हौसला
हौसला
वर्ष २०२० का आगमन हो चुका था। लोग हर्षोल्लास से नये साल का आगाज़ कर रहे थे और नये-नये प्रण के साथ ज़िंदगी में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह वर्ष उनके पारिवारिक जीवन के साथ साथ शिक्षा, अनुसंधान, नौकरी सभी क्षेत्रों में एक भीषण महामारी के साथ अपने चपेट में बिल्कुल क्रिकेट के टी२० मैचों के जैसे सबके साथ खेलने को तैयार था।
बस कुछ ऐसा ही हुआ भारत जैसे देश में भी जहां 135 करोड़ जनता एक साथ नये साल का आगमन कर रहे थे वहीं आगमन के साथ ही कोरोना जैसी महामारी तेजी से अपना पांव इस देश में फैला रहा था। जनवरी आरंभ हुआ और यह देखते देखते गुज़र गया। उसके बाद फरवरी आया और वह भी गुज़र गया और इधर कोरोना तो चुपके से इस देश में खुद का राज स्थापित करता जा रहा था। इस बीच बहुत से देशों में कोरोना भुचाल ला चुका था। हर दिन मरीज़ और उससे मरने वाले लोगों की जनसंख्या बढ़ती जा रही थी। इसी तरह मार्च का महीना आते ही भारत में भी यह तेज़ी से फैलने लगा था, लेकिन प्रधानमंत्री के सूझबूझ के वजह से काफ़ी हद तक इसे रोका गया। समय रहते ही पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया गया था। कोरोना से बचने के लिए लाॅकडाउन तो कर दिया गया था लेकिन इसके बहुत सारे दुष्प्रभाव भी थे। जैसे लोगों का जीवन यापन पर असर पड़ रहा था। लोग खाने तक इंतज़ाम नहीं कर पा रहे थे। और आर्थिक स्थिति तो लगभग पूरा बिगड़ ही चुका था। देश विदेश सब जगह आर्थिक मंदी बढ़ती जा रही थी । कंपनियां अपने यहां काम करने वाले लोगों को बेझिझक निकाल रहे थे। इसमें अच्छे-अच्छे कंपनियों के बड़े वेतनभोगी भी शामिल थे, जिन्हें झटके में निकाला जा रहा था।
ऐसी ही कुछ कहानी सिद्धार्थ की भी है। जो पेशे से इंजीनियर था और चाइना के एक कंपनी में कार्यरत था। वह अक्सर कंपनी के काम से देश-विदेश के भ्रमन पर रहता था। और कभी कभार ही वह अपने देश आया करता था। इसी बीच कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण वह अपने स्वदेश को लौट आया था। लॉकडाउन के समय में वह अपने देश और अपने गांव में ही था, जब उसे पता चला कि इस समय में बहुत से लोगों को कंपनियां अपने यहां काम नहीं दे रही है और बहुत को कंपनी से निकाला जा चुका था। बहुत से मजदूर घर को पैदल जा रहे थे। बहुत से मजदूर भूखे पेट मर रहे थे। यह सब समाचार उसे हर दिन मिलता आ रहा था। यह सब घटना से वह बिल्कुल परेशान था। वह अपने देश के जनता के लिए कुछ करना चाहता था। इसी उधेड़बुन में वह बैठा सोचता रहता था। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह इन लोगों के लिए क्या करें। आखिर वह भी तो एक मध्यमवर्गीय परिवार का सदस्य था। दो बच्चे का पिता एक विदेशी कंपनी में कार्यरत था। कहने को तो अच्छा पैसा कमाता था लेकिन इस कोरोना काल में सिर्फ अपने सैलरी के पैसे से कितना कुछ देश और समाज के लिए कर सकता था। इधर उसे खुद के ही कंपनी का क्या ठिकाना था कि उसे काम और पैसे मिलते ही रहेंगे या फिर उसे भी ऐसे हालात में निकाल दिया जाएगा।
खैर इसपर वह ज्यादा सोचना उचित न समझा और राष्ट्र और यहां के नागरिक के हित के लिए कुछ करने को सोचा। इसके लिए वह हर बाधा को लांघने के लिए तैयार था।
फिर क्या था उसने अगले ही दिन अपने कंपनी से इस्तीफा दे दिया और आत्मनिर्भर बनने और बनाने का सोचा।
उसके पास पहले से जो भी जमा पूंजी था और अपने सैलरी को स्वावलंबन में इस्तेमाल करने का सोचा। उसने सबसे पहले तो यह देखा कि ऐसा क्या किया जाए जिससे लोगों को मदद मिलेगी। फिर उसने सोचा क्यों न ऐसा काम शुरू किया जाए जो अपने देश में नहीं होता और नहीं बनाया जाता है और इसके लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
फिर क्या था उसने बहुत से ऐसे उत्पाद बनाने शुरू किए जिसके लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। शुरुआत में वह छोटे स्तर पर इसे आरंभ किया। लोगों तक इस काम का संदेश पहुंचाया। उसे पता था कि यह इतना आसान नहीं है पर फिर भी उसने हार न मानी। बहुत दिनों तक उसके स्थिति ख़राब हो चुके थे। उसे भूखा रहना पड़ता था। पर फिर भी वह अपने किसी भी कर्मचारी को मायूस नहीं देखना चाहता था, जिसके लिए वह रात दिन प्रयासरत था। उसे बहुत से बुरे दिन से गुजरना पड़ा लेकिन उसने हार न माना। और अंत में उसकी सफलता रंग लाई। आज वह खुद तो आत्मनिर्भर हो ही चुका था, उसके साथ साथ बहुत से लोग खुशमय जीवन व्यतीत कर रहे थे।
अपने देश को खुशहाल बनाने के लिए उसने हर संभव प्रयास किए थे। देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में वह खंभे के जैसे खड़ा था। उसे पता था कठिन समय में बहुत से परेशानियों से गुजरना पड़ता है लेकिन इंसान को हमेशा इसका डटकर मुकाबला करना पड़ता है। कभी भी मनुष्य को अपने काम के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमेशा कमी का अनुभव करना चाहिए और उस कमी को दूर करने के लिए उस दिशा में हर संभव प्रयास करना चाहिए। आज वह देश के लिए और देश के नागरिक के लिए एक मिसाल बनकर खड़ा है, और वह आज सबके सामने यह कहने के लिए आतुर है कि कुछ लोगों के लिए, कुछ देश के लिए कर गुजरने का जज़्बा हो तो हर मुश्किल भी छोटी पड़ जाती है। लंबे सफ़र भी छोटे पड़ जाते हैं अगर सफ़र करने का हौसला हो तो।
