Ravidutt Mohta

Tragedy

4.8  

Ravidutt Mohta

Tragedy

गुमशुदा

गुमशुदा

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''संध्या हो गयी है..जरा दीपक तो जलाओ ?''

उसके बूढ़े पिता ने उसे देखते ही कहा। उसने अपने पिता का चेहरा गौर से देखा। कोहरे से भरी इस डरावनी ठंडी शाम में उसके पिता एक ठंडे लोटे की तरह चारपाई पर बैठे हुए थे। शाम ने अपने ठंडे पैरों में रात के बर्फीले घुंघरू बांध लिए थे। और अब वो धीरे-धीरे उसके घर के आँगन में टहलने लगी थी।

''बेटा, आज ठंड बहुत है ''

''हाँ ''उसने अपने पिता को जीने की एक और उम्मीद देते हुए कहा।

रात घिर आयी थी। उसे अंधेरी रातों से बहुत डर लगता था। इन अंधेरी रातों ने ही बेवफ़ा औरत की आँख का काजल बनकर उसके कई होनहार दोस्तों को अत्महत्या करने को मजबूर किया था।

''क्या सोच रहे हो बेटा फिर से ?'' बाबा ठंड से काँपते हुए बुदबुदाये।

फिर अचानक उसके बाबा बोले,

''बेटा ....एक दिन हम दोनों नहीं रहेंगे, तब तुम किससे बातें करोगे ?''

''आप ऐसा क्यों कहते हैं बाबा ''

उसकी आँखें भर आयी थी, वह अब फूट-फूटकर रोने लगा था, उसने अपने बाबा की दोनों बूढ़ी बांहों को थामकर पूछा ?

''ऐसा क्यों होता है बाबा कि आप हमें जीवन-संस्कार देते हैं और हम बच्चे आपका अंतिम-संस्कार कर देते हैं ''

अब तो उसके बाबा की आँखों में भी आँसू की कुछ बूंदें काजल-सी भर आयी थी, पास में बैठी माँ भी अब सुबकने लगी थी।

उसके बाबा अब धीरे से बोले -

''बेटा ....आज तुझे एक राज की बात बताता हूँ, देख ...इस दुनिया में हम सभी शादीशुदा होकर घर बसाते हैं, परंतु वास्तव होता यह है कि एक दिन हम शादीशुदा दंपति जब बूढ़े हो जाते हैं तो अपने ही घर में अपने ही बच्चों कि आँखों के सामने ''गुमशुदा'' हो जाते हैं, और इस तरह हम हर घर में एक दिन मर जाते हैं"

''पर मैं तो आपको इस तरह कि लावारिस मौत मरने नहीं दूँगा, मैं आपका यह संदेश सारी दुनिया को बता दूँगा ...फिर तो आपकी मौत गुमशुदा नहीं होगी न ?''

अब चारों तरफ मौत का घना अंधेरा छाने लगा था

अचानक एक आवाज़ ने उसे हिलाकर रख दिया। ''अरे रवि जी कब तक अपने पिता की तस्वीर के आगे माला लिए खड़े रहोगे, आज तो इनका पहला श्राद है जल्दी माला पहनाओ। अभी बहुत काम करने हैं''

मैं सन्नाटे के कोहरे में बस रो पड़ा ..



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