सिर्फ एक कमरा !
सिर्फ एक कमरा !
कार अपनी रफ्तार से चल रही थी ।सीमा सोच रही थी, आज जाने क्यों,सुबह से माँ की याद आ रही है? ऐसा पहली बार हुआ कि एक हफ्ते हो गए और मैंने माँ का हाल नही पूछा! फिर मन में ही बुदबुदाने लगी, आखिर करती भी क्या घर में सासु माँ भी तेज बुखार और तकलीफ में थी उनकी चिंता और काम के कारण समय ही नही मिलता था। माँ क्या सोचती होगी, कैसी बेटी है ये? सीमा की आंखों में अनायास ही आँसू आ गए और बोली पापा आप इतनी जल्दी क्यों चले गए, माँ को अकेला छोड़ कर, आपने अच्छा नही किया, मैं आपसे बहुत नाराज हूँ। अचानक गाड़ी के रुकने की आवाज आई और ड्राइवर ने कहा- मैडम जी, माँ जी का घर आ गया।
दरवाजे की घंटी बजते ही, छोटी भाभी ने दरवाजा खोला । सीमा बोली - नमस्ते भाभी, कैसी है आप? छोटी भाभी नैना ने उत्तर दिया," हम सब ठीक है,आप कैसी है,आज अचानक !" सीमा मुस्कुराते हुए आगे बढ़ी और माँ के कमरे में चली गई मगर अंदर जाकर देखा, माँ तो वहाँ नहीं थी । भाभी के दोनों बच्चे वहाँ पढ़ाई कर रहे थे। सीमा ने पूछा माँ कहाँ है? बच्चों ने कहा,"बुआ, दादी तो ऊपर वाले कमरे में रहती हैं।" सीमा गुस्से से बोली, "ऊपर वाले कमरे
में !" हाँ हम लोग यहाँ पढ़ाई करते हैं और दादी अब ......उनकी पूरी बात सुने बिना ही सीमा दौड़ती हुई ऊपर की तरफ गयी । कमरे का दरवाजा बंद था। सीमा ने दरवाजा खोला तो माँ औंधे मुँह बिस्तर पर पड़ी थी पास ही थाली में एक रोटी और कटोरी में दाल रखी थी। रोटी,जो पूरी तरह सूख गई थी। सीमा ने सोचा शायद रात का खाना होगा। लेकिन माँ की ऐसी हालत देख वह अंदर तक काँप गयी। पापा जो माँ को एक ज़रा सी तकलीफ नही होने देते थे । माँ के बीमार होने पर अपने हाथों से खाना देते थे,लेकिन आज माँ की ये हालात.....। रिश्ते अचानक इतने कैसे बदल जाते हैं ?
माँ.. माँ...सीमा चिल्लाई,माँ आप यहाँ क्या कर रही हो इस कमरे में क्यों हो ? आपका कमरा तो नीचे है । सीमा को देखते ही माँ ने बेटी को गले लगा लिया । अरे लगता है आपको बुख़ार है। सीमा ने अपने पर्स से बुखार की एक गोली खाने के लिए दी। माँ बोली - ले पहले थोड़ा पानी पी ले, सीमा गुस्से से बोली, पानी छोड़ो और माँ हाथ पकड़ते हुए कहा पहले आप दवा खाइये और ये बताइए, आप अपने कमरे में क्यों नहीं हो? माँ बोली अरे कुछ नहीं यहाँ रहूं या वहाँ, क्या फर्क पड़ता है ? माँ अपने आँसुओं और पीड़ा को बेटी से छिपाने की कोशिश कर रही थी। किसने आपको यहाँ रहने को मजबूर किया ? बताइये। माँ बोली, अरे किसी ने नही । तू बता कैसी है, घर मे सब ठीक है ना!
सीमा का गुस्सा सातवें आसमान पर था वह गुस्से से लाल हो, दनदनाती हुई नीचे जा पहुँची और चिल्लाने लगी भैया -भाभी, बड़े भैया, छोटे भैया सब बाहर आ आओ। सब कमरे से भागते हुए बाहर आए क्या हो गया, क्यों चिल्ला रही है इतना ? चिल्लाऊँ नहीं तो क्या करूं? यह माँ का कमरा ऊपर कब से हो गया, इस उम्र में, उन्हें इस तरह एक कोने में अकेले छोड़ देना क्या ठीक है? अगर पापा होते तो तब क्या तुम ये करते?
बड़े भैया मुस्कुराते हुए आगे आये और बोले ओहो बस इतनी सी बात ! दरअसल बच्चे बड़े हो रहें है उनको पढ़ने के लिए एक निश्चित जगह चाहिए थी और माँ को इससे कोई तकलीफ नही । एक कमरे की ही तो बात है इतनी सी बात पर आसमान सर पर उठा लिया है!
सीमा गुस्से से काँप रही थीऔर बोली, माँ को कोई तकलीफ नही, छी - ये कहते हुए तुम्हे ज़रा शर्म नही आ रही। तुमने अपना कमरा क्यों नही दे दिया बच्चों ,तुम छत वाले कमरे में चले गए होते या फिर बच्चों को ही वहाँ भेज देते । माँ ही क्यों ? भैया क्या आप लोग नही जानते ये सिर्फ एक कमरे की बात नही है, इस कमरे में माँ का चालीस साल का जीवन है, आज भी माँ उस जीवन को जीती है । पापा की ढेरों यादे है हम सबके बचपन की यादें है। पापा को गए अभी छः महीने ही हुए और तुम सबने माँ के जीने का हक ही छीन लिया। आज जब उनको, हम सबके साथ और प्यार की सबसे ज्यादा जरूरत है तो तुम सबने उन्हें घर का एक कोना दे दिया और भूल गए।
माँ अब तक छत से नीचे आ गयी थी और बोली,सीमा मेरी बच्ची तू बेकार ही परेशान हो रही है,सब ठीक है वैसे भी अब न जाने कितने दिन का जीवन बचा है तू छोड़ ना, मेरे लिए इतना परेशान होने की जरूरत नहीं। अगर तेरी तबीयत खराब हो गई तो तेरे छोटे- छोटे बच्चे हैं उनका ध्यान तो कर। सीमा ने माँ को देखा और बोली, बच्चे ! माँ आपने भी तो अपने छोटे-छोटे बच्चों का बहुत ध्यान रखा था, उनकी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी और प्यार से उठाया, बोझ समझ कर नही और देखिए अपने बच्चों को ! आपके बच्चे आपको क्या दे रहे हैं? लेकिन मैं आपको ऐसी हालत में नहीं रहने दूंगी, कभी नहीं। यह घर आपका है,इसे घर आपने बनाया है,इस पर सबसे ज्यादा हक़ आपका है। माँ आप क्यों अपने कमरे से निकल गई? आज से और अभी से आप यही रहोगी ।
इतना सुनते ही बड़े भाई को बहुत गुस्सा आया उसने चिल्लाकर कहा, "देख सीमा अपने घर से मतलब रख यह हमारे घर का मामला है यहाँ तुझे बोलने की जरूरत नहीं हम देख लेंगे कि हमें अपनी माँ को कैसे रखना है। सीमा ने माँ को देखा और बोली माँ," क्या यह घर मेरा नहीं?" माँ ने डबडबाई आँखों से कहा, नहीं बेटा यह घर मेरे सभी बच्चों का है। सीमा ने कहा तो ठीक है आप मेरे साथ हैं ना । माँ बोली हाँ बेटा लेकिन तू किसी बात की चिंता मत कर। मुझे कोई तकलीफ नहीं मैं ऐसे ही जी लूंगी अब बचे ही कितने दिन है ! सीमा बोली नहीं माँ, कितने दिन बचे यह तो मैं नहीं जानती लेकिन जितने भी दिन है वह आप आत्मसम्मान के साथ जियेंगी।
बड़े भैया चिल्लाए इसी समय घर से बाहर निकल, अपने घर के झगड़े संभाल हमारे घर की बातों में मत टाँग अड़ा । सीमा बोली मैं टांग नहीं अड़ा रही लेकिन माँ का कमरा माँ को दे दो बस मैं चली जाऊँगी। इस कमरे की हर चीज में माँ की जान बसती है उनकी जान उनसे मत लो मैं तुम से प्रार्थना करती हूँ।
अब तक चुप रहे छोटे भैया और भाभियाँ भी बोल पड़ी ये ढीठ है ऐसे नही मानेगी। छोटे भैया आगे आकर बोले,नही देते कमरा हम,क्या कर लेगी? सीमा ने माँ की ओर देखा और कहा,आप अपने और पापा के कमरे में जाइये। लेकिन माँ रोती हुई चुपचाप सीढ़िया चढ़ने लगी। सीमा की आँखों से भी आँसू बह रहे थे और अपनी लाचारी पर गुस्सा आ रहा था। वह भी माँ के पीछे -पीछे ऊपर गयी और खुद को संभालते हुए बोली माँ क्या पापा ने जायदाद का बिल भैया लोगो के नाम बना दिया था। माँ बोली पता नहीं वे ऐसा नही कर सकते, वे कहते थे," यशोदा मैं चाहता हूँ तेरे लिए इतना कर दूँ ताकि मेरे न रहने पर तुझे कोई दुख न हो।" शायद तभी उन्होंने ये घर मेरे नाम पर बनाया था "यशोदा भवन।" माँ को गले लगाकर सीमा बोली, " अपना धयान रखना माँ,मैं फिर आऊँगी।"
अगले दिन सीमा की माँ के घर, दरवाजे की घंटी बजी । माँ के साथ -साथ सबने सोचा सीमा ही होगी। बड़े भाई ने कहा मैं देखता हूँ,आज उसे घर में घुसने ही नहीं दूँगा। दरवाजा खोलते ही सामने कोई और था। उसने पूछा यशोदा जी का घर यही है ! जी है बोलिये क्या काम है ? आप उनको बुला दीजिये कहिए, वकील साहब आये है।
बड़े भाई तो ऐसे लग रहे थे मानो गुस्से में पूरे घर को आग लगा देंगे। वकील बोला जल्दी बुलाइए और आप सब भी आ जाइए। बच्चो ने अब तक यशोदा जी यानी अपनी दादी को सूचना दे दी थी और वे नीचे आ गयी थी। वकील बोला देखिए मैने आपके अधिकारों की ये लिस्ट बनाई है चूँकि ये सारी संपत्ति आपके पति ने बनाई तो इसपर आपका हक पहले है।दूसरी बात ये "संपत्ति अधिकार कानून" के तहत आपकी बहन सीमा देवी ने भी अपने हिस्से की संपत्ति की माँग की है। लेकिन इन सब बातों के पहले मैं एक पत्र पढ़ना चाहता हूँ, जो सीमा देवी ने अपने भाइयों के लिए लिखा है।
प्रिय,
छोटे भैया, बड़े भैया और भाभी, आप सब भी जानते हैं और मैं भी जानती हूँ कि आप लोगों ने जो कुछ भी माँ के साथ किया वह सही नहीं है। भैया शायद आप ना समझ पाए लेकिन भाभी इस बात को अच्छी तरह समझ जाएंगी की औरतें अपनी कितनी इच्छाओं को मारती हैं और तब कहीं जाकर घर - परिवार बसता है । आप लोगों ने माँ को तक़लीफ़ पहुँचाई शायद आपको अहसास ही नही कि आपने क्या किया है? उन्हें उनके अपने ही कमरे से निकालकर घर के कोने में जगह दी जहाँ से उनका सब से संपर्क नहीं हो सकता और नीचे ऊपर करने में भी उन्हें कितनी तकलीफ होगी । यह बात सिर्फ एक कमरे की नहीं है यह बात है किसी को उसकी इच्छाओं को मारने के लिए मजबूर करना उसके आत्मसम्मान को कुचल देना । किसी को अपनी जड़ों से काटकर कहीं अलग रख देना किसी के अधिकार को छीन लेना । शादी के बाद वैसे भी औरतें एक बार अपनी जगह जड़ें छोड़ कर आती है और दूसरी जगह बहुत मुश्किल से अपनी जड़ों को मजबूत करती है। भैया आप लोगों ने माँ को उनकी दुनिया से काटकर अलग कर दिया जो सही नहीं है। माँ के कमरे में माँ- पापा की अपनी कितनी यादें हैं जिनको सोचकर पापा से जुड़ी चीजों को देखकर माँ अपना बाकी का जीवन आसानी से गुजार देती नीचे रहने पर उनके कानों में आसपास वालों की आवाज भी आती लेकिन ऐसे उन्हें इस तरह छत के कमरे में डाल देना बहुत ही अमानवीय और पीड़ादायक है इसलिए मैं आप सबसे एक बार और हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ कि माँ को उनका जीने का हक दे दो।
भैया, भगवान की दया से मुझे खाने-पीने की कोई कमी नहीं ।पैसे की कोई कमी नहीं मुझे पापा की संपत्ति से कुछ लेना देना नहीं, मुझे कुछ नही चाहिए लेकिन अगर आप सब नहीं माने और यूँ ही माँ को दुख देते रहे तो इस घर में अब बँटवारा होगा मैं अपना हिस्सा लेने आऊंगी । मैंने अपने अधिकारों के पेपर बनवा लिए हैं वह आगे कोर्ट में जाएं या नहीं जाए, यह आप के निर्णय पर निर्भर करता है। मैंने जितना समझाना था समझा दिया बाकी आपकी मर्जी ।
आपकी बहन,
सीमा
वकील साहब ने कहा, हाँ तो अब आप बताएं, आपका क्या निर्णय है। दोनों भाई और भाभियाँ मानो बुत बन गए हो। बड़े भाई ने माँ के पैरों पर सर रख दिया और कहा माँ आपकी केवल एक ही संतान है सिम्मी। सबसे छोटी होकर भी वो सबसे बड़ी जो गयी। हम बड़े होकर भी कितने छोटे हो गए!
माँ इस घर पर सिर्फ आप दोनों का हक़ है हम पापियों का नही। माफ कर दो माँ, हमें माफ कर दो। सभी आगे -पीछे माँ से चिपके पश्चाताप के आँसुओ में डूबे थे। तभी सीमा,जो चुपचाप ये सब देख रही थी अचानक अंदर आयी और बोली हटो -हटो मेरी भी माँ है। माँ ने बाहें फैला सीमा को गले लगा लिया और कहा "तू तो हम सब की माँ है।"
बहुओं ने माँ - पापा के कमरे को पहले की तरह सजाया और माँ को उनके कमरे में ले गए।
सीमा आँगन में खड़ी आसमान की तरफ देख रही थी और बोल रही थी,"मैने ठीक किया न पापा।"