Harish Jaiswal

Tragedy

5.0  

Harish Jaiswal

Tragedy

इच्छामृत्यु- ए मेडिकल मर्डर

इच्छामृत्यु- ए मेडिकल मर्डर

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"बधाई हो यज्ञ जी। आपकी पत्नी ने लड़की को जन्म दिया है। "प्रसूति गृह से निकलते हुए डॉक्टर प्रभा ने यज्ञ से कहा।

"धन्यवाद मैडम। दोनों स्वस्थ तो है ना?"यज्ञ ने उत्सुकता से पूछा।

"यस,बोथ आर आल राईट। "कहते हुए डॉक्टर प्रभा आगे बढ़ गई।

"कलमुंही,कुतिया को बधाई देते हुए शर्म नहीं आती। तीसरी लड़की के जनम पे भी हंस हंस के बधाई दे रही हैं। "यज्ञ की सासू माँ बड़बड़ाते हुए बोली।।

"देखिये मांजी मैं तो तीसरी बार रिस्क लेने के चक्कर में ही नहीं था। परन्तु आपके और शिखा के दबाव डालने की वजह से ही मैंने यह कदम उठाया हैं। अब आ ही गई है तो इसे भी लक्ष्मी का रुप मान कर स्वीकार कर लीजिये। वैसे भी आज के जमाने में लड़के व लड़की में कोई अंतर नहीं है। "यज्ञ ने कहा।

"अंतर क्यों नहीं होता है ? लड़का अपना होता है वक्त जरुरत पड़ने पर ताकत बन कर खड़ा रहता है। दामाद कोई अपना खून थोड़े ही होता है। उसे अपनी पीर कैसे बताओगे ?"सासू माँ पूर्ववत बड़बड़ाती रहीं।

"मैं भी आपका दामाद हूं। आप अपनी पीर मुझसे कह रहीं हैं कि नहीं ?" यज्ञ ने जवाब दिया।

ऊषा और संध्या के बाद तीसरी भी लड़की होने पर शिखा भी उदास थी। लेकिन यज्ञ ने उसे यह कह कर समझा दिया की हर लड़की अपनी किस्मत खुद लाती है अतः हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

हुआ भी ऐसा ही। निशा के जन्म के बाद यज्ञ का कारोबार उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। अगले तीन सालों में ही परचून की दुकान कब मसालों की फ़ैक्ट्री में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला। निशा के अठ्ठारह बरस की होने तक इन फैक्टरियों की संख्या तीन हो गई।

बढ़ते कामकाज के मद्देनज़र यज्ञ ने हाथ बटाने के लिये शिखा को भी अपने साथ ले लिया। अब शिखा एकाउंट्स का काफी काम खुद समझ कर करने भी लगी थी।

"अब ऊषा बाईस,संध्या बीस की हो चुकीहैं। क्या इनकी शादी नहीं करना हैं। ?"एक दिन शिखा ने यज्ञ से पूछ ही लिया।

"मेरा विचार तीनों की शादी एक साथ करने का है ताकि तीनों दामादों को समान रुप से ट्रेनिंग दी जा सके। आखिर में यह बिजनेस उन्हीं लोगों को तो संभालना है। "यज्ञ ने अपने मन की बात शिखा को बताई।

दो साल की दौड़ धूप के बाद आखिरकार यज्ञ को तीन ऐसे लड़के मिल ही गये जो यज्ञ और उसके परिवार के साथ रह कर बिजनेस को आगे बढ़ाने को तैयार थे।

सबसे बड़ी लड़की ऊषा का रिश्ता श्याम नाम के लड़के से तय किया गया। श्याम के माता पिता बचपन में ही गुजर गये थे। वह अपने बुआ चाचा ,मामा मौसी के आसरे पल कर बड़ा हुआ था। अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिये उसने कई जगह छोटे मोटे काम भी किये थे। अब वह एम कॉम तक पढ़ चुका था तथा किसी बिजनेस फर्म में एकाउंट्स डिपार्टमेंट में ट्रेनिंग ले रहा था।

मझली लड़की संध्या के लिये आलोक नाम के लड़के का चयन किया गया था। आलोक का परिवार निम्न मध्यम वर्गीय परिवार था। इस परिवार में आलोक के माता पिता के अलावा तीन और भाइयों के सहित कुल छह सदस्य थे। अतः उन्हें या उसके किसी भी भाई को आलोक के घर जमाई बनने में कोई आपत्ति नहीं थी। वैसे आलोक एम बी ए तक पढ़ा था तथा नौकरी की तलाश कर रहा था।

सबसे छोटी निशा के लिए रजत का चुनाव किया गया था। रजत किसी दूसरे प्रदेश का रहने वाला था। यह प्रदेश आर्थिक रुप से देश के अत्यंत पिछड़े प्रदेशों में आता हैं। बी ए तक पढ़ने के पश्च्यात रजत एक कारखाने में ऑफिस असिस्टेंट की नौकरी कर रहा था। रजत के घर वाले भी खुश थे कि उसे एक स्थाई ठौर ठिकाना मिल गया।

विवाह के पश्च्यात यज्ञ ने अपनी योजना के अनुसार तीनों ही दामादों को मोटे वेतन पर अपनी कंपनी में उच्च पदों पर नियुक्त कर दिया। लेकिन यज्ञ ने अभी भी सारे वित्तीय अधिकार शिखा के ही पास रखे। यज्ञ तीनों दामादों को अलग अलग ट्रेनिंग देने लगे।

बरसों विभिन्न मानसिकताओं वाले वर्करों के बीच काम करते हुए यज्ञ को व्यक्ति की मानसिकता पढ़ना अच्छे से आ गया था। वह यह समझ चुके थे कि उनके तीनों दामाद लोभी है तथा पैसों की खातिर ही उन्होंने शादियां की हैं।

बड़ा दामाद श्याम अपने रिश्तेदारों के दम पर पला बड़ा हुआ। रिश्तेदारों द्वारा पर्याप्त ध्यान ना दिये जाने के कारण वह छोटे मोटे काम करते करते ज्यादा पैसा कमाने के लालच में सट्टे जुएं की लत का शिकार हो चुका था। तनखा के रुप में मिलने वाले ज्यादातर पैसे वह इन्हीं में उड़ाता था।

आलोक के माता पिता के पास ज्यादा संपत्ति थी नहीं और जो भी थी उसमें आलोक को हिस्सा मिलना मुश्किल था। इसी कारण उसका सारा जोर इस पर रहता था कि बढ़ती उम्र को देखते हुए शिखा को हटा कर सारे वित्तीय अधिकार उसे दे दिये जायं। सीधे सीधे तौर पर वह कंपनी का पैसा खुद के उपयोग में लाना चाहता था।

रजत अपने प्रदेश को छोड़ कर दूसरे प्रदेश में आने का सबसे कारण ही उस पर दर्ज कई अपराधिक प्रकरणों का होना हैं। उस पर मारपीट के कई मामले दर्ज हैं तथा इसी कारण वह पुलिस से परेशान हो कर ही इस जगह आया है। शराब व अफ़ीम के नशे की आदत भी उसको है।

यह सब सूचनाएं यज्ञ के लिये किसी आघात से कम नहीं थी। उसे अब अपनी सासू माँ की सीख याद आ रही थी। शिखा को यह सब बातें बता कर वह उसे दुखी करना नहीं चाहता था। सच था वह अपनी पीर किसी से बाँट भी नहीं सकता था। यह आघात यज्ञ के लिये जान लेवा साबित हुआ। डेढ़ साल के भीतर ही गंभीर दिल के दौरे से उसकी मौत हो गई।

यज्ञ के जाने के तीन महिने बाद ही शिखा को समझ में आने लगा था कि कहीं ना कहीं खर्चों में बढ़ोत्री हो गई हैं। अतः शिखा ने कड़ा रुख अपनाते हुए साईन करने से पहले पेपर चेक करना और कारण पूछना प्रारम्भ कर दिया। तीनों ही दामादों को यह बात अखरने लगी और कहीं ना कहीं इस बात को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न भी बना लिया। यद्यपि तीनों ही लड़कियां अपनी माँ का ही पक्ष लेती किन्तु उनका व्यावसायिक ज्ञान शून्य होने के कारण उन्हें चुप रहना पड़ता।

"अरे,श्याम भाई यह तो हद हो गई थाली सामने है और हम उस में से निवाला भी नहीं तोड़ सकते। "रजत श्याम से कह रहा था।

"हाँ,भई इस बुढ़िया ने तो हमें पैसों पैसों के लिये मोहताज कर दिया। भिखारी बना दिया साली ने। "श्याम भी दांत भीचते हुए बोला।

"आखिर ऐसा कब तक चलेगा ? अंत में पैसा तो हमारा ही है ना। "रजत भी नथुने फुलाते हुए बोला।

"हमारे ही पैसे हमें भीख के रुप में मिल रहे हैं। इससे बड़ा अपमान और क्या होगा। "श्याम अब तक तमतमा चुका था।

"भाई आप लोगों की बात मैंने सुन ली है। अपना पैसा पाने के लिये हमें ही कुछ करना पड़ेगा। "कमरे में प्रवेश करते हुए आलोक बोला।

"क्या ? तुम भी ?" रजत आश्चर्य से आलोक की तरफ देखते हुए बोला। "हम तो समझ रहे थे सिर्फ हम ही परेशान है उस खूंसट बुढ़िया से।

"जिस तरह न्याय के बारे में एक अंग्रेजी कहावत है जस्टिस डिलेड मीन्स जस्टिस डिनाइड। उसी तरह हम पैसों के बारे में भी कह सकते है कि मनी डिलेड मीन्स मनी वेस्टेड। अरे, पैसों की जरुरत हमें अभी है। अभी हमारे शौक मौज करने के दिन है। यदि यह बुढ़िया बीस साल जिन्दा रह गई तो हमारी तो उम्र ही निकल जायगी ऐश करने की। बीस साल बाद पैसा ले कर क्या हम तीर्थ यात्रा पर जाएंगे ?"आलोक ने बाकी दोनों से प्रश्न किया।

"बात तो तुम्हारी ठीक है। पर हम क्या करें। "श्याम ने उत्सुकता से पूछा।

"दो ही उपाय हैं। या तो हम अपना रास्ता बदल दे या रास्ते में आई बाधा को हमेशा हमेशा के लिये हटा दे। " आलोक ने समस्या का हल बताया।

"मतलब बुढ़िया को खत्म कर दे। "रजत ने पूछा।

"ऐसा ही करना पड़ेगा। क्योंकि हम दोनों तो मार्किट से इतना कर्जा ले चुके है कि यदि जल्दी नहीं लौटाया तो हमारी खैर नहीं। "श्याम रजत की तरफ देख कर बोला।

"लेकिन मारेंगे कैसे?यदि पुलिस को जरा भी भनक लग गई तो जिंदगी भर बारह ताडियों में रहना होगा। "रजत ने पूछते हुए आशंका व्यक्त की।

"हाँ। "श्याम ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा।

"मैंने एक योजना तैयार कर रखी है। फुल प्रूफ है। शिखा देवी रोजाना सुबह सूर्योदय के साथ सूर्य देवता को जल चढ़ाने के लिये तीसरी मंज़िल की छत पर जाती हैं। उस समय कोई नौकर वगैरह भी नहीं उठते है। वह छत की मुंडेर पर खड़ी हो कर नीचे जल चढ़ाती हैं। उसी समय धक्का दे कर नीचे गिराया जा सकता है। नीचे फर्शियां लगी है अतः गिरने के बाद बचने की संभावनाएं शून्य हैं। "आलोक ने अपनी योजना समझाई।

"लेकिन वह तो पूजा करने रोज जाती है। उसी दिन क्यों गिरी ? पुलिस तो यह प्रश्न पूछेगी ही ना। "रजत ने शंका व्यक्त की।

"आदरणीय माँ जी को ब्लड प्रेशर की शिकायत तो है ही। संभवतः तीन मंजिल चढ़ने के कारण उनका रक्तचाप असामान्य हो गया और चक्कर आ गये। बस इतना ही कहना है। इससे ज्यादा कुछ नहीं। "आलोक आगे की रणनीति समझाता हुआ बोला।

"हां यह ठीक है"श्याम सहमति जताते हुए बोला।

दो दिनों के बाद एक सुबह शिखा योजना के अनुसार छत से गिरा दी गई। चूंकि इतनी ऊंचाई से गिरी थी अतः जोरदार आवाज हुई। शायद इसकी कल्पना तीनों ने नहीं की थी। आवाज सुन कर आस पास के घरों से लोग सहायता के लिये दौड़े आए। अभी शिखा की सांसे चल रही थी। यद्यपि वह बेहोश थी। लोगों को इकठ्ठा देख तीनों दामाद तुरंत गाड़ी में डाल कर अस्पताल ले गये। साथ में एक दो पड़ौसी भी गए।

खून काफी बह चुका था और डॉक्टरों के अनुसार कोमा में जा चुकी थी।

"यह पांसा तो उलटा पड़ गया। "रजत चिंतित स्वर में बोला।

"अगर बऊ बच गई और बोल पड़ी तो हम तीनों को जन्म भर के लिए कृष्ण नर्सिंग होम में गूंगा बन कर पड़े रहना पड़ेगा।

"कृष्ण नर्सिंग होम ? मतलब ?" रजत ने पूछा।

"मतलब जेल। "श्याम सीधे शब्दों में बोला।

"अरे, रुको मुझे कुछ सोचने दो"आलोक बोला" मैं डॉक्टर से मिल कर आता हूँ। "

"क्या बोला डॉक्टर ?" आलोक को डॉक्टर के चैम्बर से बाहर निकलते देख कर श्याम ने उतावले पन से पूछा।

"खुशखबर है। "आलोक बोला "बुढ़िया कोमा में कितने समय रहेगी यह कह नहीं सकते। छह घंटे, छह दिन, छह हफ्ते, छह महीने, छह साल या जिंदगी भर। "

"यह क्या खुश खबर हुई ? जिन पैसों के लिये हमने यह सब कारनामा किया वह पैसे तो इस बुढ़िया के इलाज में ही खर्च हो जायेंगे। "रजत मुँह बिचका कर बोला।

"एक हफ्ते रुक जाओ कुछ ना कुछ समाधान निकाल ही लेंगे। "आलोक इत्मीनान से बोला।

"अरे,आलोक हफ्ते के बदले अब तो दस दिन हो चुके हैं। कुछ सोचा क्या ? बुढ़िया तो अभी भी कोमा में हैं। "रजत ने पूछा।

"इलाज में पैसा तो लग ही रहा है साथ ही इतने सारे लोग मिलने आ चुके हैं बुढ़िया से। यदि यह मर जाती तो घाटे नुक्ते में इतना पैसा खर्च नहीं होता जितना इन मेहमानों की तीमारदारी में खर्च हो रहा हैं। "श्याम के चेहरे से उसकी अधीरता स्पष्ट हो रही थी।

"क्यों ना हम इसका मेडिकली मर्डर करवा दे ?"आलोक ने बाकी दोनों से पूछा।

"मेडिकली मर्डर ?मतलब ?"दोनों ने चौंक कर पूछा।

"मतलब सरकार ने एक कानून के जरिये ऐसे रोगियों को मरने मेरा मतलब है मारने की अनुमति दी हैं जो की लाइलाज हैं और जो अपना खुद का जीवन जीने में असमर्थ है। इस कानून का नाम इच्छा मृत्यु है। "आलोक ने जानकारी दी।

"अरे तो फिर जल्दी उपयोग करों ना इस कानून का। कब तक इस ढ़ोल को छाती पर रख कर बजाओगे ?"श्याम रुखेपन के साथ बोला।

"नहीं इस मौत को हम यादगार बना देंगे ताकि भविष्य में भी हम पर कोई उंगली ना उठा सके। "आलोक धीरज के साथ बोला।

"यादगार ? वो कैसे ?" रजत ने पूछा।

"हम बुढ़िया के मुख्य अंगो जैसे किडनी, लीवर, हार्ट, आंखें और यहां तक की हड्डियां भी दान कर देते हैं। इससे हमें समाज में सम्मान भी मिलेगा और बुढ़िया भी मर कर अमर हो जायगी। हम पर तो किसी के शक करने का प्रश्न ही नहीं उठता। "आलोक धूर्तता से बोला।

"अरे हाँ, यह अंग तो बिक भी जाते हैं ना ? दस बीस लाख तो यहां से भी मिल सकते है ना ?" श्याम खुश होते हुए बोला।

"हमें तो हमारा करोड़ों का हिस्सा मिल ही रहा है। इसलिये इन सब का फैसला हम डॉक्टर पर ही छोड़ते हैं। वह चाहे इसे दान में दे या दाम ले कर दे। वैसे भी इसमें कई कानूनी झमेले आयेंगे। उन सब से डॉक्टर को ही निपटना होगा। उन्हें ही यह बताना होगा की अब इन पर किसी भी तरह की दवाई का असर नहीं हो रहा हैं। अतः इच्छामृत्यु देना उचित है। इसलिये इन सब अंगो पर डॉक्टर का ही अधिकार रहने दो। आखिर कुत्ता भी तभी दुम हिलाता है जब उसे हड्डी दिखाई जाती हैं। "आलोक ने सबको समझाया।

"डन"दोनों एक साथ बोले।

आज यज्ञ की तीनों फैक्ट्रियों में महान दान दाता शिखा देवी की आदमकद तस्वीरें लगाई जा रही थी।


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