ग्लानि
ग्लानि
दरवाजे की घंटी बज रही थी खड़ी दुपहरी घंटी की आवाज सुन, मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था । मैं गुस्से में तनतनाते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ी और जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने सुगंधा खड़ी थी! आज अचानक इतने सालों बाद उसे देख मैं स्तब्ध रह गई, कुछ भी न बोल पाई! सुगंन्धा ने ही मुझसे पूछा, "कैसी हो शालिनी?"
" अच्छी हूँ " उसे अंदर लाते हुए मैंने जवाब दिया और पूछा "तुम कैसी हो?" वह जवाब देती, उससे पहले ही माँ वहाँ आ गई । सुगंधा को देखते ही उनके चेहरे का रंग उड़ गया। ऐसा लगा मानो माँ ने किसी भूत को देख लिया हो। उनकी गलती भी नहीं थी सुगंधा थी भी तो भूत जैसी। सभी उससे डरते थे जैसे कि उसको देखने भर से ही न जाने कौन सी अनहोनी हो जाएगी? सुगंधा ने माँ को प्रणाम किया। माँ ने भी आशीर्वाद दिया और कहा, "बैठो सुगंधा।" सुगंधा बोली, "नहीं आंटी आज जरा जल्दी में हूँ। मेरी शादी तय हो गई है अगले रविवार मेरी शादी है।" उसने बड़े उत्साह के साथ अपनी शादी का निमंत्रण पत्र मुझे पकड़ाते हुए कहा,"शालिनी तुम्हें भी आना है। मैंने निमंत्रण पर लेते हुए बहाना बनाने के लिए कहा, "मेरी रिश्तेदारी में किसी की शादी है मुझे तो वहाँ जाना ज्यादा जरूरी है इसलिए मैं तुम्हारी शादी में नहीं आ सकती। मुझे माफ़ कर देना।" सुगंधा ने कहा, "क्या तुम अपनी सहेली की शादी में नहीं आओगी? मुझे तो पूरा विश्वास था चाहे कोई मेरी शादी में आए न आए लेकिन तुम मेरी शादी में जरूर आओगी! खैर तुम आओगी तो मुझे खुशी होगी ।" इसके बाद सुगंधा चली गई। दरवाजा बंद करके जैसे ही मैं घूमी, मम्मी की आवाज कानों में पड़ी, "चलो अच्छा हुआ अब इससे हम लोगों को छुटकारा तो मिलेगा। लेकिन पता नहीं वह बदनसीब लड़का कौन है जिससे इसकी शादी होगी?" मम्मी बड़बड़ाती हुई किचन में चली गई। मैं माया की शादी का निमंत्रण पत्र देखती रही और यादों की पोटली खुलने लगी।करीब 7 साल पहले की बात है जब मेरे पिताजी का तबादला असम के एक छोटे शहर में हुआ था।मेरे परिवार में मैं, मम्मी -पिताजी, बड़ा भैया थे। भैया तो तीन साल पहले ही पढ़ाई के लिए बेंगलुरु चले गए थे। तबादले के बाद जब हम आये तो इसी शहर के एक कॉलेज में बीए में मैंने दाखिला लिया। सुगंधा से मेरी पहली मुलाकात कालेज में हुई थी। हमदोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। सुगंधा का घर हमारे घर से थोड़ी ही दूर पर था । इसलिए हम कॉलेज साथ ही आने-जाने लगे। धीरे-धीरे हम दोनों की मुलाकात एक गहरी दोस्ती में बदल गई। सुगंधा का परिवार ज्यादा बड़ा नहीं था । उसके घर में केवल उसके माता-पिता थे । सुगंधा ने बताया उसका एक भाई था जो एक दुर्घटना में मारा गया। मैंने एक बात महसूस की थी कि कॉलेज में सभी लोग सुगंधा से दूर- दूर रहते थे। कॉलेज की अन्य लड़कियों जिनसे भी मेरी दोस्ती थी वे अक्सर मुझसे कहती कि सुगंधा अच्छी लड़की नहीं है और तुम उससे दूर रहा करो। मैंने इस व्यवहार का कारण पूछा तो उसने बताया कि सुगंधा की माँ जादू - टोना करती है । यह सब उसकी माँ ने सुगंधा को भी सिखा दिया है। दोनों मिलकर लोगों को अपने बस में करते हैं और अपने फायदे के लिए उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं । मैं कभी उनकी बातों पर विश्वास नहीं करती थी। मुझे लगता था ये लोग सुगंधा की खूबसूरती से जलते है इसलिए उसके बारे में उल्टा - सीधा कहते हैं। धीरे-धीरे हमारी पहचान शहर के अन्य लोगों से बढ़ती गई । जो लोग भी घर आते सुगंधा के परिवार से दूर रहने की हिदायत दे जाते थे। समय के साथ सुगंधा की और मेरी दोस्ती गहरी होती गई। लेकिन शहर के लोग और कॉलेज के लड़के -लड़कियाँ यहाँ तक कि शिक्षक भी सुगंधा से कतराते थे।सुगंधा इस कारण दुखी और परेशान रहती थी। एक बार तो उसने कहा, "मैं आजतक समझ नहीं पाई आखिर मुझे किस गलती की सजा मिल रही है।" मैंने कहा," छोड़ो जाने दो इतना मत सोचो । मैं हूँ न तुम्हारी पक्की दोस्त।मुझे कोई फर्क नही पड़ता लोग क्या सोचते है।" हालाँकि मन ही मन मैं सोचने लगी कि एक सुगंधा के कारण कॉलेज में लोगों ने मुझसे बात करना बंद कर दिया था। लेकिन मुझे सुगंधा की दोस्ती भी बहुत प्यारी थी उसे तोड़ना मुझे कतई गवारां न था। लोगों ने लाख समझाया लेकिन मैं नही मानी। मगर ज़िन्दगी आप की सोच के अनुसार हमेशा नहीं चलती। जब मैं बीए फाइनल ईयर में थी तो ज़िन्दगी ने ऐसा खेल खेला कि मैं टूट गई और सुगंधा से मेरी दोस्ती भी टूट गई।
बात कुछ यों हुई कि बीए के आखिरी साल में जब इम्तहान का समय पास था मैं बीमार पड़ गई। तेज बुखार ने एनीमिया दे दिया था। हालाँकि यह एक मामूली बीमारी है और किसी को भी हो सकती है लेकिन मेरे मामले में इसका दोषी सुगंधा को बताया गया। शहर के लोग और माँ- पापा सबने मान लिया था कि चूंकि मैं पिछली दो परीक्षाओं में अव्वल रही थी और सुगंधा बस पास थी इसलिए सुगंधा और उसकी माँ ने परीक्षा से पहले मुझपर जादू-टोना कर दिया ताकि मैं परीक्षा न दे संकूँ।
एक बार तो लोगों ने हद पार कर दी और कहा कि सुगंधा पड़ोस में रहने वाले वरुण से शादी करना चाहती थी इसलिए जब वरुण की शादी कहीं और हो गई तो सुगंधा ने उसकी नई -नवेली दुल्हन का मुँह देखने के बहाने उसे कुछ खिला दिया और वह पागल हो गई। जब कि सच्चाई ये थी कि वरुण के माता-पिता दहेज में मोटी रकम लेकर एक ऐसी लड़की से वरुण की शादी करवा दी जो सामान्य बुद्धि की नहीं थी। लेकिन वरुण के घरवालों ने अपना ऐब छुपाने के लिए सुगंधा को मोहरा बना लिया। लोग तो यहाँ तक कहते कि सुगंधा रातों में घर से बाहर जाती है और लोगों पर जादू करती है। जबकि मैं जानती हूँ सुगंधा अंधेरे में बहुत डरती थी।
मैं जानती थी कि ये सब झूठ था। लेकिन माँ-पापा के दबाव में मैं कुछ न कर सकी और मुझे सुगंधा से अपना रिश्ता तोड़ना पड़ा। समय यूँ ही गुज़रता रहा। एक बार मैं अपना पीसीएस का एग्जाम देने की लिए शहर से बाहर गई थी वापस आने पर पता चला कि सुगंधा के पिताजी नहीं रहे। मैंने उससे मिलने का फैसला किया। उससे मिलकर अफसोस जाहिर किया तो सुगंधा बोली, "छोड़ों ये सब जाने दो। ज़िन्दगी शायद ऐसी ही होती है जब आपको अपनों की जरूरत होती है तब कोई साथ नहीं होता। सबको अपने हिस्से के दुख अकेले ही झेलने पड़ते है।" मैं समझ रही थी सुगंधा मुझे ही ताने मार रही थी। सच भी था। मैं खुद को उसकी पक्की सहेली कहती थी। लेकिन कभी उसके दुख में साथ खड़ी न हो सकी!
समय गुज़रता गया और सुगंधा से मेरी दोस्ती धीरे -धीरे बिल्कुल खत्म सी हो गई। लेकिन आज लगभग पाँच साल
बाद सुगंधा को देखकर मैं स्तब्ध रह गई और कहीं न कहीं ग्लानि से भर गई। तभी माँ ने आवाज लगाई," क्या रात के बारह बजे खाना खाएगी चल आजा।" मैंने समय देखा तो रात के नौ बजे रहे थे। खाना खाकर मैं जब सोने गई तो भी सुगंधा मेरे आंखों में ,मन में घूम रही थी। उसके बारे में सोचते हुए कब नींद आ गयी पता ही न चला। मैगर सुबह उठी तो मैंने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए मैं सुगंधा की शादी में जरूर जाऊँगी। मैंने तैयारी भी शुरू कर दी। सुगंधा के मन पसंद रंग की साड़ी तैयार की। शादी वाले दिन मैं उसकी शादी में पहुँची, सुगंधा मुझे देखकर बहुत खुह हुई। उसने उत्साह पूर्वक मुझे गले लगाया और बोली,"मेरा मन कहता था कि कुछ भी हो जाए तुम जरूर आओगी। मेरी एक ही तो सहेली है!" हमदोनों की आँखे प्यार और खुशी से नम थीं। मैंने कहा,"अच्छा अब अपने मियांजी से भी तो मिलवाओ। सुगंधा बोली, हाँ -हाँ क्यों नहीं और अपने होने वाले पति को आवाज दी जो अपने दोस्तों के बीच ठहाके लगा रहा था। आवाज सुनकर वह जैसे ही मुड़ा ,मैं तो उसे देखकर दंग रह गई! ये तो समीर था ,हमारे कॉलेज का सबसे हैंडसम लड़का। सम्मर हमारा सीनियर था। लेकिन सुगंधा और समीर के बारे में मुझे कभी कुछ पता न चला। समीर मुझे देखते ही पहचान गया और बोला ,सुगंधा को तुम्हारा बहुत इंतज़ार था। आने के लिए बहुत शुक्रिया। मैंने दोनों को बधाई दी। समीर कुछ देर बाद चला गया। मैंने उछलते हुए सुगंधा से पूछा," ये कब हुआ और मुझे कुछ खबर ही नहीं! सुगंधा बोली मुझे भी कहाँ पता था? कॉलेज के आखिरी साल में समीर ने अपने प्यार का इज़हार किया । मैंने उससे कहा ,"मैं तुम्हारे लायक नहीं ,क्या तुम नहीं जानते दुनिया मुझे डायन कहती है । मैं लोगो पर जादू करती हूँ। तुम पछताओगे और मैं फिर समाज के तानों का शिकार हो जाऊँगी।" समीर ने कहा ," मैं तीन सालों से तुम्हे देख रहा हूँ पहले दिन से ही तुम्हारे प्यार में हूँ। कहने की हिम्मत आज की जब लगा कि कहीं मैं तुम्हें खो न दूँ।" मैन भी समीर से थोड़ा समय माँगा ।लेकिन हमारी बातचीत होने लगी। समीर की दूसरे शहर में नौकरी लग गई और वह शहर से बाहर चला गया था। लेकिन मेरे दुख में अगर कोई मेरे साथ हरवक्त खड़ा होता था तो वह समीर था। समीर ने उसदिन से आज तक कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। दूर रहकर भी वह मेरे साथ रहा। कुछ महीने पहले जब उसने शादी का प्रस्ताव दिया तो मैं मना नहीं कर सकी और न कहने का कोई कारण भी नहीं था।
सुगंधा की बातें सुनकर मैं समीर के प्रति आदर से भर उठी और अपने प्रति ग्लानि और घृणा से भर गई। समीर ने पक्की दोस्ती का कभी कोई दावा नहीं किया लेकिन एक सच्ची दोस्ती का प्रमाण दिया। दुनिया जो सुगंधा को डायन कहती थी उसके राजकुमार जैसे पति को देखकर निश्चित ही जलभुनकर कोयला हो जाएगी। मैंने सुगंधा और समीर को फिर से बधाई दी और घर आने का आमंत्रण देते हुए वापस जाने की इजाज़त माँगी। अपनी गलती के प्रति मन पछतावे से भरा था लेकिन एक मन सुगंधा के लिए खुश भी बहुत था। मैंने आसमान की ओर देखा और प्रार्थना की कि भगवान अब सुगंधा के जीवन में सिर्फ प्रेम की सुगंध देना।