राजकुमार कांदु

Tragedy Inspirational

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राजकुमार कांदु

Tragedy Inspirational

गुब्बारेवाला

गुब्बारेवाला

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179


पंडित आज्ञाराम के बेटे और बहू अपने पांच वर्षीय पुत्र दीपू के साथ मेले में घूम रहे थे। बहू गिरिजा और बेटा अशोक करीने से सजी खिलौने की दुकानों में सजे खिलौने निहारते आगे बढ़ रहे थे। नन्हा दीपू हर दुकान पर खिलौने देखता और अपनी उंगली उठाकर उनसे खिलौने खरीद देने की जिद्द करता। लेकिन अशोक और गिरिजा उसे समझा बुझाकर आगे बढ़ जाते। 

एक जगह रंग बिरंगी कांच की चूड़ियों से सजी दुकान देखकर गिरिजा चूड़ियां देखने में मशगूल हो गयी। अशोक भी उसे चूड़ियां पसंद करने में मदद करने लगा । लगभग पांच मिनट बाद जब दोनों चूड़ियां खरीद चुके उनका ध्यान दीपू की तरफ गया। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई थी। मेले की भीड़भाड़ के बीच नन्हा दीपू उन्हें कहीं नजर नहीं आ रहा था ।


 पागलों की तरह दीपू को ढूंढ ढूंढ कर दोनों बेहाल हो चुके थे। रात गहरा गयी थी। मेले में भीड़भाड़ भी अब कम हो गयी थी। इक्का दुक्का दुकानें भी बंद होनी शुरू हो गयी थी। थके हारे अशोक और गिरिजा खिलौनों के दुकानों की कतार में एकदम आखिर की दुकान के सामने एक खाली जगह में बैठ गए।


 उसी खाली जगह में एक गरीब गुब्बारेवाला अपने परिवार सहित भोजन कर रहा था। उसके सामने ही तीन छोटे बच्चे भी उसी के साथ भोजन कर रहे थे । उन्हें अपने हाथों से भोजन कराते हुए वह गुब्बारेवाला एक बच्चे को समझाए जा रहा था ” न रोओ बेटा ! अल्लाह चाहेगा तो तुम्हें तुम्हारे मां बाप मिल जाएंगे। “

उसकी यह बात सुनते ही गिरिजा का ध्यान गुब्बारेवाले की तरफ गया और वह उन बच्चों की तरफ दौड़ पड़ी। नजदीक पहुंचते ही उसने देखा उन तीन बच्चों में से एक उसका दीपू था। अपने साथ बैठे दोनों बच्चों की तरह ही वह उनके साथ उनके ही बर्तन में भोजन कर रहा था।


अशोक ने यह दृश्य देखते ही उस गुब्बारेवाले को पटक कर मारना शुरू कर दिया ” साले ! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे लड़के को अपना जूठा खिलाने की ? जानता नहीं हम कौन हैं ? हमारा धर्म भ्रष्ट कर दिया। ”

 बेचारा गुब्बारेवाला दोनों हाथ जोड़ घिघिया रहा था ” मालिक ! माफ कर दो। बड़ी भूल हो गयी। मैं पहचान नहीं पाया। “

 जबकि गिरिजा की कृतज्ञ आंखें दोनों नजरों में अश्रु की धार लिए उस गुब्बारेवाले को हृदय से आशीष दे रही थीं ।

वह एक माँ जो थी !


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