हिम स्पर्श- 35

हिम स्पर्श- 35

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वफ़ाई के मन में दुविधा जन्मी। जीत क्यों उस व्यक्ति के शोक में इतना गहन डूब गया है जो व्यक्ति से ना तो उसका कोई संबंध था ना ही वह उसके साथ अधिक समय तक रही थी ?

वफ़ाई इस प्रश्न का उत्तर पाने का व्यर्थ प्रयास करती रही।

“जीत, तुम गेलिना की मृत्यु पर इतने गहन शोक में क्यों डूब गए हो ? क्या संबंध था तुम्हारा उसके साथ ?” अंतत: वफ़ाई ने धैर्य खोकर पूछ लिया।

“वफ़ाई, वह तुम नहीं समझोगी, मैं स्वीकार करता हूँ कि गेलिना से मेरा कोई संबंध नहीं था किन्तु, फिर भी किसी नाम, किसी व्याख्या, किसी कल्पना, किसी शब्द से परे कोई संबंध था हमारा।“

“वह क्या था ? तुम मुझे बता सकते हो, हम मित्र जो हैं।“

“कभी कभी, कोई व्यक्ति हमारे मन एवं ह्रदय में ऐसा सशक्त स्थान बना लेती है कि उसकी अनुपस्थिति हमें खाली कर देती है। चाहे वह हमारे साथ कुछ ही समय रही हो, चाहे वह हम उससे कभी नहीं मिले हो। वह खालीपन कभी भरा नहीं जा सकता।“ जीत गगन की तरफ देखने लगा।

गगन में कुछ बादल थे। जीत उन बादलों में किसी आकार को खोज रहा था। गेलना की आकृति को ढूंढ रहा था। वह बारम्बार आँखें खोल-बंद कर रहा था।

अंतत: उसके अधरों पर दिव्य स्मित आया। वह किसी बिन्दु पर अपलक देखता रहा। वहाँ बादल थे, जो धीरे धीरे बिखर रहे थे, गति कर रहे थे एवं आकार बदल रहे थे। बादल टूट रहे थे। अंतत: सब बादल बिखर गए। गगन स्वच्छ था, निरभ्र था।

वफ़ाई जिस विश्व में थी वहाँ जीत लौट आया।

“गेलिना ने तुम्हारे लिए क्या विशेष काम किया था ? तुम्हारे मन पर वह कौन सा प्रभाव छोड़ गई है ? वह कला जो तुम गेलिना से सीखे ? अथवा...?” वफ़ाई ने जीत के मन तक उतरना चाहा।

“वफ़ाई, गेलिना का प्रभाव मेरे मन तक ही सीमित नहीं है, मेरे ह्रदय पर भी है। मन पर पड़ा प्रभाव लंबे समय तक नहीं रहता। चित्रकारी सीखने से भी कहीं आगे उसने मेरे लिए कुछ विशेष किया है।“

“क्या है वह ? जीत, ह्रदय को आज खोल दो। उसकी अतल गहराई तक जाओ और बताओ कि वहाँ क्या है ? उसे ह्रदय में भरकर तुम जी नहीं पाओगे। उसे खाली कर दो।“

“खाली ? हाँ, यही उचित शब्द है, वफ़ाई। गेलिना ने मेरे खाली जीवन को भर दिया था। उसका व्यक्तित्व, उसकी भावनाएं, उसका उत्साह, उसकी कला। मेरे जीवन के अंत तक मैं उसे मेरे ह्रदय से खाली नहीं करूँगा।“

“अल्प किन्तु मधुर स्मृति, जीवन के अविस्मरणीय क्षण। जीत तुम ऐसे व्यक्ति हो जो किसी के साथ व्यतीत किए क्षणों की अनुभूति को समझ सकते हो।“

“हाँ, वफ़ाई।“

“मेरे जाने के पश्चात क्या तुम मुझे भी इसी प्रकार याद रखोगे ?” वफ़ाई ने जीत की तरफ आशा से देखा। जीत कुछ क्षण मौन रहा, वफ़ाई झूले पर बैठ गई।

वफ़ाई ने वही प्रश्न पुन: पूछा।“मेरे जाने के पश्चात क्या तुम मुझे भी इसी प्रकार याद रखोगे ?”

वफ़ाई के शब्दों ने जीत का ध्यान भंग किया।

वफ़ाई की आँखों में आँखें डालकर जीत ने कहा, ”वफ़ाई, तुम चली जाओ यहाँ से, लौट जाओ अपने घर। तुम्हारा उद्देश्य पूर्ण हो गया है। तुम्हें वह सब कुछ मिल चुका है जो तुम इस स्थल से अपेक्षा कर रही थी। कृपया लौट जाओ।“

“चली जाऊँ ? क्यों ?“ वफ़ाई को आघात हुआ। वह झूले पर से उठ गई, इधर-उधर घूमने लगी। वह अशांत हो गई।

“बस चले जाओ, लौट जाओ। अपने जीवन का आनंद लो। तस्वीरों के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करो। मित्रों एवं परिवार के साथ रहो।“

“क्या तुम मेरे यहाँ रहने से भयभीत हो ? इस क्षण मेरे अस्तित्व से तुम भाग रहे हो, जीत।“

“कल मेरे जीवन में तुम्हारी अनुपस्थिति से अथवा तुम्हारे जीवन में मेरे ना रहने से होने वाली स्थिति की कल्पना से मैं भयभीत हूँ। इससे पहले कि हमारी अनुपस्थिति एक दूसरे को विचलित कर दे, अशांत कर दे, वफ़ाई, हमें इस कथा को विराम देना होगा। यह...।”

“जीत, श्रीमान जीत। नहीं, नहीं, चित्रकार जीत। तुम किसी और विश्व में विहार कर रहे हो। तुम्हारी नाव किसी भिन्न सागर में तैर रही है।“

“मैं तो मरुभूमि में हूँ।“

“सुनो, यदि मुझे भाग जाना होता, तुम्हें अकेले छोड़ देना होता तो मैं लौटकर नहीं आती। मुझे जो चाहिए था वह हर सामान लेकर भागने में मैं सफल हो गई थी। तथापि मैं लौट आई, तुम्हें फिर कभी नहीं छोड़ जाने के लिए। इसका अर्थ तुम समझ रहे हो, जीत ?” वफ़ाई उत्तेजित थी, व्यग्र थी।

“तुम लौट आई हो क्यों कि तुम चोरों की भांति भागी थी। तुमने चित्रकला सीखने की मेरी बात मानी नहीं थी। यही कारण था कि तुम स्वयं को अपराधी मान रही थी किन्तु अब तुम जा सकती हो। मैं तुम्हें मेरी प्रत्येक बात से मुक्त करता हूँ। तुम अब मुक्त हो। तुम चली जाओ, लौट जाओ।“

“मैं पहले भी मुक्त थी और सदैव मुक्त ही रहूँगी। कोई मुझे बाँध नहीं सकता। मैं तुम्हें छोड़कर भाग गई थी, यह सत्य है किन्तु मैं लौट आई हूँ, यह भी सत्य है। मेरे लौटने में मुझे ही आनंद मिल रहा है। मुझे जब उचित लगेगा, मैं तुम्हें छोड़कर, यह सब कुछ छोड़कर चली जाऊँगी। मेरे लौटने की क्षण मैं निश्चित करूँगी। समझे श्रीमान जीत ?” वफ़ाई ने तीखी बात कह दी।

“कौन निश्चित करेगा ? तुम ? एक दिवस हम दोनों एक दूसरे को छोड़ जाएंगे किन्तु, वह क्षण मैं निश्चित करूँगा, इतना मुझे विश्वास है।“

“कभी-कभी मैं तुम्हारे शब्दों को, तुम्हारे विचारों को एवं तुम्हें समझ नहीं पाती।“ वफ़ाई दुविधा में पड गई।

जीत स्वस्थ था किन्तु अभी भी दु:खी था,”उसकी मृत्यु कैसे हो गई ?” जीत ने स्वयं से पूछा।

“उसकी अर्थात गेलिना की ? जैसे लिली ने बताया था, वह किसी रोग से पीड़ित थी। क्या उसने तुम्हें यह बताया था कि यदि वह हिम से भरे पहाड़ों पर जाएगी तो वह मर सकती है ?” वफ़ाई ने पूछा।

“नहीं, उसने कभी नहीं बताया। वह बीमार तो नहीं लग रही थी। वह तो ऊर्जा से भरपूर थी। वह उत्साह से भरी थी। उसमें जीवन जीने की उमंग थी। वह इस प्रकार से मर नहीं सकती।“ जीत अभी भी स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि गेलिना की मृत्यु हो चुकी है।

“जितनी शीघ्रता से हो सके, यह स्वीकार कर लो कि गेलिना अब नहीं रही। हमारे लिए यही उचित होगा। यदि एक बार इसे स्वीकार कर लोगे तो तुम आगे की राह सोच सकोगे। यही गेलिना को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।“

“तुम किसी ज्ञानी की भांति बात कर रही हो, वफ़ाई। क्या तुम कोई तत्ववेता हो ?”

“मैं तो तुम्हारी मित्र हूँ।“ वफ़ाई ने स्मित दिया। जीत उस स्मित के सहारे दु:ख को भूलता गया, स्वस्थ होता गया।

“हमें चित्रकारी पर ध्यान देना चाहिए, तुम मेरा चित्र रच दो।“ वफ़ाई ने समय के मौन प्रवाह बीत जाने पर कहा।

“ठीक है, मैं प्रयास करूँगा।“

“कैसे करोगे तुम यह ?”

“कैसे ? मुझे विचार करने दो।“

कुछ क्षणों तक जीत आस-पास देखता रहा, फिर घर में चला गया। जब वह लौटा तब उसके हाथ में कुछ पुस्तकें थी,”गेलिना ने यह मुझे दी थी।“

“क्या है इसमें ?”

“यह चित्रकला की पुस्तकें हैं। इसको पढ़ते हैं और सीखते हैं। अब हम दो हैं, हम साथ साथ सीखेंगे। क्या तुम तैयार हो ?” जीत ने उत्साह दिखाया। वफ़ाई ने जीत को सुना और खुलकर हँस पड़ी।

“तुम हँस क्यों रही हो, वफ़ाई ?”

वफ़ाई पुन: हँसने लगी, हँसती रही। जीत उसे निहारता रहा।

“जीत, पुस्तकें कला नहीं सीखा सकती। इस प्रकार से कोई भी कला नहीं सीखी जाती। पुस्तकें तुम्हें दिशा दिखा सकती है, लक्ष्य नहीं।“

“तुम सत्य कह रही हो, मैं मानता भी हूँ किन्तु इस समय हमारे पास इन पुस्तकों के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। इन्हीं पुस्तकों के सहारे कोई मार्ग खोजते हैं।“ जीत ने पुस्तक खोल दी और उनके पृष्ठों पर विहंग दृष्टि डाली।

वफ़ाई ने चित्राधार पर केनवास बदल दिया। वह श्वेत था। कोई बिन्दु अथवा रेखा नहीं थी उस पर। ना ही कोई चित्र था और ना ही कोई रंग। वह पूर्णत: खाली था।

वफ़ाई ने पेंसिल, रब्बड़, तुलिकाएँ, रकाबी, रंग सब तैयार कर दिया, चित्रकार के लिए सब कुछ तैयार था।

क्रमशः


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