Venkata Rama Seshu Nandagiri

Inspirational

4.3  

Venkata Rama Seshu Nandagiri

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गुरु जी की महानता

गुरु जी की महानता

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गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर।

गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

आठवीं कक्षा में पढ़ता हुआ दीपक संस्कृत श्लोक को रट रहा था। तभी बाहर से आए दादाजी ने उससे पूछा "दीपू इस श्लोक का अर्थ जानते हो।"

"नहीं दादाजी, टीचर जी ने कहा कि आज समय हो गया। कल इसका अर्थ समझाया जाएगा।" दीपक ने जवाब दिया।

"बहुत अच्छा। इसका अर्थ मैं आपको समझाता हूं। गुरूजी को भगवान के समान मानते हुए, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर का साक्षात् प्रतिरूप बताया गया है।"

"लेकिन दादाजी माता-पिता को भगवान से भी अधिक कहते हैं न।"

दीपक ने संदेह प्रकट किया।

"सच है बच्चे। जन्म देने वाले माता-पिता आवश्यक संस्कारों की सीख देकर अध्यापक के हाथों सौंपते हैं। इसलिए अध्यापक का स्थान माता-पिता के बाद दिया गया है।"

"दादाजी, जब माता-पिता सब कुछ सिखा सकते हैं, तो ऐसा क्या है, जो गुरु जी से सीखना है?" दीपक ने उत्सुकता से पूछा।

"अध्यापक बच्चों को इस समाज की स्थिति-गतियों से अवगत कराते हुए शिक्षा-दीक्षा देते हैं और समाज के परिस्थितियों से जूझने लायक बना देते हैं। वे ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन में ऐसे लोग भी मिलते है, जो हमें सीख देते हैं या हमारी बढ़ोतरी में सहायक होते हैं। वे भी हमारे लिए गुरु ही हैं।" दादाजी ने कहा।

" कौन हैं दादाजी, जो हमें गुरु जी के समान सीख देते हैं?" दीपक ने आश्चर्य से पूछा।

"प्रकृति भी हमारी उत्तम शिक्षिका है, जिससे हम देखकर सीखते हैं। प्रकृति में स्थित सूर्य, चंद्र, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, नदी तथा समुद्र हमें कुछ न कुछ सिखाते हैं।" दादाजी ने कहा।

"हां दादाजी, याद आया, बचपन में कविता पढे थे 'फूलों से नित हंसना सीखो----" दीपक चमकदार आंखों से बोला।

"हां बच्चे, इन सभी गुरुओं के हम आभारी हैं। इन सबके कारण आज हमारा समाज में जो स्थान है, निर्धारित हुआ है।" दादाजी ने समझाया।

"फिर दादाजी, हम इन से सब कुछ सीखते हैं, और उन्हीं के कारण समाज में हमारा स्थान निर्धारित होता है, तो क्या हमारे असफलताओं का कारण भी वे ही हैं?" दीपक उत्कंठतापूर्वक पूछा।

"नहीं बच्चे, इसका अर्थ यह नहीं कि हमारी असफलता के कारण वे हैं। क्योंकि अगर हम पूरी तरह से उनके कहने पर चले होते तो आज हमारी स्थिति पर प्रश्न चिह्न नहीं होता।" दादाजी ने समझाया।

"इसका अर्थ है कि हमें अपने माता-पिता तथा गुरुओं के कही हुई बातों को श्रद्धा से आचरण में रखना चाहिए। पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं, जो भी हमें कुछ सीखने में सहायक बनते हैं, उन लोगों को भी गुरु के समान आदर करना चाहिए।" दीपक ने अपने बात को दोहराया।

"हां बच्चे, सही है। हमें सदा हमारे गुरुओं का आभार रहते हुए उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करनी चाहिए। उसका एकमात्र उपाय यही है कि हम उनके कहे मार्ग पर चलते हुए अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए आदर्श स्थापित करें।" दादा जी ने समझाया।

"दादाजी, धन्यवाद। आपने मेरे कई प्रश्नों के जवाब देकर संदेह दूर कर दिये।" दीपक ने प्रसन्नता से कहा।

" बच्चे, मैंने मेरे पिताजी से सीखा था और आज मैंने तुम्हें सिखाया है।" मुस्कराते हुए दादाजी ने कहा।


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