांव में इकठ्ठे होना पडता था। जहा,जॉन टॉक ये नंगे पुरुष 'इलाजी का पुतला ' रखता था। करीबन 5000 लोग इकठ्ठे होते थे। और ये नंगे पुरुष की प्रतिमा के आसपास घुमना पडता था। छोटे,बडे- बुजुर्गों,लड़कियाँ,स्त्रियाँ,, सभीको घूमना पडता था। स्त्रियाँ बडी लज्जित होकर,अपने बुजुर्गों और बच्चों के सामने,न चाहने पर भी उस नंगे पुरुष की प्रतिमा की पृदक्षिना करती थी।करनी पड़ती थीं। हरसाल एसा होता था। हरसाल मेघरज गांव में आस-पास के लोगों को इकट्ठे होकर इलाजी के पुतले की पृदक्षिना करते थे। 

एकबार एसे ही होली का त्यौहार आया। गावँ के लोगों ने बडी धामधूम से पुरा सप्ताह होली का त्यौहार मनाया। होली का दिन आया। सारे लोग मेघरज गाँव में एक बडे मेदान में, जहाँ वो पुतला रखा हुआ था,वहाँ इकठ्ठे हुए। लोग अपने अपने ढोल नगारें लेकर,नये नये कपडे पहनकर गीतों गा रहे थे। सारे लोग इकठ्ठे होने के बाद,नंगे पुरुष की प्रतिमा के आस-पास घूमना था। जब लोग नजदीक गये तो देखा,ये क्या? ये पुतला तो तुटा हुआ है! किसने तोड़ा? सभी लोग आस्चर्य हो गए। 

जॉन टॉक! वो तो गुस्से से लाल पिला हो गया था। इलाजी का पुतला टूटना जॉन टॉक का बडा अपमान था। 

ये पुतला मेघरज गाँव के युवक पूनमचंद ने तोड़ा था।  

जी हाँ , पूनमचंद पंड्या ने!  

पूनमचंद ने होली की अगली रात को अपने मित्रों की सहायता से ते पुतला तोड दिया था। उसके बाद वो भाग गए थे। जी हाँ, वो एक गंदा कानुन - मनघडत कानून को तोडकर भागे थे। वो डर से नहीं भागे थे! उस गंदे कानून में असहकार के लिये कानून तोडकर भागे थे। बीच रास्ते आनेवाले सभी तार के खंभे को तोडकर उन्होनें पासवाले कुवे में फेककर आगे बढते गए । जॉन टॉक ने गुनगार को ढूँढने के लिए पुलिस की गाडियाँ भेजी थी। एक दिशा में तार के खंभे तूटे हुए देखकर पुलिस उसके इशारे इशारे आगे निकली। पूनमचंद पुलिस के हाथो से बच नहीं पाए। पुलिसने पूनमचंद को पकड लिया। छ मास की जेल हुई। 


क्या गुनाह था? पूनमचंद का!पूनमचंद ने वो नंगे पुरुष इलाजी की प्रतिमा को तोड़ा। उस गंदे कानुन को तोड़ा। 

ये गुनाह !!!!  पूनमचंद का? 


जिस कानून के पीछे कोई धर्म नहीं था, कोई शस्त्रों में ये नहीं लिखा था, उसके पीछे कोई वैज्ञानिक सिद्धांत भी नही था और कोई समाजिक रीति रिवाज भी नही था। एसा कानून तोडने की ये सजा! 

पूनमचंद को छ मास की जेल हुई।जेल से बाहर आकर वो फिरसे अपनी क्रांतीकारी प्रवृत्तियाँ में जुड न जाए,इस लिये जॉन ने पूनमचंद के खाने में हररोज सीमन्ट डालकर खाना देने के लिए बोला था। पूनमचंद को हररोज सीमन्ट वाला खाना खाकर उनकी आन्ते बडी कमजोर हो गई। धीरे धीरे उसके पेट में दर्द होने लगा था। एकदिन ज्यादा दर्द होने की वजह से पूनमचंद की जेल में ही मोत हो गई थी।

जी हाँ, दोस्तो पूनमचंद की जेल में ही मोत हो गई थी।आज एसे ही कई शहीद वीरों की वजह से आज हम आजाद है। एसे सभी शहीदों को आज सलाम।🙏👌


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