हाल-ए-राजनीति
हाल-ए-राजनीति
आखिर बच्चों की जिद्द के आगे धुटने टेक माता-पिता ने दिल पर पत्थर रख एक गाड़ी घर ले आयी। एक दिन अचानक माताजी की तबीयत बिगड़ने लगी, हालात तेजी से खराब होने लगे, लेकिन बच्चों को क्या उन्हें तो गाड़ी रिवर्स करने का शौक पनपा था।
बिगड़ती हालत देख पिता ने विचार किया कि क्यों न शीघ्र-अतिशीघ्र अस्पताल जाकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जाए। उन्होंने बड़े बेटे को पुकारा और कहा कि चलो माँ को गाड़ी से अस्पताल ले जाने की तैयारी करो, बेटा बेशर्मी के साथ तपाक से बोला यह गाड़ी मेरी नहीं है किसी और से कहिए। फिर पिता ने दुसरे बेटे को पुकारा वह बोला मुझसे तो यह गाड़ी चलती ही नहीं, और अपना पल्ला झाड़ आगे बड़ गया। फिर तीसरे बेटे को पुकारा वह पूरी अकड़ के साथ बोला कि यह गाड़ी सिर्फ मेरी है मैं किसी को भी चलाने ही नहीं दूंगा और पूरी बेशर्मी के साथ गाड़ी की चाबी लेकर भाग गया।
सबसे छोटा बेटा कभी माँ के मस्तक को तो कभी चरणों को सहलाता, लगातार माता की सेवा करते हुए रोता जा रहा था, अचानक से आवेश आकर बिना पिता के परामर्श के सिर्फ माँ की खातिर यह बेटा जैसे ही दूसरी चाबी के साथ गाड़ी की तरफ बढ़ने लगा ही था कि उसके सभी बड़े भाई एकदम सतर्क हो गए और चुपके से जाकर षडयंत्र पूर्वक बारी-बारी गाड़ी के पहिये निकालने मे जुट गए तो कोई गाड़ी की बैट्री ही निकाल गया।
तर्क सिर्फ इतना कि हमारे होते यह गाड़ी चलाने वाला आखिर है कौन? यह हमारी शान के खिलाफ है। हम पूरी ताकत लगा देंगे लेकिन इसे गाड़ी चलाने ही नहीं देंगे। कमोबेश 'हाल-ए-राजनीति' भी कुछ ऐसा ही है।