हज बिल्ली और चूहे

हज बिल्ली और चूहे

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चूहे खाना और हज पर निकल लेना बिल्ली का खानदानी अधिकार है। यहां यह प्रश्न भी विचार करने लायक है कि क्या बिना चूहे खाये बिल्ली हज पर नहीं जा सकती? क्या हज पर जाने का अलौकिक आनंद बिना चूहे खाये नहीं आ सकता? हाजियों को तो आता ही है पर बिल्ली को नहीं आता। अब आप लोग भी ना यार पीछे ही पड़ जाते हो। चूहे खाना बिल्ली का जन्मजात स्वभाव है। अगर वह चूहे खाना बंद कर देगी तो आप लोग ही बोलने लगोगे कि बिल्ली कितनी अस्वाभाविक और असहज हो गई है, चूहे ही नहीं खाती। क्या वह भी बुद्धिजीवियों की तरह महान हो गई है जो असहज व्यवहार की अधिकारिणी हो गई है।

 

चूहे खाना कर्म है या कहें चूहे खाना दुष्कर्म है। और हज पर जाना उसका प्रायश्चित। अब कोई अपने दुष्कर्मों का प्रायश्चित भी न करे। ये दुनिया ऐसी ही है। दुष्कर्म करो तो मुश्किल और प्रायश्चित करो तो ज्यादा मुश्किल। तो क्या दुनिया के डर से दुष्कर्म ही करते रहें, ताकि कम मुश्किलों का सामना करना पड़े। तो मुद्दा यह है कि बिल्ली चूहे खाकर हज को निकल पड़ती है। यहां यह सवाल भी प्रासंगिक है कि बिल्ली चूहे खाकर हज को ही क्यों जाती है, चारों धाम को क्यों नहीं? चूँकि हम एक धर्मनिरपेक्ष समाज में रहते हैं इसलिये अब बिल्ली को चूहे खाकर चारों धाम की यात्रा पर भी जाना चाहिये। तभी वह सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष कहलायेगी धर्मनिरपेक्ष होने के लिये यह बहुत जरूरी है कि एक धर्म की बात करके आदमी को तुरंत ही दूसरे धर्म की बात करनी चाहिये। यदि ऐसा नहीं किया गया तो किसी को भी सांप्रदायिक घोषित करने वाली ताकतें आपको भी सांप्रदायिक घोषित कर देंगी। उम्मीद की जानी चाहिये कि बिल्ली सांप्रदायिक घोषित होने के बजाय अगली बार चूहे खाकर चारों धाम की यात्रा पर निकल पड़ेगी। गर हिन्द में रहना है तो बिल्ली को भी चारों धाम तो करना होगा।

 

सफेद हाथी की तर्ज पर समाज में कुछ सफेद बिल्लियां भी हैं जो चूहों को खाने में मगन हैं। लेकिन हज पर जाने का उनका कोई इरादा दूर दूर तक दिखाई नहीं देता। बिल्ली तो बेचारी फिर भी सौ चूहे खाकर हज पर चली जाती है। लेकिन सफेद बिल्लियों का सौ दो सौ नहीं असंख्य चूहे खाने के बाद भी कभी भी पेट ही नहीं भरता। सफेद बिल्लियां जब चूहे खाती हैं तब ये उसकी सेहत या क्‍वालिटी नहीं देखती। बस उसको खाने से ही मतलब रखती हैं।

 

सफेद बिल्लियों का पेट अनंत ब्रह्मांड की तरह होता है, जितना डालो सब हजम। पेट भरने का तो प्रश्न ही नहीं।

 

एक बार एक सफेद बिल्ली और एक चूहे में कई दिनों से पकड़ पाटी या कहें आँख मिचौनी का खेल चल रहा था। चूहा हर बार उसके हाथों पड़ने से बच जाता। एक दिन मौका देखकर बिल्ली उससे बोली, ''सुन मैंने अब चूहे खाना छोड़ दिया है। अब मैं शुद्ध शाकाहारी हो गई हूँ। तू मुझसे अब मत डर।''

 

चूहे को सहसा विश्वास नहीं हुआ कि मौसी में अचानक इतनी ममता कैसे जागी। फिर भी प्रकट रूप में बोला, ''अच्छा ऐसा कैसे हो गया मौसी?''

 

''बस हृदय परिवर्तन! तू तो जानता ही है परिवर्तन ही जीवन है।'' बिल्ली मन ही मन आक्रामक होते हुए भी मीठी बानी बोली।

 

''सरकारी शाकाहार? लेकिन आप और शाकाहार? ऐसा कैसे चलेगा? आपका आहार तो काफी है। आपको शाकाहार से क्या होगा? हम जैसा एक चूहा आपके कई महीनों के आहार के बराबर होता है।'' चूहे के मन में जितने प्रश्न थे सब एक ही बार में पूछ डाले।

 

''रूखा सूखा खाऊँगी पर रहूँगी शाकाहार पर ही। सरकारी आदेश है।''

''अच्छा तो आप सरकारी आदेश से बंधी हैं इसलिए शाकाहारी हो रही हैं। है ना?''

''हाँ अब क्या करें? सरकारी नौकरी ही से सब आनंद मंगल है। इसलिये आदेश तो मानना ही है।'' बिल्ली ने अफसोस और संतोष एक साथ जताया।

''पर मौसी मुझे विश्वास नहीं हो रहा। आप मुझे विश्वास दिलाने के लिये क्या कर सकती हैं?'' चूहे का संशय फिर भी नहीं मिट रहा था।

''अब यार तैरना आता है या नहीं? यह देखने के लिये तो तालाब में ही उतरना पड़ेगा ना! ज़मीन पर रह कर कोई कैसे तैर सकता है?'' बिल्ली ने उसे समझाया।

''मतलब।'' चूहे ने उससे पूछा।

''मतलब यह कि तुझे मुझ पर भरोसा ही करना पड़ेगा। और कोई रास्ता नहीं है।''

''लेकिन मौसी ........।'' चूहे की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।

''चल मुझ पर भरोसा ना सही! पर सरकारी आदेश पर तो भरोसा करेगा या नहीं।''

 

बिल्ली ने सरकारी आदेश का हवाला दिया। बात सरकारी आदेश की आ जाय तो आदमी को मन बेमन से मानना ही पड़ती है। इससे सफेद बिल्लियों को अपने शिकार इफराती में मिलते रहते हैं। हज पर जाना यदि पापों के प्रायश्चित का मापदंड है तो बिल्ली इस मायने में महान है कि उसे अपनी गलतियों का एहसास हो चला है। और उनके प्रायश्चित के लिये वह मन वचन कर्म से तैयार है। लेकिन सफेद बिल्लियों को अपनी गलतियों का एहसास इसलिये नहीं होता क्योंकि वे स्वार्थ पूर्ति को दृष्टि में रखकर जानबूझ कर की जाती हैं। ये सफेद बिल्लियां समाज के हर घर, शहर, वर्ग और देश में समान रुप से पायी जाती हैं।

 

बिल्ली के गले में घंटी बांधना चूहों के लिये वाकई मुश्किल काम है। यह जानलेवा काम कोई भी चूहा नहीं करना चाहता। जबकि चूहों को यह तथ्य पता नहीं है कि संगठित होकर बिल्ली का न सिर्फ मुकाबला किया जा सकता है, बल्कि उसके गले में घंटी भी बांधी जा सकती है। इस प्रकार एकाध चूहे की बलि देकर बाकी चूहा समाज को बिल्ली के आतंक और आक्रमण से बचा सकते हैं। हमारे साथ भी यही होता है, सफेद बिल्लियों के गले में घंटी बांधने के काम को टालकर हम में से हर एक बार बार उनका शिकार होता रहता है। सफेद बिल्लियों के गले में घंटी बांधने का काम जितनी जल्दी हो उतना अच्छा फिर वह चाहे लोकपाल में हो या चौपाल में।

 

 


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