Rahul Sharma

Crime Thriller

3.8  

Rahul Sharma

Crime Thriller

हत्या प्रियंका की

हत्या प्रियंका की

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मैं भोपाल में एक प्रेस में रिपोर्टर का काम करता था,रिपोर्टिंग मेरी शौक के साथ साथ पेशा भी थी, लेकिन कभी क्राइम रिपोर्टिंग करने का मौका नहीं मिला था, और यह मौका मुझे मेरे दोस्त संजीव ने दिया, जब वो सुबह- सुबह मेरे घर आया और मुझे बताया की उसकी पत्नी स्वेता की दोस्त प्रियंका का कत्ल हो गया। मैं प्रियंका के बारे में नहीं जानता था, लेकिन संजीव के डरे होने की वजह से और एक क्राइम घटना की वजह से मुझे इस केस में रूचि लेनी पड़ी। संजीव मेरा पुराना दोस्त था, हम दोनों एक साथ पढ़े थे, जहाँ मैं एक रिपोर्टर बन गया वहीँ संजीव को बैंक में नौकरी मिल गयी, दोनों एक ही शहर में होने की वजह से छुट्टियों में मिलना-जुलना हो जाय करता था। संजीव डरा हुआ था,

उसने बताया की सबसे पहले लाश उसने ही देखी थी, इसलिए उसे डर था की कहीं पुलिस उसे फसा ना दे, और वो मेरी मदद मांगने आया था, हलाकि मैं क्राइम स्टोरी नहीं कवर करता था, लेकिन मैंने अपने दोस्त की मदद करने की सोची,और घटना स्थल पर मुझे ले जाने को कहा। घटना, भोपाल से सटे एक गाँव की थी, रास्ते में संजीव ने बताया की, उसकी पत्नी ने अपने दोस्त से मिलवाने को बहुत बार कहा था, लेकिन मुझे फुर्सत ना मिलने की वजह से मैं कभी उसे मिलवाने को नहीं ले गया था,घटना वाले दिन रविवार होने की वजह से मैंने पत्नी को मिलवाने का प्लान बनाया, पहले तो स्वेता ने मना कर दिया फिर वो तैयार हो गयी, और हम दोनों साथ चल दिए,जब मैं और मेरी पत्नी उसके दोस्त प्रियंका के यहाँ पहुंचे तो उसका घर बहुत पुराना था,लेकिन बहुत ही बड़ा था, प्रियंका और उसकी बूढ़ी माँ के सिवा कोई घर में नहीं रहता था,

प्रियंका ही उसकी माँ का एक मात्र सहारा थी, लेकिन घर पहुंचने पर पाया की प्रियंका और उसकी माँ के बिच की किसी बात को ले कर नोक- झोक हुई थी, प्रियंका की आँखे नम थी, लेकिन अपनी सहेली को देख कर वो मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन नम आँखे कहानी बयाँ कर रही थी, तभी उसकी बूढ़ी माँ ने हम दोनों को बैठाया और प्रियंका को हाथ मुँह धोने को बोला, फिर उसकी माँ ने मुझे अपन लिए पास के नहर के पास पान की दुकान से एक पान लाने को बोला, साथ ही साथ स्वेता को भी साथ ले जा कर नहर दिखाने को बोला। मैंने भी स्वेता को साथ चलने को बोला, सोचा तब तक प्रियंका फ्रेश हो जायेगी। स्वेता भी तैयार हो गयी और हम दोनों नहर की तरफ बढ़ गए, हमने पान की दुकान से पान लिया और कुछ देर के बाद वापस प्रियंका के घर पहुंचा तो पाया की प्रियंका की माँ नहीं थी,

और दूसरे कमरे में प्रियंका की लाश पड़ी हुई थी, जिसे देख कर स्वेता चीख पड़ी और बेहोश हो गयी, कुछ देर के बाद प्रियंका की माँ भी आयी और अपनी बेटी की लाश देख कर वो भी सदमे में चली गयी, मैंने ही पुलिस को बुलाया और पुलिस के आने के बाद पुलिस ने मुझसे पूछ- ताछ शुरू कर दी, हत्या की ना ही वजह मालुम पड़ रही थी और किसने हत्या की यह भी पता नहीं चल पा रहा था, माँ पड़ोस में गयी थी, ये बात पड़ोसियों ने बताया, लेकिन आखिर किसने उसकी हत्या की ये बात समझ नहीं आ रही थी, संजीव ने प्रियंका की फोटो दिखाई, प्रियंका बहुत ही खूबसूरत थी,उसकी खूबसूरती देखने लायक थी। मैं भी प्रियनका के घर पहुँच चूका था और जिस कमरे में उसकी हत्या हुई थी, उस कमरे की जांच शुरू कर दिया था,कुछ भी सबूत नहीं मिल रहा था, सब कुछ वैसा ही था, जैसा नार्मल होना चाहिए था,फिर मैंने काफी गौर से कमरा का पूरा मुयाना करने के बाद मैंने पाया की मेज की बगल में किसी के एक पैर का निशान है,

जो काफी धुंधली हो चुकी थी, लेकिन यह मेरे लिए सबूत था, मैंने गौर से देखा तो पाया वह किसी के दाहिने पैर की निशान है, लेकिन किसके ये साफ़ नजर नहीं आ रहा था क्योंकि निशान काफी धुंधला था, लेकिन ये मेरे लिए सबूत का काम कर सकता था, इसके अलावे मुझे कुछ नजर नहीं आया।फिर मैं संजीव के साथ पुलिस स्टेशन गया और इंस्पेक्टर से बात की इंस्पेक्टर ने बताया की अभी तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है, उसने बताया की मेरा दोस्त संजीव और उसकी पत्नी स्वेता शक के घेरे में हैं, जिसे सुन कर संजीव डर गया और उसने मुझे पूछा मैं बच तो जाऊँगा ना ? जिसे सुन कर मैं संजीव के की तरफ देखने लगा और बोला, जब तुमने कुछ किया ही नहीं फिर डर क्यों रहे हो, इस पर संजीव ने कहा की पुलिस वाले जबरदस्ती फसा देते हैं।मैंने शांत होने को कहा और इंस्पेक्टर से पूछा, प्रियंका की मौत कैसे हुई ?

इस पर पुलिस ने बताया की उसके शरीर पर दो चोट के निशान थे, एक उसके सर के पिछले हिस्से पर और दूसरा उसके पेट में चाक़ू का। और अभी तक चाकू नहीं मिल पाया है, जिससे उसकी हत्या की गयी थी, फिर मैं वापस प्रियंका के घर गया और लाश वाली जगह पर मैंने एक बार फिर अपने जेहन में सोचने लगा, मैंने संजीव से लाश के बारे में पूछा तो उसने बताया की लाश यहाँ पड़ी हुई थी, फिर मैंने गौर किया की मेज के पास पैर के निशान हैं, मतलब यहाँ से खड़ा हो कर कोई प्रियंका को पीछे से डंडे से मारा होगा, उसके बाद प्रियंका गिर गयी होगी और उसके बाद उसके पेट में चाँकू घोपा गया होगा, हत्या किस तरह से हुई यह समझ में आ गया, लेकिन हथियार और हत्यारा कौन हो सकता है, इसकी जांच के लिए मैं पास के लोगो से पूछ-ताछ की तो पता चला की प्रियंका का कोई दुश्मन नहीं था, सभी उससे प्यार करते थे, फिर भला कोई उसे क्यों मारेगा? मेरी भी समझ में नहीं आ रहा था, मैं अपने ऑफिस में कॉल कर दिया की लेट आऊंगा और काफी देर तक सोचने के बाद मैं और संजीव वापस भोपाल आ गए और मैं अपने ऑफिस में काम करने के लिए चला गया।

कल सुबह सुबह संजीव मेरे घर आ गया और एक बार फिर मुझसे पूछने लगा की मेरा क्या होगा? मैं जल्दी जल्दी तैयार हो कर एक बार फिर घटना स्थल पर पहुँच गया शायद कोई और सुराग मिल जाए। मैंने प्रियंका की माँ से बात करनी चाही लेकिन वो सदमे में थी इसलिए उनसे कोई बात नहीं कर पाया, मैंने एक बार पूरा घर देखने के लिए घूमने लगा, पुरे घर में 5 कमरे थे, एक एक कमरा घूमने के बाद मैं एक छोटा सा कमरे की तरफ बढ़ गया, जहाँ मुझे एक मेज नजर आयी और मेज पर काफी धूल जमी हुई थी, तभी मैंने देखा की कुछ वैसे ही पैर के निशान मेज पर भी पड़े हुए हैं,मुझे ताजुब हुआ की भला हत्यारा मेज पर क्यों चढ़ेगा, मैंने छप्पर की और देखने लगा, और मैंने भी मेज पर चढ़ गया और छप्पर की तरफ देखा तो पाया की एक कपडे का टुकड़ा लटक रहा है, में वो कपडे का टुकड़ा खिंचा तो पूरा का पूरा कपड़ा की निचे आ गया और कपडे को खोला तो उसमे देखा की खून से सनी हुई चादर है, मतलब चाँकू भी मिल गया,

अब मेरी समझ में नहीं आ रहा था की हत्या किसने की और हत्यारा चाकू को घर में क्यों छिपायेगा, फिर मुझे याद आया की प्रियंका की माँ ने पास के नहर के बगल की दुकान से पान मंगवाया था, मैं संजीव के साथ पान खाने के लिए दुकान चला गया और पान खाया और प्रियंका की माँ के लिए भी पान ले लिया, फिर अचानक से मेरे चेहरे पर हस्सी आ गयी और मैंने इंस्पेक्टर को कॉल किया और उन्हें बुला लिया फिर मैंने प्रियंका के घर गया और उसकी माँ को बोला लीजिये पान खाइये, उसकी माँ ने पान खाने से मना कर दिया उसने बताया की वो पान नहीं खाती। फिर मैंने कहा, नाटक बंद कीजिये और मेरे साथ चलिए, उसकी माँ कड़ी हो कर चलने लगी तो पाया की वो थोड़ा सा लंगड़ा रही है मतलब अपने दाहिने पैर पर वजन डाल रही है मैंने इंस्पेक्टर से कहा यही हैं आपका कातिल इन्हे हथकड़ी पहना दीजिये, उसकी माँ रोने लगी, मैंने कहा नाटक बंद कीजिये, फिर मैंने इंस्पेक्टर साहेब को बताया की जब ये पान खाती नहीं हैं फिर मंगवाया क्यों? और पान वाले ने भी बताया की प्रियंका की माँ पान नहीं खाती हैं, तभी मेरा शक इन पर हो गया और चलने के बाद शक यकीं में बदल गया, क्योंकि घटना स्थल पर सिर्फ दाहिने पैर के निशान थे, और मेज पर भी क्योंकि ये दाहिने पैर पर बल देती हैं। इस तरह में प्रियंका के कातिल का पता लगा लिया और संजीव ने राहत की सांस ली।


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