Prem Lata Anand

Inspirational

4.6  

Prem Lata Anand

Inspirational

हार या जीत

हार या जीत

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आज भी याद है मुझे ट्रेन का वो सफर जिसमें कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरे जीवन के अब तक के अनुभवों और जीने की चाह व राह सब कुछ झकझोर कर रख दिया और मैं शेष बची जिंदगी की राह पर एक अनाड़ी बहादुर बच्चे की तरह चल पड़ा ।

         बात उन दिनों की है जब मैं अपनी पत्नी के साथ ताज एक्सप्रेस से आगरा से दिल्ली आ रहा था । पारिवारिक कारणों से हम बोझिल मन से बैठे शून्य में निहार रहे थे । सहसा मैंने देखा कि ट्रेन में सामने की सीट पर एक यंग कपल परेशान सा बैठा था । वे दोनों पढ़े-लिखे व संभ्रात परिवार के लग रहे थे ।परन्तु युवक की आँखों से रह रह कर पानी बह रहा था और वह युवती उसे मूक भाव से अपने प्यार और साथ का एहसास कराती उसके हाथों को सहला रही थी । क्षण भर के लिए मैं अपनी सारी परेशानियां भूल गया और सोचने लगा कि-

'क्या इनका कुछ लुट गया है ?'

'क्या कोई रिश्तेदार भगवान को प्यारा हो गया है ?'

मेरे व्याकुल मन से रहा नहीं गया और मैंने पूछ डाला- "बेटा, क्या बात है ?बहुत परेशान लग रहे हो ।"

"नहीं, अंकल जी, ऐसी कोई बात नहीं है ।" कह कर वह खिड़की के बाहर देखने लगा । 

आगे और कुछ पूछना मैंने मुनासिब नहीं समझा और एक अनचाही, अजीब मुस्कराहट के साथ मैंने पीछे सीट के साथ अपना सिर टिका दिया ।

युवती अपने पति की तरफ देखते हुए बोली-

"कुछ नहीं ? ऐसा क्यों कह रहे हैं ?

ये भी तो अपने माता पिता की उम्र के हैं । बात करने से मन हल्का होता है। और हो सकता है हमारी समस्या का कोई समाधान ही मिल जाए ।"

युवक तो निरन्तर भावशून्य सा खिड़की के बाहर ही देखता रहा परन्तु जैसे कटी हुई पतंग सहसा ही धरती पर आ कर नहीं गिर जाती बल्कि धीरे-धीरे धरती पर आती है उसी प्रकार उस युवती का बोलने का क्रम भी फिर से जुड़ गया और वह मेरी पत्नी को संबोधित करते हुए मधुर, मनमोहक पर रुआँसे स्वर में बोली-

"देखिए ना, आँटी ! इन्हें अपने वृद्ध माता पिता से बेइन्तहा प्यार है। वे लोग आगरा में रहते हैं पर नौकरी की वजह से हमें दिल्ली में रहना पड़ रहा है । हम उन्हें अपने साथ रखना चाहते हैं ।इस अवस्था में उनका अकेले रहना ठीक है क्या ? आजकल नौकरों पर भी तो विश्वास नहीं किया जा सकता , आए दिन कोई ना कोई खबर न्यूज पेपर में पढ़ने को मिलती है, कल को कुछ ऐसा वैसा हो गया तो लोग क्या कहेंगे ?

युवती निरंतर बोले जा रही थी- और मेरी पत्नी अवाक ,चेहरे पर मिले जुले भाव लिए, सिर हिलाते हुए उसे सुन रही थी ।

"आँटी जी ,हम दोनों के मन में उनके लिए बहुत प्यार है, बहुत इज्जत है, हम उनकी सेवा करना चाहते हैं,

हाँ !समयाभाव के कारण उनकी जी हजूरी नहीं कर सकते उनके पास बैठने का हमारे पास समय नहीं है, वो हमारी मजबूरी नहीं समझते ,बस एक ही रट लगाई है कि अगर हम सब शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं तो अलग ही रहेंगे उन्हें हमारे साथ थोड़ा तो एडजस्ट करना चाहिए ,पर उन्हें तो शायद इसमें अपनी हार लगती है .............."


उस युवती की बातें सुन कर मुझे क्षण भर के लिए ऐसा लगा कि यह प्रश्न मुझसे पूछे जा रहे हैं और इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढते-ढँढते मैं विचारों के अथाह समुद्र में तैरने लगा क्योंकि अपने अनुभवों और आधुनिक तौर-तरीकों को देखते हुए मैं स्वयं उस युवती के सास-ससुर की विचारधारा का समर्थक था । मैं यही सोच रहा था कि यंग जेनरेशन स्वयं को इतना एडवांस और बजुर्गों को इतना बैकवर्ड क्यों समझती है ?क्या यह इस बात से अंजान हैं कि इनकी सफलता में इनकी कड़ी मेहनत के साथ उन बजुर्गों का भी कुछ तो योगदान है जिनके लिए इनके पास समय नहीं है ,क्या यह झूठ है कि यदि मन में प्यार और इज्जत होगी तो वाणी में कड़वाहट कभी नहीं होगी । बच्चे कब समझेंगे कि बजुर्गों के जीवन के अंतिम पड़ाव में उनके जीने की चाह को बनाए रखने के लिए उन्हें किसी सीख की नहीं बल्कि उनके काँपते हाथों को अपनेपन का स्पर्शमात्र और कानों को दो मीठे बोलों की जरूरत है ताकि आज उनके बच्चे जिस मकाम पर पहुँचे हैं उन्हें वहाँ देखकर माता-पिता को फख्र हो ना कि इस बात का पश्चाताप कि वे उन्हें जीवन के मूल्यों की पहचान कराने में असफल रहे । यदि उन्हें अपनापन और मीठे बोल मिलें तो जो अपने बच्चों पर अपना जीवन न्यौछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहे क्या वे अपनी जीवन भर की मेहनत की खुशी के लिए एडजस्ट ना करेंगे । 

जैसे ही ट्रेन मथुरा स्टेशन पर पहुँची ,ट्रेन और लोगों के मिल जुले स्वर के साथ मेरा विचार भंग हुआ तो अनायास एक लंबी सांस के साथ मेरे मुँह से निकला, "जरूर एडजस्ट करेंगे , हार जीत का तो प्रश्न ही नहीं उठता । यह वो रिश्ता है जिसमें हार कर भी जीत का मजा आता है ।"


वह युवती और मेरी पत्नी मेरी तरफ विस्मय पूर्वक देखकर मुस्करा रहीं थी लेकिन मेरी विचार श्रृंखला बनी रही और मैं सोच रहा था कि शायद ये बच्चे भी हमारी तरह ही उम्र के इस पड़ाव में आ कर ही जीवन के इस सच का अनुभव करेंगे 

 और मैंने इन सब विचारों की कशमकश से बाहर निकलने के लिए गुनगुनाना शुरू कर दिया-जीवन चलने का नाम ,चलते रहो सुबह शाम....

                                               


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