गुरु कृपा ही केवलम्
गुरु कृपा ही केवलम्
यह एक सच्ची घटना है ,एक भक्त था उसने एक स्वप्न देखा- वह पूछा करते थे कि मृत्यु कैसे होती है तो उनके गुरु ने उन्हें बताया कि भाई ,मेरी एक किताब है उसमें सब लिखा है तुम उसे पढ़ लो ।वह चला गया ।एक बार उसने आ करके बताया, अपने स्वप्न की बात बताई थी कि स्वप्न में मुझे ऐसा लगा कि मेरी मृत्यु हो गई है। मैंने जीवन में कभी कोई अच्छे कर्म नहीं किये थे, ना कोई तपस्या की थी, भगवान का नाम भी ठीक से नहीं लिया था।
लेकिन एक बात मैंने जरूर की थी कि अपने गुरु के चरणों का स्पर्श कर लिया था ।मेरी मृत्यु हुई, यम मुझे लेने के लिए आए और मेरे सूक्ष्म शरीर, मेरी आत्मा को ले चले। मैं बड़ा दु:खी हो रहा था। तो वहॉं ले जाकर जब मुझे धर्मराज के सामने उपस्थित किया गया तो उन्होंने बताया कि भाई ,जीवन में कभी इसने कोई शुभ कर्म तो किया नहीं है ।इसलिए इसे तो नर्क में ही जाना होगा।
यम मुझे नरक की ओर ले जाने लगे ।कुछ देर के बाद मैंने देखा कि मेरे गुरु मेरे सामने खड़े हैं और कहने लगे कि तुम कहीं नहीं जाओगे हमारे साथ चलोगे। यम के गणों ने मुझे शीघ्र ही छोड़ दिया और उन्होंने मुझे एक ऐसे स्थान पर पहुँचा दिया, जहां सूर्य था, ज्योतिर्मय था ,आनंद था।
मेरी आँखे खुल गई और वह नजारा अभी भी मेरे सामने घूम रहा है ।यहीं उन्होंने गुरु महाराज के चरणों में निवेदन किया। तो जीवन में हमने जिन का हाथ पकड़ लिया है, हम पापी भी हैं, हमने कोई शुभ कार्य नहीं किया है ,लेकिन यह तो निश्चय है कि मैंने एक(अपने समर्थ गुरू) का चरण पकड़ा है।
इस वास्ते यह विश्वास है कि हम भूल जायें, लेकिन वह नहीं भूलेगें। जीवन में एक बार भी किसी ने ऐसा त्याग कर लिया है, अपने को किसी समर्थ गुरु को सौंप दिया है ,उनकी शरण ग्रहण कर ली है, तो निश्चय जानिए हम ऐसे दु:खों में नहीं रह सकेंगे और उनकी कृपा हम पर अवश्य होगी।
"गुरु कृपा ही केवलम्।"